VIDEO: PM मोदी–राजमाता के पूजा घर में रहता था भारत माता का चित्र, कहती थीं एक नहीं सहष्त्र पुत्रों की हूं मां, एक पुत्र आज प्रधान सेवक

नई दिल्ली, 12 अक्टूबर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राजमाता विजयाराजे सिंधिया की 100वीं जयंती पर 100 रुपये के सिक्के का अनावरण किया। कोरोना वायरस की वजह से वर्चुअल आयोजन में प्रधानमंत्री मोदी ने सिक्का देश को समर्पित किया। इस अवसर पर उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि एकता यात्रा के समय राजमाता ने मेरा परिचय गुजरात के युवा नेता नरेंद्र मोदी के तौर पर कराया था, इतने सालों बाद आज उनका वही नरेंद्र देश का प्रधानसेवक बनकर उनकी अनेक स्मृतियों के साथ आपके सामने है। उन्होंने कहा कि राजमाता ने अपना जीवन गरीब लोगों के लिए समर्पित कर दिया था। उनके लिए राजसत्ता नहीं बल्कि जन सेवा अहम थी। इस मौके पर राजमाता की बेटी व मध्यप्रदेश में मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया व राजमता के पौत्र भाजपा सांसद ज्योतिरिदित्य सिंधिया ने प्रधानमंत्री को भाव भरा धन्यवाद ज्ञपित किया।

जन्म शताब्दी वर्ष में उनका राम लला के मंदिर का सपना पूरा….

यहां पढ़ें प्रधानमंत्री का पूरो संबोधन

नारी शक्ति के बारे में वो विशेष तौर पर कहती थीं कि जो हाथ पालने को झुला सकते हैं, तो वो विश्व पर राज भी कर सकते हैं। आज भारत की नारी शक्ति हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहीं हैं, देश को आगे बढ़ा रही हैं।

तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाकर, देश ने राजमाता सिंधिया के महिला सशक्तिकरण के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाया है। 

ये भी कितना अद्भुत संयोग है कि रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए उन्होंने जो संघर्ष किया था, उनकी जन्मशताब्दी के साल में ही उनका ये सपना भी पूरा हुआ है।

राजमाता के आशीर्वाद से देश आज विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। गांव, गरीब, दलित-पीड़ित-शोषित-वंचित, महिलाएं आज देश की पहली प्राथमिकता में हैं।

राजमाता एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व थीं। साधना, उपासना, भक्ति उनके अन्तर्मन में रची बसी थी। लेकिन जब वो भगवान की उपासना करती थीं, तो उनके पूजा मंदिर में एक चित्र भारत माता का भी होता था। भारत माता की भी उपासना उनके लिए वैसी ही आस्था का विषय था।

आपातकाल के दौरान तिहाड़ जेल से राजमाता ने अपनी बेटियों को चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने चिट्ठी में जो लिखा था उसमें बहुत बड़ी सीख थी। उन्होंने लिखा था- अपनी भावी पीढ़ियों को सीना तान कर जीने की प्रेरणा मिले इस उद्देश्य से हमें आज की विपदा को धैर्य के साथ झेलना चहिए।

कोई भी साधारण व्यक्ति जिसके अंदर योग्यता है, प्रतिभा है, देश सेवा की भावना है, वो इस लोकतंत्र में भी सत्ता को सेवा का माध्यम बना सकता है। राजमाता ने जीवन का महत्वपूर्ण कालखंड जेल में बिताया, आपातकाल के दौरान उन्होंने जो-जो सहा उसके साक्षी हममे से बहुत से लोग हैं।

विवाह से पहले राजमाता जी किसी राज परिवार से नहीं थीं, एक सामान्य परिवार से थीं, लेकिन विवाह के बाद उन्होंने सबको अपना भी बनाया और ये पाठ भी पढ़ाया कि जनसेवा के लिए, राजकीय दायित्व के लिए किसी खास परिवार में जन्म लेना ही जरूरी नहीं। राजमाता ने सामान्य मानवी के साथ, गांव-गरीब के साथ जुड़कर जीवन जीया, उनके लिए जीवन समर्पित किया।

