खबर खबरों की डेस्क, 10 नवंबर। एजेंसियां दावा करती रही हैं कि मतदान बाद के सर्वेक्षण (एग्जिट पोल) मतदाता के विशुद्ध विचार होते हैं, किंतु अब यह बहुधा गलत ही सिद्ध होने लगे हैं। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में सभी एजेंसियां भाजपा को 325 से अधिक सीटें देने को तैयार नहीं थीं। किसी ने बताया था कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसाभी की 70 में से 67 सीटों पर जीत जाएगी। इसी तरह 2014 और 2019 में कोई बता रहा था कि बीजेपी की आंधी में पार्टियां पूरी तरह साफ हो जाएंगीं। बिहार विधानसभा के लिए तो 2020 की तरह 2015 में भी एग्जिट पोल मुंह की खा चुका था।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार एग्जिट पोल के सैंपल साइज किसी क्षेत्र की डेमोग्राफी का सही प्रतिनिधित्व नहीं करते। बहुत छोटे होने की वजह से बहुधा ये किसी क्षेत्र की नब्ज़ नहीं टटोल पाते हैं। वास्तविकता यह है कि भारत का मतदाता विकसित देशों की तरह मुखर नहीं है। कहीं उनका राजनीतिक बाहुबलियों का डर उनकी अभिव्यक्ति को प्रभावित करता है, तो कही वह राजनीति के दोमुहेपन से सतर्क रहने के लिए मौन रहता है या वह बोलता है जो सच नहीं होता। और इसी वजह से मतदान बाद के सर्वेक्षण असफल हो जाते हैं।
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