ग्वालियर। कैलाशवासी माधवाराव सिंधिया के समय तक यह धारणा दृढ़ हो गई थी कि लोकसभा हो या विधानसभा, चुनाव में सिंधिया परिवार का प्रत्याशी की जीत तय है। इसी समर्थन के चलते माधवराव सिंधिया उस शिखिर तक पहुंच गए थे, कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने खुद ही उन्हें अपना उत्तराधिकारी कहा था। लेकिन, विमान हादसे ने देश से भावी प्रधानमंत्री छीन लिया।

कैलाशवासी माधवराव सिंधिया की 30 सितंबर को पुण्यतिथि है। इस मौके पर khabarkhabaronki.com माधवराव सिंधिया से जुड़ी कुछ ऐसी स्मृतियों को सामने ला रहा है, जो बहुत कम सुनी/पढ़ी गई होंगी।

माधवराव सिंधिया को भी सरदार वल्लभभाई पटेल और प्रणब मुखर्जी के साथ कांग्रेस के उन बड़े नेताओं में शामिल किया जाता है जो प्रारब्धवश प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। माधवराव सिंधिया को हादसे ने हमसे ऐसे समय में छीन लिया था जब कांग्रेस सत्ता में लौटने की तैयारी कर रही थी। उनकी मां राजमात विजयाराजे सिंधिया के निधन को भी अभी मात्र आध माह ही बीते थे कि उनका वायुयान दुर्धटना का शिकार हो गया। उनके कैलाशवासी होने के तीन वर्ष बाद ही कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की थी, और एक दशक तक देश पर शासन किया था। राजनीति और माधवराव सिंधिया से परिचित समझते हैं कि वह जीवित होते और प्रदानमंत्री बनते तो सरकार की तस्वीर कुछ अलग रही होती।

‘MADHAVRAO SCINDIA A LIFE’ पुस्तक में है इसका उल्लेख
वीर संघवी और नमिता भंडारे की लिखी पुस्तक ‘माधवराव सिंधिया ए लाइफ’ में कहा गया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने माधवराव सिंधिया से एक बार कहा था कि वह उन्हें अपना उत्तराधिकारी मानते हैं। किताब के मुताबिक एक दिन अचानक सिंधिया को प्रधानमंत्री नरसिंहराव का फोन आया। उन्होंने कहा कि मैं आपको अपना उत्तराधिकारी मानता हूं। मेरी उम्र बढ़ रही है, इसलिए प्रधानमंत्री के रूप में दूसरी पारी शुरू करने का मैं इच्छुक नहीं हूं।

हादसा नहीं होता माधवराव बनते PM
राजनीति के विश्लेषकों मानते हैं कि 30 सितम्बर 2001 को मैनपुरी के पास एक विमान दुर्घटना में माधवराव सिंधिया का निधन नहीं हुआ होता तो नरसिंह राव का यह कथन भी सच साबित हो सकता था, क्योंकि उस समय स्वयं सोनिया गांधी भी माधवराव को अपने राजनीतिक मार्गदर्शक के रूप में देखती थीं।

कभी चुनाव नहीं हारे माधवराव

– राजमाता विजयाराजे सिंधिया के कारण माधवराव जनसंघ में गए। उन्होंने पहला चुनाव 1971 में राजमता की छत्रछाया में जनसंघ से लड़ा। इस चुनाव में 26 साल के माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के ‘डीके जाधव’ को 1,41090 मतों से पराजित किया था।

– माधवराव सिंधिया1977 में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर दूसरा चुनाव लड़े, और उन्होंने बारह कोणीय संघर्ष में लोकदल के ‘जीएस ढिल्लन’ को 76 हज़ार 451 मतों से पराजित किया था।

– राजमाता से राजनीतिक मतभेद के बाद 1980 में माधवराव सिंधिया कांग्रेस में आगए और राजमाता समर्थित जनता पार्टी के नरेश जौहरी को एक लाख से अधिक मतों से शिकस्त दी थी।

– उन्होंने 1984 में तो पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के दिग्गज अटल बिहारी वाजपेयी को बडे अंतर से हरा दिया था।

– इसके बाद वह लगातार कांग्रेस के टिकट पर संसद में पहुंचते रहे।

– माधवराव सिंधिया ने 1996 में एक बार कांग्रेस का दामन छोड़कर खुद की बनाई ‘विकास कांग्रेस’ के टिकट पर चुनाव मैदान में ताल ठोकी और भारी बहुमत से विजयी रहे।

– गुना-शिवपुरी से ही माधवराव फिर 1999 में सांसद बने और विमान दुर्घटना होने तक सांसद रहे।

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