नई दिल्ली । भारत के मिशन मून चंद्रयान-3 को सफलता मिलने से अब अंतरिक्ष कारोबार में इजाफा होने वाला है। इससे एक ओरे जहां भारतीय वैज्ञानिकों की दुनिया में धाक जमी है, वहीं इसरो की साख में भी बढ़ोतरी हुई है। क्योंकि चांद के अब तक अनछुए रहे दक्षिणी हिस्से में सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग कर इतिहास रच दिया है। इस सफलता के साथ ही भारत चांद के इस हिस्से में लैंड करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। इस सफलता ने विज्ञान, राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बढ़ाने के साथ ही भारत के लिए मालामाल होने के नए दरवाजे भी खोल दिए हैं। वहीं, भारत के साथ मिशन मून में प्रतिस्पर्धा कर रहा रूस का लूना-25 दुर्घटनाग्रत हो गया। दुनियाभर के विश्लेषकों और विशेषज्ञों को उम्मीद है कि लूना-25 की नाकामी और चंद्रयान-3 की सफलता से भारत के तेजी से उभरते अंतरिक्ष कारोबार को बहुत बढ़ावा मिलेगा। भारत और रूस के बीच चंद्रमा के अज्ञात क्षेत्र में पहले पहुंचने की अचानक शुरू हुई होड़ ने 1960 के दशक की स्पेस रेस की यादें ताजी कर दी थीं। उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ में स्पेस में आगे निकलने की होड़ चली थी। हालांकि, अब अंतरिक्ष एक कारोबार में तब्दील हो चुका है।
अंतरिक्ष कारोबर के मामले में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग एक पुरस्कार है। दरअसल, चांद के इस क्षेत्र में ही पानी की बर्फ है। योजनाकारों को उम्मीद है कि इससे भविष्य में चांद पर कॉलोनी, खनन और मंगल मिशन को फायदा मिल सकता है। पीएम नरेंद्र मोदी के प्रोत्साहन के चलते भारत ने अंतरिक्ष प्रक्षेपणों का निजीकरण कर दिया है। अब भारत इस क्षेत्र को विदेशी निवेश के लिए खोलना चाहता है। भारत का लक्ष्य अगले दशक के भीतर वैश्विक प्रक्षेपण बाजार में अपनी हिस्सेदारी में पांच गुना बढ़ोतरी करना है। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र अपनी लागत प्रतिस्पर्धी इंजीनियरिंग का फायदा उठाएगा। भारत किसी अंतरिक्ष अभियान को दुनिया के दूसरे किसी भी देश के मुकाबले कम खर्च में प्रक्षेपित कर देता है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसरो के पास चंद्रयान-3 के लिए करीब 7.4 करोड़ डॉलर का बजट था। वहीं, नासा 2025 तक अपने आर्टेमिस मून प्रोग्राम पर करीब 93 अरब डॉलर खर्च करेगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि जैसे ही इसरो का चंद्रयान सफल हुआ, इससे जुड़े सभी लोगों का प्रोफाइल ऊंचा हो गया है। अब जब दुनिया का कोई भी देश ऐसे मिशन की योजना बनाएगा, तो इसरो की ओर मदद के लिए देखेगा। यूक्रेन में युद्ध और बढ़ते अलगाव पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बाद भी रूस लून मिशन को लॉन्च करने में कामयाब रहा। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों को लूना-25 के बाद अगले मिशन को वित्तपोषित करने की रूस की क्षमता पर संदेह था। वहीं, रूस ने भी यह नहीं बताया कि उसने लूना-25 पर कितना खर्च किया। मॉस्को के एक स्वतंत्र अंतरिक्ष विशेषज्ञ और लेखक वादिम लुकाशेविच ने कहा था कि अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए खर्च साल-दर-साल कम हो जाता है। उन्होंने कहा कि रूस के बजट में यूक्रेन से युद्ध को प्राथमिकता देने के कारण लूना-25 के बाद अगले लूनर मिशन की उम्मीद कम ही है।