ग्वालियर, 31 अक्टूबर। स्वतंत्रता के बाद भारत के एकीकरण में जुटे लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल रियासतों के विलय के सिलसिले में जब ग्वालियर आए, तो उनके आग्रह पर ही ग्वालियर की तत्कालीन महारानी विजयाराजे सिंधिया पहली बार उनके साथ सार्वजनिक मंच पर आमजन के सामने आईं थी। उन्होंने उस दिन शहर के एक महिला सम्मेलन को सरदार पटेल के साथ संबोधित किया था।
ग्वालियर की तत्कालीन रियासत की महारानी विजया राजे सिंधिया के राजपथ से लोकपथ तक के सफर और संघर्ष को आज सारा देश जानता है। लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि भाजपा की संस्थापक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष को सार्वजनिक मंच पर पहली बार लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल लाए थे। सरदार पटेल की 145वीं जयंती 31 अक्टूबर को है, देश इसे राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मना रहा है। इस मौके पर khabarkhabaronki.com पर प्रस्तुत यह रोचक प्रसंग….
महारानी ने सरदार पटेल को भेजा आमंत्रण, और खुद नहीं जा रहीं थी आयोजन में
सरदार पटेल ग्वालियर रियासत के विलय की औपचारिकता पूरी करने ग्वालियर आए हुए थे। शहर की प्रबुद्ध महिलाओं ने देश की तत्कालीन परिस्थितिओं पर विमर्श के लिए एक महिला सम्मेलन का आयोजन किया था। सब चाहती थीं कि शहर में मौजूद गृहमंत्री सरदार पटेल सभा को संबोधित करें। आयोजनकर्ताओं ने तत्कालीन महारानी विजयाराजे सिंधिया को इसके बारे में बताया तो उन्होंने खुद पत्र भेजकर सरदार पटेल को आमंत्रित किया। संदेश मिलते ही सरदार पटेल ने पत्र लेकर पहुंची आयोजक से पूछा कि क्या महारानी भी इस विमर्श सभा में मौजूद रहेंगीं। दरअसल उन दिनों ग्वालियर की महारानी सार्वजनिक समारोहों में सबके सामने नहीं आती थीं। यह बात सरदार पटेल जानते थे, और इसीलिये उन्होंने यह प्रश्न किया था।
सरदार पटेल ने रखी ऐसी शर्त, महारानी पहुंच गई सभा में
सरदार पटेल की शर्त यह थी कि खुद महारानी विजया राजे भी उस आयोजन में शामिल हों। साथ ही सम्मेलन में पुरुषों के आने की भी मनाही न हो। सरदार पटेल के विशुद्ध आग्रह को महारानी टाल नहीं सकीं और सभा में मौजूद रहने की स्वीकृति देकर सरदार पटेल की दूसरी शर्त भी मान ली। महारानी खुद भी पहुंचीं औऱ शहर के बुद्धिजीवी पुरुषवर्ग को भी आने की अनुमति दे दी।
महारानी के आते ही सभा में जुट गई थी भीड़
सरदार पटेल ने महारानी के आमंत्रण के जवाब में कहा था कि आपका रियासत के लोगों के साथ आत्मीय संबंध है, लिहाजा आपके और उनके बीच कोई पर्दा नहीं होना चाहिए। उस सभा में सरदार पटेल के साथ महारानी को सुनने के लिए भारी भीड़ उमड़ी। यह वही पल थे जब ग्वालियर की महारानी ने ‘राजपथ से लोकपथ’ पर पहला कदम रखा था।
नारियल की तरह बाहर से सख्त अंदर से नरम थे सरदार पटेल- राजमाता सिंधिया
राजमाता विजया राजे सिंधिया ने अपनी आत्मकथा ‘राजपथ से लोकपथ पर’ में लिखा है कि विलय के लिए सरदार पटेल की यात्रा के दौरान पता चला कि वह बाहर से भले लौह पुरुष दिखते हैं, पर अंदर से बहुत ही मृदु और भावुक थे। राजमाता के मुताबिक सरदार पटेल को औपचारिकताएं सख्त नापसंद थीं। हालांकि उन्होंने विलय के लिए जीवाजी राव पर बहुत दबाव डाला, लेकिन उनकी मंशा हमेशा साफ और मैत्रीपूर्ण रही।
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