नई दिल्ली। Chandrayaan -3 के विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर उतरने की अंतिम 100 किमी की यात्रा स्वयं करनी है। उसे अपने इंजनों यानी थ्रस्टर्स का उपयोग करके अपनी गति धीमी करनी है और साथ ही ऊंचाई भी कम करनी है। 17 अगस्त 2013 की दोपहर विक्रम लैंडर अपने प्रोपल्शन मॉडयूल से अलग हो गया।
प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होने के बाद विक्रम लैंडर गोलाकार ऑर्बिट में नहीं घूमेगा. वह 30 km x 100 km की अंडाकार ऑर्बिट में चक्कर लगाने के लिए दो बार डीऑर्बिटिंग करेगा. यानी अपनी ऊंचाई कम करेगा. साथ ही गति धीमी करेगा. इसके लिए उसके इंजनों की रेट्रोफायरिंग की जाएगी. यानी उलटी दिशा में घुमाया जाएगा.
अभी 18 और 20 अगस्त को होने वाले डी ऑर्बिटिंग के माध्यम से विक्रम लैंडर को 30 किमी वाले पेरील्यून और 100 किमी वाले एपोल्यून ऑर्बिट में डाला जायेगा। पेरील्यून यानी चांद की सतह से कम दूरी एपोल्यून यानी चांद की सतह से अधिक दूरी। अब तक की यात्रा प्रोपल्शन मॉड्यूल ने पूरी कराई है और इसके बाद विक्रम को बाकी दूरी स्वयं तय करनी है।