ख़बर ख़बरों की डेस्क, 04 दिसंबर। मध्यप्रदेश का जननायक टंट्या भील आजादी के आंदोलन के उन महान नायकों में शामिल है जिन्होंने आखिरी साँस तक फिरंगी सत्ता की ईंट से ईंट बजाने की मुहिम जारी रखी थी। गुरिल्ला युद्ध के इस महारथी ने 19वीं सदी के उत्तरार्ध में 15 साल तक अभियान की तरह लगातार अंग्रेजों के दाँत खट्टे किए। अंग्रेजों की नजर में वह डाकू और बागी था, लेकिन उन्हीं के अखबार न्यूयार्क टाइम्स ने गिरफ्तारी पर 10 नवंबर 1889 को उन्हें इंडियन रॉबिनहुड करार दिया था। वकीलों उनका मुकदमा बगैर फीस लड़ा। अंततः कंपनी सरकार ने पहले दिखावे के लिए उनके विरुद्ध सारे मामले वापस लिए, फिर समर्पण के बाद गिरफ्तार कर फांसी दे दी।
इंडियन रॉबिनहुड और जन नायक एवं मशहूर क्रांतिकारी मामा टंट्या भील का आज बलिदान दिवस है। इस अवसर पर khabarkhabaronki.com उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए प्रस्तुत कर रहा है, इस अमर शहीद के साहस और शौर्य की कहानी….
खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बडदा में 1842 में भाऊसिंह के यहाँ एक बालक ने जन्म लिया, जो अन्य बच्चो से दुबला-पतला था। निमाड़ में ज्वार के पौधे को सूखने के बाद लंबा, ऊँचा, पतला होने पर ‘तंटा’ कहते है इसीलिए ‘टंट्या’ कहकर पुकारा जाने लगा टंट्या की माँ बचपन में उसे अकेला छोड़कर स्वर्ग सिधार गई। भाऊसिंह ने बच्चे के लालन-पालन के लिए दूसरी शादी भी नहीं की। पिता ने टंट्या को लाठी-गोफन व तीर-कमान चलाने का प्रशिक्षण दिया। टंट्या ने धनुर्विद्या में दक्षता हासिल कर ली, लाठी चलाने और गोफन कला में भी महारत प्राप्त कर ली। आदिवासी समाज की परंपराओं के तहत कम उम्र में ही उसे पारिवारिक बंधनों में बांध दिया गया। कागजबाई से उनका विवाह कराकर पिता ने खेती-बाड़ी की जिम्मेदारी उसे सौंप दी। टंट्या गाँव में सबका दुलारा था, युवाओ का अघोषित नायक था। उसकी व्यवहार कुशलता और विन्रमता ने उसे लोकप्रिय बना दिया था।
अंग्रेजों के विरुद्ध मध्यभारत के आदिवासी विद्रोह का पहला नायक, मामा टंट्या भील
टंट्या भील ने अंग्रेजी दमन को ध्वस्त करने वाली जिद तथा संघर्ष की मिसाल कायम की थी। जननायक टंट्या ने अंग्रेजी हुकूमत, जमींदार द्वारा ग्रामीण जनता के शोषण और उनके मौलिक अधिकारों के साथ हो रहे अन्याय-अत्याचार की विरुद्ध आवाज उठाई थी। टंट्या भील अंग्रेजों का सरकारी खजाना और अंग्रेजों के चाटूकारों का धन लूटकर जरूरतमंदों और गरीबों में बांट देते थे। वह गरीबों के मसीहा थे। वह अचानक ऎसे समय लोगों की सहायता के लिए पहुंच जाते थे, जब किसी को आर्थिक सहायता की जरूरत होती थी। वह गरीब-अमीर का भेद हटाना चाहते थे। वह छोटे-बड़े सबके सहायक थे, इसलिए उन्हें टंट्या मामा के नाम से भी जाना जाता है। उनका मामा संबोधन इतना लोकप्रिय हो गया कि प्रत्येक भील आज भी स्वयं को मामा कहलवाने में गौरव का अनुभव करता है।
अंग्रेज सरकार ने कहा बागी, डाकू, उनके अख़बार ने लिखा इंडियन रॉबिनहुड
