भोपाल व केंद्र सरकार में मंत्री रही, मध्य प्रदेश शासन की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के तेवर आजकल बदले हुए हैं। उमा भारती मध्य प्रदेश में अचानक से बहुत ज्यादा एक्टिव हो गई हैं। लोगों से लगातार मुलाकात, शराब बंदी के खिलाफ अभियान l उनकी राजनीतिक गतिविधियों का बड़े पैमाने पर केंद्र मध्य प्रदेश ही है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती अब मुख्यमंत्री शिवराज के लिए सिर दर्द बन गई है l इससे कयास लगाया जा रहा है कि उमा भारती 2023 के विधानसभा या 2024 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश से दावेदारी ठोकसकती है ! खुद उमा भारती ने भी 2023 में मध्य प्रदेश से विधानसभा चुनाव लड़ने का संकेत दिया है। वह कहां से यह चुनाव लड़ेंगी यह जाहिर नहीं किया है। किंतु पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती बुंदेलखंड में टीकमगढ़ या बड़ामल्हारा विधानसभा क्षेत्र से दावेदारी की है l गौरतलब है कि उमा 1989 से 1998 तक चार बार खजुराहो से लोकसभा के लिए चुनी गई थीं। इसके बाद 1999 से दिसंबर 2023 में मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने तक उमा ने भोपाल का प्रतिनिधित्व किया।
2014 में उमा भारती ने उत्तर प्रदेश के झांसी से चुनाव जीता था। फिलहाल की बात करें तो खजुराहो सीट से फिलहाल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वहीं प्रज्ञा सिंह ठाकुर भोपाल से सांसद हैं। झांसी सीट से अनुराग शर्मा भाजपा सांसद हैं। ऐसे में अगर उमा भारती को चुनाव लड़ना है तो उन्हें अपने लिए एक नई सीट तलाश करनी होगी। हाल ही में उमा ने कहा कि जब मैंने 2019 में चुनाव लड़ने से मना किया था, तभी कहा था कि मैं मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 और लोकसभा 2024 में चुनाव लड़ूंगी। उन्होंने यह भी कहा था कि मेरे लिए यह खुशी की बात है कि सरकार मैं बनाती हूं और इसे चलाता कोई और है। साल 2003 में उमा भारती ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर देकर मध्य प्रदेश में भाजपा को बहुमत दिलाया था। इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन आठ महीने से ज्यादा इस पद पर नहीं रह पाईं। अगस्त 2004 में कर्नाटक के हुबली की एक अदालत ने उमा के आदेश जारी कर दिया था।
मामला साल 1994 में स्वतंत्रता दिवस के दिन हुए दंगे का था, जिसमें पांच लोग मारे गए थे। इसके बाद उमा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और सबसे वरिष्ठ विधायक बाबूलाल गौर ने मध्य प्रदेश की गद्दी संभाली थी। इसके बाद से आज तक उमा को सीएम पद पर वापसी का मौका नहीं मिला। साल 2004 में ही एक अन्य घटना हुई, जिसने भाजपा के अंदर उमा का कद कम कर दिया था। नवंबर 2004 में उन्हें पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ खुलेआम बोलने के लिए भाजपा से निकाल दिया गया था। साल भर बाद नवंबर 2005 में पार्टी ने फैसला बदल दिया। लेकिन इसी दौरान उमा ने शिवराज को मुख्यमंत्री बनाए जाने के फैसले के खिलाफ बगावत कर दी। इसके एक महीने बाद उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी हटा दिया गया। इसके छह साल बात तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी उन्हें वापस पार्टी में ले आए। हालांकि तब उसे उन्हें मध्य प्रदेश की राजनीति से ज्यादातर दूर ही रखा गया है।