तीर्थों का भांजा कहलाता है अटल जी का पैतृक गांव, यहीं मांगा था शिव जी से सफलता का वरदान

ग्वालियर, 25 दिसंबर। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 25 दिसंबर को जयंती हैं। उनका जन्म ग्वालियर में हुआ था, लेकिन उनका पैतृक गांव आगरा से 70 किलोमीटर दूर बटेश्वर है, इस गांव को सभी तीर्थों का भांजा कहा जाता है। अटलजी का गांव बटेश्वर एक समय में चंबल के बागियों के कारण कुख्यात था, साथ ही शिव मंदिरों की श्रंखला के कारण विख्यात भी है। यमुना नदी के किनारे बसे इस गांव में आज भी अटलजी के मित्र और परिवार के सदस्य रहते हैं। गांव पहुंचे महादेव के दर्शन किये तो बुजुर्गों ने कहा मांगो वरदान, अटल जी ने कहा मुझे बनना है प्रधानमंत्री….

बटेश्वर में यमुना किनारे 101 शिव मंदिर हैं। उन्हीं में से एक है मोटेश्वर महादेव मंदिर। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इन महादेव को अपनी बांहों में भर लेता है, उसे ठीक उसी समय मांगा गया वरदान भगवान आसुतोष जरूर देते हैं। बटेश्वर गांव के लोगों और अटलजी के परिजन के अनुसार प्रधानमंत्री बनने से पहले पारिवारिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने अटलजी यहां आते रहते थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे यहां आए थे। परिजन के अनुसार एक बार ऐसे ही अटलजी गांव आ गए और यमुना में नहाने के बाद मंदिरों के दर्शन को चले गए। जब वह मोटेश्वर महादेव मंदिर पहुंचे तो उन्हें मोटेश्वर महादेव को बाहों में भरने की मान्यता के बारे में बताया गया। अटल जी सभी की बातें सुन रहे थे, तभी गांव के एक बुजुर्ग ने उनसे कहा-लला तुमऊं कछू मांगि लेउ। पहले तो अटलजी कुछ सकुचाए, फिर मंदिर में जाकर शिवलिंग के सामने खड़े हो गए। कुछ पल बाद जमीन पर बैठ गए और शिवलिंग को अपनी बांहों में भर लिया। फिर कहा- मुझे देश का प्रधानमंत्री बनना है। इतिहास गवाह है कि भोलेनाथ के आशीर्वाद से उनकी ये मनोकामना पूरी हुई।

मोटेश्वर महादेव शिवलिंग का 7 फीट है व्यास

बट्शव्र के प्रख्यात मोटेश्वर महादेव शिवलिंग की ऊंचाई करीब एक मीटर से ज्यादा है। इनका व्यास करीब 7 फीट है। बुजुर्ग बताते हें कि 1962 में आई भयंकर बाढ़ में मंदिर बह गया था। केवल शिवलिंग ही बचा था। उसके बाद से अस्थाई ढांचा बना दिया गया। बताया जाता है कि मंदिर आने वाले लोग शिवलिंग को अपनी बांहों में लेने की कोशिश करते हैं, लेकिन बिरले ही ऐसा कर पाते हैं।

ताजमहल से भी पुराने हैं बटेश्वर में मिले श्वेत संगमरमर पत्थर  

अंग्रेजी इतिहासकार कनिंघम के अनुसार आगरा के ताजमहल से पहले बटेश्वर में सफेद पत्थर के दो मंदिर थे। खोज के दौरान कनिंघम को मिला शिलालेख लखनऊ के म्यूजियम में आज भी सुरक्षित है। बटेश्वर गौरवशाली तीर्थ है,जिसमें सतयुग, त्रेता, द्वापर युग का इतिहास छिपा हुआ है। यहां जैन तीर्थकर भगवान नेमिनाथ की जन्मस्थली भी है। इस प्राचीन तीर्थस्थल का उल्लेख लिंग पुराण, मत्स्य पुराण, नारद पुराण तथा महाशिवपुराण में भी है। महाशिवपुराण के अंतर्गत कोटि रुद्र संहिता के अध्याय 2 के श्लोक 19 में इस तीर्थ की चर्चा है। दिवाली से पहले यहां पर विशाल पशु मेले का आयोजन भी किया जाता है।  

gudakesh.tomar@gmail.com

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