– इसका उद्देश्य डोनबास में रूस को रोकने में यूक्रेन की मदद करना
पेरिस । रूस और यूक्रेन और इजराइल-हमास युद्ध के बीच अब फ्रांस ने ऐसा कदम उठाया है, जो यूरोप में बड़ी जंग को दावत दे सकता है। फ्रांस ने आधिकारिक तौर पर यूक्रेन में अपनी सेना भेजी है। फ्रांसीसी सैनिकों को यूक्रेन की 54वीं स्वतंत्र मैकेनाइज्ड ब्रिगेड के समर्थन में तैनात किया गया है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांस ने यूक्रेन में 1500 विदेशी सैनिकों को भेजने का फैसला किया है। फिलहाल, फ्रांसीसी सैनिकों के प्रारंभिक समूह में करीब 100 सैनिकों की टुकड़ी को यूक्रेन भेजा है। ये तैनाती ऐसे समय में की गई है, जब रूस ने यूक्रेन में अपना अभियान तेज कर दिया है। इन सैनिकों का उद्देश्य डोनबास में रूस को रोकने में यूक्रेन की मदद करना है। फ्रांसीसी टुकड़ी में तोपखाने के विशेषज्ञ हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि फ्रांस ने जिन सैनिकों को यूक्रेन भेजा है वे तीसरी इन्फैंट्री रेजिमेंट से हैं। जो फ्रांस की मुख्य टुकड़ी है। फ्रांस की विदेशी सेना में बड़ी संख्या में यूक्रेनियन और रूसी शामिल हैं। फ्रांस की इस विदेशी सेना को कमांड फ्रांसीसी अधिकारी करते हैं, लेकिन इसमें तैनात सभी अधिकारी और कर्मचारी विदेशी हैं। इसमें सैनिकों को गुमनाम होने की छूट भी होती है। इसमें काम करने वाले सैनिक तीन साल की अवधि के लिए सेवा करते हैं, जिसके बाद वे फ्रांसीसी नागरिकता की मांग कर सकते हैं। अगर कोई सैनिक घायल हो जाता है तो वह बिना किसी प्रतीक्षा अवधि के फ्रांसीसी नागरिकता का हकदार होता है। विदेशी सेना में कोई भी महिला नहीं है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों पिछले कई महीनों से यूक्रेन में फ्रांसीसी सेना को भेजने की धमकी दे रहे थे। हालांकि, उन्हें नाटो देशों से इस बारे में समर्थन नहीं मिला है। ये भी कहा जाता है कि अमेरिका नाटो सैनिकों को यूक्रेन में भेजे जाने का विरोध करता है। इस बीच फ्रांसीसी सैनिको के यूक्रेन भेजने के बाद ये सवाल खड़ा हो गया है कि क्या यूक्रेन में फ्रांस ने लाल रेखा को पार कर दिया है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन लगातार ये धमकी देते रहे हैं कि अगर नाटो की सेनाएं यूक्रेन में घुसती हैं तो इसे सीधे तौर पर युद्ध माना जाएगा। रूसी राष्ट्रपति पुतिन परमाणु ताकत के इस्तेमाल की धमकी भी देते रहे हैं।
माना जा रहा है कि विदेशी सैनिकों को भेजकर फ्रांस ने एक बचाव भी अपने पास रखा है। वह कह सकता है कि भेजे गए लोग फ्रांसीसी नागरिक नहीं हैं। इस फैसले से मैक्रां को यूक्रेन में विदेशी सेना भेजने पर अधिक घरेलू विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा और सख्त फैसले लेने वाले व्यक्ति की छवि का भी निर्माण करेगा।
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