ख़बर ख़बरों की डेस्क, 03 दिसंबर। महाशयां दी हट्टी(MDH) के संस्थापक महाशय धर्मपाल गुलाटी बुधवार को ब्रह्म मुहूर्त में 98 साल की उम्र में संसार से विदा हो गए। उन्हें कोरोना संक्रमण हुआ था, कोरोना से तो जीत गए, लेकिन हृदयाघात से उनका निधन हो गया। इससे पूर्व एक बार उनकी मृत्यु की ख़बर वायरल हुई थी तब महाशय गुलाटी ने खुद अपने जीवित और स्व्स्थ होने की सूचना प्रकाशित कराई थी। उद्योग जगत में योगदान के लिए महाशय धर्मपाल गुलाटी को विगत वर्ष पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था। श्रद्धांजलि के तौर पर khabarkhabaronki.com प्रस्तुत कर रहा है दिल्ली की सड़कों पर तांगा चला कर 1500 से 5400 करोड़ का कारोबार खड़ा करने वाले महाशय की कहानी….
पाकिस्तान के सियालकोट में रहने वाले धर्मपाल गुलाटी का मन बचपन से ही पढ़ने में नहीं लगता थी। पिता चुन्नीलाल लाख प्रयासों के बाद भी जब धर्मपाल पांचवीं की परीक्षा में बैठे ही नहीं तो उन्हें काम पर लगा दिया, किंतु धर्मपाल का मन यहां भी नहीं लगा। धर्मपाल के बार बार काम बदलने से पिता की चिंता बढ़ गई। अंततः उनके लिए मसाले की दुकान खुलवा दी गई, इसका नाम पहले देगी मिर्च रखा गया। पंजाबी में मसाले संग्रह करने की जगह या पात्र को हट्टी कहते हैं, इसलिए इनकी फर्म का नाम था ‘महाशियां दी हट्टी’, जिसका अंग्रेजी संक्षिप्तीकरण MDH मशहूर हो गया।
विभाजन की विभीषिका झेली, बर्बाद व्यवसाय तांगा चलाकर फिर खड़ा किया
महाशय गुलाटी का कारोबार ठीक चल निकला, तभी देश की विभाजन हुआ औऱ धर्मपाल सियालकोट में सब कुछ छोड़कर भारत में पहले अमृतसर, फिर दिल्ली आ गए। उस वक्त 20-21 साल के धर्मपाल के पास पूंजी के नाम पर 1500 रुपए थे। परिवार पालने के लिए 650 रुपए में एक तांगा खरीदा और इस पर दिल्ली की सड़कों तांगा दौड़ने लगा। दो आना सवारी से किसी तरह ग्रहस्थी की गड़ी खींचते धर्मपाल महाशय का मन दो महीने में ही इससे उचाट हो गया।
कीर्तनगर दिल्ली में लगी महाशियां दी पहली हट्टी
बची हुई पूंजी से घर पर मसाला बनाकर बेचना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे कारोबार आगे बढ़ा और 1959 में दिल्ली के कीर्ति नगर में कम पूंजी में महाशियां दी हट्टी (फैक्ट्री) लग गई। आज MDH ब्रांड लंदन, शारजाह, अमेरिका, साउथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, हॉंगकॉंग, सिंगापुर समेत 100 देशों को मसाला निर्यात करती है। करीब 1000 से ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर और चार लाख से ज्यादा रिटेल डीलर्स के साथ करीब 5400 करोड़ रुपए का कारोबार है। आधुनिक मशीनों के साथ एक दिन में 30 टन मसालों की पिसाई और पैकिंग की जा रही है। विभाजन की विभीषिका झेल चुके गुलाटी ने पिता कीर्तिपाल गुलाटी के नाम पर ट्रस्ट बनाया है और इसी के माध्यम धर्मार्थ अस्पताल, घर्मशालाएं, स्कूल और दूसरे कई समाज सेवी कार्य कर रहे थे। कार्पोरेट MDH के अनुसार महाशय अपने वेतन का 90 प्रतिशत इसी ट्रस्ट के माध्यम से समाजसेवा में खर्च करते थे।
आईआईएफएल हुरुन इंडिया रिच 2020 की सूची में शामिल, पद्मभूषण भी मिला
तांगा चलाने वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी आईआईएफएल हुरुन इंडिया रिच 2020 की सूची में शामिल भारत के सबसे बुजुर्ग उद्योगपति थे। धर्मपाल गुलाटी को व्यापार और उद्योग में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए 2019 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मभूषण से भी सम्मानित किया था।
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