नई दिल्ली। सीएटी ने आर्यन खान ड्रग्स मामले में समीर वानखेड़े की उस दलील को मजबूत माना है ‎‎जिसमें उन्होंने कहा है ‎कि दिल्ली के उप महानिदेशक ज्ञानेश्‍वर सिंह का अपने ही मामले में न्यायाधीश बनकर फैसला करना उ‎चित नहीं है। इसी आधार पर सीएटी ने समीर वानखेड़े के पक्ष में फैसला ‎दिया है। बता दें ‎कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सीएटी) की प्रधान पीठ ने आर्यन खान ड्रग्स मामले से जुड़े एनसीबी मुंबई जोन के पूर्व निदेशक समीर वानखेड़े के आवेदन पर उनके पक्ष में फैसला दिया है, जिनके खिलाफ छापेमारी, जांच के संचालन के संबंध में कुछ आरोप लगाए गए थे।

वानखेड़े, जो 2008 बैच के भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारी हैं, इस समय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के तहत एक अतिरिक्त आयुक्त के रूप में कार्यरत हैं। इस मामले में वानखेड़े (प्रतिवादी संख्या 1) ने 16 जून, 2022 की एक रिपोर्ट को रद्द करने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया था। यह रिपोर्ट नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), दिल्ली के उप महानिदेशक ज्ञानेश्‍वर सिंह के नेतृत्व में विशेष जांच दल (एसईटी) द्वारा तैयार की गई थी, जो मामले में प्रतिवादी संख्या 4 हैं। बता दें ‎कि वानखेड़े ने पहले मुंबई, महाराष्ट्र में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के जोनल निदेशक के रूप में काम किया था। इसी कार्यकाल के

दौरान वानखेड़े को कुछ सूचनाएं मिलीं, जिसके आधार पर कॉर्डेलिया क्रूज पर छापेमारी की गई। इसके बाद वानखेड़े के खिलाफ छापे/जांच के संचालन के संबंध में कुछ आरोप लगाए गए। इन आरोपों की जांच के लिए एनसीबी के भीतर एक एसईटी का गठन किया गया था, जिसने बाद में संबंधित दस्तावेजों के साथ गृह मंत्रालय (एमएचए) को अपनी रिपोर्ट सौंपी। बदले में गृह मंत्रालय ने एक मसौदा आरोपपत्र के साथ प्रारंभिक रिपोर्ट को वानखेड़े के अनुशासनात्मक प्राधिकारी, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) को प्रमुख दंड का प्रस्ताव दिया।

ज्ञानेश्‍वर सिंह, जो एसईटी के अध्यक्ष थे, उपरोक्त अपराध की जांच की निगरानी में सक्रिय रूप से शामिल थे। वानखेड़े ने दलील दी कि सिंह द्वारा अपने ही मामले की जांच कर रही एसईटी का नेतृत्व करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। मामले की गहन जांच और व्हाट्सएप साक्ष्यों के बाद ट्रिब्यूनल, जिसमें अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और सदस्य (ए) आनंद माथुर शामिल थे, ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि जांच में सक्रिय रूप से शामिल होने के कारण ज्ञानेश्‍वर सिंह एसईटी का हिस्सा नहीं हो सकते थे। नतीजतन, ट्रिब्यूनल ने संबंधित अधिकारियों को किसी भी कार्रवाई से पहले वानखेड़े को व्यक्तिगत सुनवाई देने का निर्देश दिया।

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