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आंतरिक कोर की घूर्णन में परिवर्तन से दिन 24 घंटे से भी लंबे , वैज्ञानिकों का दावा प्रक्रिया 2010 में हुई शुरु

कैलिफोर्निया । सभी जानते हैं कि 24 घंटे में एक बार दिन और एक बार रात होती है। अब वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर दिन की अवधि को लेकर बड़ा दावा किया है। एक शोध के मुताबिक धरती के आंतरिक कोर की घूर्णन गति कम हो रही है। इसका प्रभाव पृथ्वी की घूर्णन गति पर भी पड़ेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह प्रक्रिया 2010 से ही शुरू हो गई है और अब दिन की अवधि पहले से ज्यादा हो गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आंतरिक कोर की घूर्णन में परिवर्तन से दिन 24 घंटे से भी लंबे हो सकते हैं।

बता दें कि पृथ्वी की आंतरिक कोर एक ठोस स्फेयर है जो कि लोहे और निकेल से बनी है। वहीं इसके चारों ओर पिघली हुई धातुयें बेहद गर्म और तरल अवस्था में मौजूद हैं। पृथ्वी की 3 लेयर में मैंटल और क्रस्ट शामिल हैं। वैज्ञानिकों को पृथ्वी के आंतरिक कोर के बारे में जानकारी सीस्मिक तरंगों के जरिए मिलती है। भूकंप के वक्त रिकॉर्ड किए गए कंपन से यह अध्ययन किया गया है।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के नेचर जर्नल में छपे शोध में बताया गया है कि अगर यही ट्रेंड बरकरार रहता है तो दिन की अवधि बदल जाएगी। इसमें सेकंड के एक हिस्से का फर्क आना शुरू हो जाएगा जो कि लगातार बढ़ता ही रहेगा। शोधकर्ताओं में शामिल प्रोफेसर जॉन विडाले ने कहा कि पहले जब मुझे यह पता चला तो मैं खुद अचंभित रह गया, लेकिन जब पता चला कि 2 दर्जन ऐसे ही सिग्नल और पाए गए हैं तो यकीन हो गया कि इनर कोर में परिवर्तन हो रहा है। कई दशकों बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब इनर कोर के घूर्णन में परिवर्तन पाया गया है। धरती के इनर कोर को लेकर कई तरह की बहस चलती रहती है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पृथ्वी की घूर्णन गति से ज्यादा तेजी से घूमती है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि मैग्नेटिक फील्ड की वजह से इसका घूर्णन धरती के घूर्णन से कम होता है। हालांकि इस बात से कोई इनकार नहीं करता है कि इनर कोर से बैकट्रैकिंग होती है और इसका असर धरती की घूर्णन गति पर भी पड़ता है। 40 साल में पहली बार पाया गया है कि इनर कोर की घूर्णन गति मैंटल से कम है।

एक अन्य स्टडी में कहा गया था कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पहाड़ों के ग्लैशियर और अंटार्कटिका की बर्फ तेजी से पिघल रही है और इसकी वजह से भी पृथ्वी का घूर्णन धीमा हो रहा है। इसी वजह से दिन लंबे होते जा रहे हैं। रिसर्च में कहा गया था कि इस इफेक्ट को कम करने के लिए धरती की तरल वाली लेयर भी धीमी हो रही है। वहीं ठोस लेयर की गति तेज हो गई है। शोध में कहा गया था कि दिन की मियाद में कुछ लीप सेकंड ही जोड़े जा सकते हैं। 1972 के बाद से कुछ सालों में लीप सेकंड जोड़ने पड़ते हैं। इससे पता चलता है कि पृथ्वी हमेशा एक ही गति से नहीं घूमित है। बता दें कि वैज्ञानिक आंतरिक कोर के घूर्णन पर लगातार नजर रखते हैं। यह पृथ्वी का वह हिस्सा है जो कि 5 हजार 500 डिग्री सेल्सियस तक गर्म रहता है। वहीं यह हिस्सा हमारे पैरों से करीब 3 हजार मील दूर है। इंसान चांद का सफर तो कर चुका है लेकिन पृथ्वी के इस हिस्से तक पहुंचना अब भी नामुमकिन है।

Gaurav

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