तेल अवीव। इजराइल और हमास के बीच चल रही जंग ‎फिलहाल थमने का नाम नहीं ले रही है। इजराइल ने साफ शब्दों में कह ‎दिया है ‎कि हमास का शमूल नष्ट करके ही दम लेंगे। वहीं यूएन स‎हित कई देशों ने भी इजराइल से युद्ध ‎विराम का आग्रह ‎‎किया है,ले‎किन इजराइल ‎किसी की सुनने को तैयार नहीं है। इसी बीच कई मु‎स्लिम और अरब देशों ने इजराइल पर दबाब बनाने की को‎शिश की ले‎किन वो भी काम नहीं आई। यहां तक ‎कि ईरान,कतर और लेबनान जैसे देशों ने तो खुलकर जंग में कूदने की धमकी भी दी,इसके बाद भी इजराइल ने अपने हमले नहीं रोके। ‎विरोध और समर्थन के बीच अब खबरें आ रहीं है ‎कि कई अड़चने हैं ‎जिसके कारण मु‎स्लिम देश हमास का साथ देने में ‎हिचक रहे हैं।

 

 

अरब देशों के बंटे होने की एक वजह टर्की, सऊदी अरब और ईरान के बीच मतभेद होना भी है। ये तीनों देश मुस्लिमों देशों का नेतृत्व करना चाहता हैं लेकिन इनमें कोई एक-दूसरे के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करेगा। ईरान सबसे ज्यादा मुखर है लेकिन शिया राष्ट्र होने की वजह से ज्यादातर मुस्लिम देशों को उसका नेतृत्व स्वीकार्य नहीं है। इसके अलावा अरब देश यह भी भली-भांति जानते हैं कि इजरायल के पीछे अमेरिका और यूरोप खड़ा है। भारत ने भी आतंकी कार्रवाई का विरोध किया है। पूर्व में भी इजरायल अरब संघर्ष में अमेरिका की मदद के चलते इजरायल उन पर भारी पड़ा था। कुलकर्णी के अनुसार ईरान, जॉर्डन, लेबनान तथा मिस्र ये चार देश सबसे ज्यादा इजरायल के खिलाफ मुखर हैं, ये जानते हैं कि यदि वे खुलकर हमास के समर्थन में उतरे तो उनका हश्र भी हमास की तरह होगा। इसलिए वह गाजा पर निर्दोष लोगों पर हमले को लेकर सिर्फ मुस्लिम देशों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। यह भी नहीं भूला जाना चाहिए कि हमास को गाजा के लोगों का समर्थन प्राप्त है। फलस्तीन में वेस्ट बैंक भी है लेकिन वहां पर इस प्रकार का संकट नहीं है क्योकि वेस्ट बैंक की जनता हमास का समर्थन नहीं करती है।

 

 

इजरायल-हमास संघर्ष पर भले ही ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अरब देश इजरायल के खिलाफ खड़े हो रहे हैं लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। अरब देशों के लिए इजरायल के खिलाफ एकजुट होना आसान नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं। हां, यह जरूर है कि ज्यादातर मुस्लिम देश इजरायल पर इस बात का दबाव बनाने का लगातार प्रयास करेंगे कि वह गाजा में निर्दोषों पर हमले नहीं करे। ऐसा कहने वाले सिर्फ मुस्लिम या अरब देश नहीं हैं। कई और देश में भी कह रहे हैं। खुद संयुक्त राष्ट्र भी यही चाहता है। रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी ने कहा कि कुछ अरब देश गाजा में हमलों को लेकर इजरायल पर आक्रामक हैं। इस प्रकार वे परोक्ष रूप से हमास की आंतकी कार्रवाई को भी वे सही ठहरा रहे हैं। लेकिन उन्हें सभी मुस्लिम देशों का समर्थन नहीं है। यही कारण है कि अभी तक सिर्फ दर्जन भर देश ही खुलकर सामने आए हैं जबकि करीब 50 मुस्लिम देश हैं जिनमें 22 अरब लीग के देश हैं। यह दर्शाता है कि इस मुद्दे पर अरब और मुस्लिम देश बंटे हुए हैं। इसलिए इस बात के आसार बहुत कम हैं कि इजरायल और अरब देशों के बीच किसी प्रकार का टकराव आने वाले दिनों में हो सकता है।

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