मास्को। यूक्रेन के दोनेत्सक में 462 बच्चों की मृत्यु हुई है या वे घायल हुए हैं। यहां कानफोड़ू बम विस्फोट हुआ और आसमान में धुएं का काला बादल छा गया। दो बच्चे आंखों को मिचमिचाते हुए इस घने धुएं के बीच कुछ देखने समझने की कोशिश कर रहे हैं। नौ साल की ओल्हा हिंकिना और उसका दस साल का भाई आंद्रेई कुछ न समझ पाने पर जोर-जोर से अपने पिता को पुकारना शुरू कर देते हैं, लेकिन धुएं के गुबार के बाद पसरे सन्नाटे में से कोई आवाज नहीं आती क्योंकि उनके पिता इस विस्फोट में मारे जा चुके हैं। रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष से सैंकड़ों मासूम जिंदगियां भी अछूती नहीं रही हैं। रूस हमलों में न जाने कितने घर बर्बाद हो गए और यूक्रेन के पूर्वी दोनेत्स्क इलाके में ऐसे ही एक विस्फोट ने इन दोनों बच्चों से उनके पिता का साया छीन लिया। पिता की तलाश में ये भाई-बहन जब बरामदे के पास पहुंचे तब उन्होंने अपने पिता को खून से लथपथ पाया और उनके शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी। आंद्रेई ने कहा, मेरे पिता की सुबह सात बजे मौत हो गई।

फिलहाल, दोनों भाई बहन अभी पोलैंड की सीमा के पास सुरक्षित पश्चिमी शहर ल्वीव में हैं। रूस के लगातार आक्रमण और बमबारी के कारण लाखों लोग बेघर और सैंकड़ों बच्चे अनाथ हो गये हैं। दोनों भाई-बहन भी अब यूक्रेन के उन बच्चों में शामिल हो गये हैं जिनका जीवन युद्ध से प्रभावित हुआ है। दोनों देशों के बीच जारी युद्ध में सैकड़ों बच्चे मारे जा चुके हैं और जो बच गए हैं वे गहरे सदमे में हैं। उनके मन मस्तिष्क पर युद्ध की बर्बादी अपनी छाप छोड़ चुकी है और निश्चित ही जिंदगी भर उन्हें इस सदमे में जीना पड़ेगा।यूक्रेन के सामान्य अभियोजक कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष में कम से कम 483 बच्चों की जान चली गई है और लगभग 1,000 बच्चे घायल हुए हैं।

इस बीच, यूनिसेफ ने कहा है कि यूक्रेन के कुल 15 लाख बच्चे अवसाद, घबराहट, सदमे के बाद के तनाव संबंधी रोग तथा मानसिक स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं से जूझ रहे हैं और इनका असर लंबे समय तक रहने की आशंका है। यूक्रेन की राष्ट्रीय समाज सेवा ने बताया कि करीब 1,500 बच्चे अनाथ हो गए हैं। दोनेत्सक जो युद्ध का केंद्र है, वहां सबसे अधिक संख्या में बच्चे हताहत हुए हैं। अधिकारियों के अनुसार दोनेत्सक में 462 बच्चों की मृत्यु हुई है या वे घायल हुए हैं। हिंसा में जिंदा बचे रह गए बच्चों के साथ काम करने वाली मनोवैज्ञानिक ओलेक्ज़ेंड्रा वोल्खोवा ने कहा, भले ही बच्चे सुरक्षित इलाकों में चले गए हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे अपने साथ हुई हर बात को भूल गए हैं।

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