इतिहासविद् और रीवा के अवधेशप्रताप सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.एसएन यादव लिखते हैं कि वह इतना चालाक था कि अंग्रेजों को उसे पकड़ने में करीब सात साल लग गए। उसे वर्ष 1888-89 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उनकी गिरफ्तारी की ख़बर प्रकाशित करते हुए 10 नवंबर 1889 के अंक में न्यूयार्क टाइम्स ने उन्हें इंडियन रॉबिनहुड का खिताब दिया।
अंग्रेज कभी गिरफ्तार नहीं कर सके, अंततः षड़यंत्रपूर्वक कराया समर्पण
मध्यप्रदेश के बड़वाह से लेकर बैतूल तक टंट्या सक्रिय था। शोषित आदिवासियों के मन में सदियों से पनप रहे अंसतोष की अभिव्यक्ति टंट्या भील के रूप में हुई। वह इस कदर लोकप्रिय था कि जब उसे गिरफ्तार करके अदालत में पेश करने के लिए जबलपुर ले जाया गया तो उसकी एक झलक पाने के लिए जगह-जगह जनसैलाब उमड़ पड़ा। वकीलों ने राजद्रोह के मामले में उसकी पैरवी के लिए फीस के रूप में एक पैसा भी नहीं लिया था। जब अंग्रेजी हुकूमत किसी भी प्रकार टंटया को काबू में नहीं कर पाई तो षडयंत्र का सहारा लिया। घोषणा की गई कि टंटया पर लगाए गए सारे आरोप वापस ले लिए गए हैं। इस प्रकार षडयंत्र और फरेब से उसे गिरफ्तार किया गया। उन्हें पहले इंदौर में सेंट्रल इंडिया एजेंसी जेल में रखा गया किन्तु बाद में उन्हें जबलपुर ले जाया गया। ब्रिटिश अधिकारियों ने उनपर अमानवीय अत्याचार किये। अंततः 4 दिसम्बर 1889 को उन्हें फांसी दे दी गई और उनके शरीर को खंडवा-इंदौर रेल मार्ग पर कलपेनी रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया गया।
टंट्या भील के व्यक्तित्व के खास पहलू
– वह निमाड़ का पहला विद्रोही भील युवक था। बलशाली होने के साथ साथ उसमें चमत्कारिक बुद्धि शक्ति थी। टंट्या अपने दल में हमशक्ल रखता था।
– पुलिस को परेशान करने के लिये टंटया एक साथ पांच-छह विपरीत दिशाओं में डाके डलवाता था। बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, डूंगरपुर, बैतूल, धार में टंट्या भीलों का नायक था।
– लूटमार करके वह होलकर रियासत में जाकर सुरक्षित हो जाता था। पुलिस खोजती रहती पर उसे पकड़ने में असमर्थ रहती। – क्रांतिकारी टंट्या जो कुछ भी वह लूटता उसे अंग्रेजों के विरुद्ध ही उपयोग में लाता था, साथ ही ज़रूरतमंदों को बांट देता था। इसलिए स्थानीय युवक उसे मामा, जबकि अंग्रेज अख़बार न्यूयार्क टाइम्स ने इंडियन रॉबिनहुड करार दिया।
Ira Singh Khabar Khabaron Ki,09 Nov'24 For the first time in two and a half…
Ira Singh Khabar Khabaron Ki,27 Oct'24 October has marked a record- breaking month for foreign…
Ira Singh Khabar Khabaron Ki,23'Oct'24 The International Monetary Fund (IMF) has reaffirmed its positive outlook…
Ira Singh Khabar Khabaron Ki,23 Oct'24 A reduction in Goods and Services Tax (GST) could…
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के समीप औद्योगिक क्षेत्र के बंद फैक्ट्री में एमडी ड्रग्स…
संयुक्त कार्रवाई में 1814 करोड़ का MD ज़ब्त, तीन आरोपी गिरफ्तार, देश भर में नशे…