नई दिल्ली। उत्तर भारत में 2002 से लेकर 2021 तक करीब 450 घन किलोमीटर भूजल घट गया और भविष्य में जलवायु परिवर्तन होने से इसमें और गिरावट आएगी। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। शोधकर्ताओं को अध्ययन में पता चला है कि पूरे उत्तर भारत में 1951 से लेकर 2021 तक मानसून की बारिश में 8.5 फीसदी की कमी आई। इस अवधि में इस क्षेत्र में सर्दियों के मौसम में तापमान 0.3 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि मानसून में कम बारिश होने और सर्दियों के दौरान तापमान बढ़ने के कारण सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ेगी और इसके कारण भूजल पुनर्भरण में कमी आएगी जिससे उत्तर भारत में पहले से ही कम हो रहे भूजल संसाधन पर और अधिक दबाव पड़ेगा।
शोधकर्ताओं ने 2022 की सर्दियों में अपेक्षाकृत गर्म मौसम रहने के दौरान यह पाया कि मानसून के दौरान बारिश कम होने से फसलों के लिए भूजल की ज्यादा जरुरत होती है और सर्दियों में तापमान ज्यादा होने से मिट्टी अपेक्षाकृत शुष्क हो जाती है, जिससे सिंचाई करने की जरुरत होती है। अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून में बारिश की कमी और उसके बाद सर्दियों में अपेक्षाकृत तापमान ज्यादा रहने से भूजल पुनर्भरण में करीब 6-12 फीसदी की कमी आने का अनुमान है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि हमें ज्यादा दिनों तक हल्की वर्षा की जरुरत है। भूजल के स्तर में परिवर्तन मुख्य रूप से मानसून के दौरान हुई बारिश और फसलों की सिंचाई के लिए भूजल का दोहन किये जाने पर निर्भर करता है। अध्ययन में यह भी कहा कि सर्दियों में मिट्टी में नमी की कमी पिछले चार दशकों में बढ़ गई है, जो सिंचाई की बढ़ती मांग की संभावित भूमिका का संकेत देती है।
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