नई दिल्ली । क्या किसी चुनाव में आम मतदाता ‘गारंटी’ और विकास के लिए वोट करते हैं, या फिर वे अभी भी अपनी जाति के लिए वोट करते हैं? हालांकि नरेंद्र मोदी युग में लगता है कि लोकसभा चुनाव जाति या गारंटी से ऊपर उठ गए हैं। लेकिन राज्यों में विधानसभा चुनावों में जाति गणित अभी भी मजबूती से हावी है। मध्य प्रदेश, राजस्थान या तेलंगाना विधानसभा चुनावों में कास्ट फैक्टर प्रमुख रहा है।
लोकप्रिय धारणा यह है कि यह ‘5 गारंटी’ ही थी, जिसने कुछ महीने पहले कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस का रुख मोड़ दिया था। हालांकि, अगर नतीजों पर बारीकी से नजर डाली जाए, तब एक अलग तस्वीर उभरती है। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का मुख्य कारण यह था कि वोकालिंगा ने पुराने मैसूर क्षेत्र में अपनी वफादारी जद (एस) से कांग्रेस की ओर मोड़ दी। क्योंकि उन्हें लगा कि उनके नेता डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री बनने वाले हैं। वोकालिग्गा को हमेशा अपने नेता एचडी देवगौड़ा के प्रधानमंत्री बनने और उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री बनने पर गर्व था।
कर्नाटक चुनाव में जद (एस) धराशायी हो गई। उसने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से दो-तिहाई सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई और कांग्रेस को इसका फायदा हुआ। पांच साल पहले राजस्थान में भी ऐसा ही हुआ था, जब कांग्रेस ने पूर्वी राजस्थान में जीत हासिल की थी, क्योंकि वहां के तीन जिलों में प्रभावी गुज्जरों को लगा था कि उनके नेता सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने वाले हैं। कांग्रेस ने इस बार भी सचिन पायलट को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया है। इसकी मुख्य वजह यह है कि अशोक गहलोत जिस माली समुदाय से आते हैं, वहां गुर्जर मतदाताओं से अधिक है। दूसरी बात यह है कि माली समुदाय के लोग पूरे राजस्थान में मौजूद हैं।
मध्य प्रदेश में, ओबीसी और आदिवासी मतदाता मुख्य फैक्टर हैं। चौहान को भरोसा है कि अगर प्रदेश में भाजपा जीतती है, तब वह फिर से सीएम बनने वाले हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके समुदाय की राज्य में लगभग 100 सीटों पर मजबूत उपस्थिति है। जब सीधी में एक आदिवासी के उत्पीड़न की घटना सामने आई थी तब सीएम चौहान को लगा था कि वहां मुश्किल में फंस सकते हैं। उन्होंने तुरंत सीधी जाकर पीड़ित आदिवासी के पैर धोकर स्थिति को संभालने की कोशिश की थी।
तेलंगाना चुनावों के बीच, पीएम नरेंद्र मोदी ने एससी कोटा में ‘मडिगा’ समुदाय के उप-वर्गीकरण के लिए उन्हें न्याय देने के लिए एक समिति गठित करने का वादा किया है। जाति के अलावा, बाहरी-अंदरूनी’ फैक्टर भी राज्य चुनाव में मतदाताओं पर भारी पड़ता है। अपना पूरा अभियान ‘सात गारंटी’ पर लड़ने वाले अशोक गहलोत को चुनाव के अंत में यह कार्ड खेलना पड़ा।
राज्यों में कांग्रेस का सारा अभियान ‘गारंटी’ के सहारे रहा है। भाजपा को भी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ‘गारंटी’ का सहारा लेना पड़ा है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में महिलाओं के लिए भत्ता और राजस्थान में गैस सिलेंडर केवल 450 रुपये में देने का वादा किया गया। लेकिन राजनीतिक फोकस जाति पर ही रहता है। कांग्रेस को लगता है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जाति जनगणना कराने की उसकी चाल सफल होगी। क्योंकि लोगों को आरक्षण में अधिक हिस्सेदारी की उम्मीद दिख रही है।
वहीं भाजपा ने जाति जनगणना को लोगों को बांटने की एक चाल बताया है। भाजपा ने शीर्ष नेता नरेंद्र मोदी के ओबीसी होने का हवाला देकर कहा है कि यह भाजपा ही है जो ओबीसी की सबसे अधिक परवाह करती है।

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