हम राजमाता के जीवन के हर पहलू से हर पल बहुत कुछ सीख सकते हैं। वो छोटे से छोटे साथियों को उनके नाम से जानती थीं। सामाजिक जीवन में अगर आप हैं, तो सामान्य से सामान्य कार्यकर्ता के प्रति ये भाव हम सभी के अंदर होना चाहिए।

राष्ट्र के भविष्य के लिए राजमाता ने अपना वर्तमान समर्पित कर दिया था। देश की भावी पीढ़ी के लिए उन्होंने अपना हर सुख त्याग दिया था। राजमाता ने पद और प्रतिष्ठा के लिए न जीवन जीया, न राजनीति की।

ऐसे कई मौके आए जब पद उनके पास तक चलकर आए। लेकिन उन्होंने उसे विनम्रता के साथ ठुकरा दिया। एक बार खुद अटल जी और आडवाणी जी ने उनसे आग्रह किया था कि वो जनसंघ की अध्यक्ष बन जाएं। लेकिन उन्होंने एक कार्यकर्ता के रूप में ही जनसंघ की सेवा करना स्वीकार किया।

एकता यात्रा के समय विजया राजे सिंधिया जी ने मेरा परिचय गुजरात के युवा नेता नरेंद्र मोदी के तौर पर कराया था, इतने वर्षों बाद आज उनका वही नरेंद्र देश का प्रधानसेवक बनकर उनकी अनेक स्मृतियों के साथ आपके सामने है।

हम में से कई लोगों को उनसे बहुत करीब से जुड़ने का, उनकी सेवा, उनके वात्सल्य को अनुभव करने का सौभाग्य मिला है। हम राजमाता सिंधिया के जीवन से सीखते हैं कि किसी को दूसरों की सेवा करने के लिए बड़े परिवार में पैदा होने की जरूरत नहीं है। जरूरत है कि देश और लोकतांत्रिक स्वभाव के प्रति प्यार की।

ये आवश्यक है कि राजमाताजी की जीवन यात्रा को, उनके जीवन संदेश को आज की पीढ़ी भी जाने, उनसे प्रेरणा लें, इसलिए उनके बारे में बार-बार बात करना आवश्यक है।

स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आजादी के इतने दशकों तक, भारतीय राजनीति के हर अहम पड़ाव की वो साक्षी रहीं। आजादी से पहले विदेशी वस्त्रों की होली जलाने से लेकर आपातकाल और राम मंदिर आंदोलन तक, राजमाता के अनुभवों का व्यापक विस्तार रहा है।

राजमाता जी कहती भी थीं- मैं एक पुत्र की नहीं बल्कि सहस्त्रों पुत्रों की मां हूं, उनके प्रेम में आकंठ डूबी रहती हूं। ये मेरा बड़ा सौभाग्य है कि मुझे राजमाता जी की स्मृति में 100 रुपये के विशेष स्मारक सिक्के का विमोचन करने का मौका मिला।

राजमाता सिंधिया ने अपना जीवन गरीब लोगों के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने साबित किया कि जन प्रतिनिधियों के लिए ‘राजसत्ता’ नहीं बल्कि ‘जन सेवा’ महत्वपूर्ण है।

पिछली शताब्दी में भारत को दिशा देने वाले कुछ एक व्यक्तित्वों में राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी शामिल थीं। राजमाताजी केवल वात्सल्यमूर्ति ही नहीं थी। वो एक निर्णायक नेता थीं और कुशल प्रशासक भी थीं।

विजया राजे जी ने पुस्तक में एक जगह लिखा है- एक दिन ये शरीर यहीं रह जाएगा, आत्मा जहां से आई है वहीं चली जाएगी, शून्य से शून्य में, स्मृतियां रह जाएंगी, अपनी इन स्मृतियों को मैं उनके लिए छोड़ जाऊंगी, जिनसे मेरा सरोकार रहा है, जिनकी मैं सरोकार रही हूं।

आज राजमाता जी जहां भी हैं, हम सबको देख रही हैं, हमें आशीर्वाद दे रहीं हैं। जिनका उनसे सरोकार रहा है, जिनकी वो सरोकार रही हैं, वो कुछ लोग इस कार्यक्रम में मौजूद हैं। देश में ये कार्यक्रम आज वर्चुअल रूप से मनाया जा रहा है।

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