बालासोर l ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे के बाद एक बार फिर से रेलयात्रियों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं. हादसे की खबरों के बीच भारतीय रेलवे के उस ‘कवच’ की चर्चा हो रही है, जो अगर कोरोमंडल एक्सप्रेस में लगा होता तो इतना बड़ा रेल हादसा न हुआ होता.

ओडिशा में हुए भयानक ट्रेन हादसे ने एक बार फिर भारतीय रेल यात्रियों की सुरक्षा से जुड़े दावों पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं. इस मुश्किल वक्त के बीच रेलवे का वो ‘सुरक्षा कवच’ सुर्खियों में हैं. जिसका उद्घाटन पिछले साल हुआ था. दरअसल रेलवे ने अपने पैसेंजर्स की सिक्योरिटी को ध्यान में रखते हुए ‘कवच’ का निर्माण करवाया था जिसके अस्तित्व में आने के बाद ये माना जा रहा था कि भविष्य में ट्रेन हादसों पर एक दिन जरूर लगाम लग जाएगी. ऐसी उम्मीदों के बीच बालासोर में हुई त्रासदी ने लोगों के दिलों को दहला दिया है.

‘कवच’ का हुआ था सफल परीक्षण 

उस समय रेल हादसों को रोकने के लिए भारतीय रेलवे के इस कवच को मास्टर स्ट्रोक और बड़ी क्रांति माना जा रहा था. इस तकनीक के बारे में कहा जा रहा था कि रेलवे वो तकनीक विकसित कर चुका है जिसमें अगर एक ही पटरी पर ट्रेन आमने सामने भी आ जाए तो एक्सीडेंट नहीं होगा. रेल मंत्रालय ने तब बताया था कि इस ‘कवच’ टेक्नोलॉजी  को धीरे-धीरे देश के सभी रेलवे ट्रैक और ट्रेनों पर इंस्टाल कर दिया जाएगा. अब रेलवे के इन्हीं दावों पर कांग्रेस पार्टी ने सवाल उठाए हैं.

उम्मीद जगी थी लेकिन टूट गई

मार्च 2022 में हुए कवच टेक्नोलॉजी के ट्रायल में एक ही पटरी पर दौड़ रही दो ट्रेनों में से एक ट्रेन में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव  सवार थे और दूसरी ट्रेन के इंजन में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन खुद मौजूद थे. एक ही पटरी पर आमने सामने आ रहे ट्रेन और इंजन ‘कवच’ टेक्नोलॉजी के कारण टकराए नहीं, क्योंकि कवच ने रेल मंत्री की ट्रेन को सामने आ रहे इंजन से 380 मीटर दूर ही रोक दिया और इस तरह परीक्षण सफल रहा।

रेल मंत्री ने दिया था बयान

कामयाब ट्रायल के बाद रेल मंत्री ने कहा था कि अगर एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें आमने सामने हों तो Kavach टेक्नोलॉजी ट्रेन की स्पीड कम कर इंजन में ब्रेक लगाती है. इससे दोनों ट्रेनें आपस में टकराने से बच जाएंगी. 2022-23 में कवच टेक्नोलॉजी को इस साल 2000 किलोमीटर रेल नेटवर्क पर इस्तेमाल में लाया जाएगा. इसके बाद हर साल 4000-5000 किलोमीटर नेटवर्क जुड़ते जाएंगे. लेकिन इस काम में जिस तेजी की उम्मीद की गई थी शायद उस स्तर पर काम नहीं हो पाया.

आरडीएसओ ने किया था डेवलप

कवच टेक्नोलॉजी को देश के तीन वेंडर्स के साथ मिलकर आरडीएसओ (RDSO) ने डेवलप किया था ताकि पटरी पर दौड़ती ट्रेनों की सेफ्टी सुनिश्चित की जा सके. RDSO ने इसके इस्तेमाल के लिए ट्रेन की स्पीड लिमिट अधिकतम 160 किलोमीटर/घंटा तय की थी. इस सिस्टम में ‘कवच’ का संपर्क पटरियों के साथ-साथ ट्रेन के इंजन से होता है. पटरियों के साथ इसका एक रिसीवर होता है तो ट्रेन के इंजन के अंदर एक ट्रांसमीटर लगाया जाता है जिससे की ट्रेन की असल लोकेशन पता चलती रहे.

कवच ट्रेन को ऑटोमेटिक रूप से रोक देगा

‘कवच’ के बारे में कहा गया था कि वो उस स्थिति में एक ट्रेन को ऑटोमेटिक रूप से रोक देगा, जैसे ही उसे निर्धारित दूरी के भीतर उसी पटरी पर दूसरी ट्रेन के होने का सिग्नल मिलेगा. इसके साथ-साथ डिजिटल सिस्टम रेड सिग्नल के दौरान ‘जंपिंग’ या किसी अन्य तकनीकि खराबी की सूचना मिलते ही ‘कवच’ के माध्यम से ट्रेनों के अपने आप रुकने की बात कही गई थी. कवच प्रणाली लगाने की शुरुआत दिल्ली-हावड़ा और दिल्ली-मुंबई रूट से करने की बात कही गई थी.

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