कारगिल विजय दिवस: दुश्मन 16 हजार फीट की ऊंचाई पर, शहीदों का हौसला था हिमालय से भी ऊंचा

ग्वालियर, 26 जुलाई। कारगिल विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में ग्वालियर के महाराज बाड़े पर शहीदों को याद किया गया। सेना ने और उनके सम्मान में अपने शस्त्रों को झुका कर सलामी दी और। इस दौरान स्थानीय कवि ने शहीदों के सम्मान में कविता पाठ भी किया गया। इस मौके पर सेना के जवान भी उपस्थित थे। उन्होंने शहीद जवानों के चित्र के सामने अपने शस्त्र झुका कर सलामी दी। इस मौके पर NCC की गर्ल्स बटालियन के CO कर्नल एचएस चहल ने कहा आज का दिन सेना ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हमारे शहीदों ने जान की चिंता छोड़ कर कारगिल की चोटियों पर धखाधड़ी से काबिज पाकिस्तानी सैनिकों मार भगाया और तिरंगा झंडा फहराया। हमारे जांबोजों ने दुश्मन को करारी शिकस्त दी। गौरव के उन पलों को याद करते हुए सारा देश सीमाओं की रक्षा करते हुए शहीद जवानों को कृतज्ञता से याद कर रहा है।  

ग्वालियर में पिछले 19 सालों से कारगिल विजय दिवस पर महाराज बाड़े पर समाजसेवी एवं और सेना के संयुक्त प्रयास से शहीदों को याद किया जाता है। इसी सिलसिले में रविवार को महाराज बाड़े पर कारगिल विजय दिवस मनाया गया। इस मौके पर उन शहीदों को याद किया गया। जिन्होंने देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। इस युद्ध में देश के 527 जवान शहीद हुए थे, साथ ही करीब 1300 योद्धा घायल हुए थे। कारगिल की जंग में ग्वालियर-चंबल अंचल के भी कई जवान शहीद और जख्मी हुए थे।

भारतीय सेना और वायुसेना ने कारगिल पहाड़ियों पर पाकिस्तान के कब्ज़े वाले ठिकानों पर हमला किया और दुशमन को नेस्तनाबूद कर दिया। बाद में धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति से पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया। यह युद्ध ऊँचाई वाले इलाके पर हुआ और दोनों देशों की सेनाओं को लड़ने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। परमाणु बम बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ यह पहला सशस्त्र संघर्ष था।


कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि

कारगिल युद्ध जो कारगिल संघर्ष के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल जिले से प्रारंभ हुआ था।

दरअसल बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों और पाकपस्त आतंकवादियों ने लाइन ऑफ कंट्रोल यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर प्रवेश कर कई महत्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया था। उनका मकसद था लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क पर नियंत्रण हासिल कर सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर करना।

पाकिस्तान का यह कृत्य हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा था। पूरे दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों को मार भगाया था।

करगिल की पहाड़ियों से बेहद ऊंचा सेना था का हौसला

इस युद्ध में हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए थे, कारगिल शहीद और विजेता अधिकांश जवान 30 साल से कम उम्र के थे। तिरंगे की शपथ लेकर जंग में कूदे इन रणवीरों ने परिजनों से भी वापस आने का वादा किया था, वो वापस लौटे भी लेकिन तिरंगा ओढ़ कर।

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