COVID-19: सेंपल न इलाज, खाने में भी घटिया सामग्री से ठीक होने की जगह खराब हो रही सेहत

ग्वालियर, 31 अगस्त 2020। शहर में कोरोना संक्रमण थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। मरीजों का आंकड़ा छह हजार के करीब पहुंच पहुंच गया है, लेकिन बड़ी मरीजों की सही देखरेख नहीं हो पा रही है। प्रशासन कोविड-19 पॉजिटिव आते ही मरीज को आइसोलेशन सेंटर या अस्पतालों में भर्ती कराने के बाद भूल सा जाते है। मरीजों को सेंटर में 10 दिन से ज्यादा हो जाने के बाद भी सेंपल लिए जा रहे हैं और न इलाज के लिए कोई डॉक्टर पहुंचता है। माना जाता है कि COVID-19­ पॉजिटिव मरीजों को रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला भोजन दिया जाना चाहिए।  जबकि वास्तविकता सामने आई है कि शहर के सेंटर्स में जो भोजन दिया जा रहा है, वह कहने को तो नामी-गिरामी होटलों से आ रहा है, लेकिन उसे बनाने के लिए इस्तेमाल सामग्री बेहद घटिया है।   

ग्वालियर के जयारोग्य चिकित्सालय समूह के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के अलावा महाराजपुरा स्थित श्रमोदय, आमखो पहाड़िया के पास स्थित शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय, आईटीएम कॉलेज, एमपीसीटी डेंटल कॉलेज समेत आधा दर्जन से ज्यादा COVID-19­ सेंटर बनाए गए हैं। संक्रमण के शुरुआती दिनों में तो मरीजों की सही देखरेख हुई, लेकिन अब उपेक्षा की जा रही है। मरीजों का आरोप है कि इलाज के नाम पर औपचारिकता ही रह गई है, ऊपर से घटिया खाना उनकी सेहत सुधारने की जगह बिगाड़ रहा है।

डॉक्टर आ रहे, न हो रही सेंपलिंग, खाना भी ख़राब- आइसोलेशन सेंटर्स के कैदी बने मरीज

मरीजों का आरोप है कि उन्हे एक हॉल में बंद कर दिया गया है। करबी 10 दिन बाद भी उन्हें नहीं पता है कि वह पॉजिटिव से नेगेटिव हुए हैं या नहीं। इन अलग-थलग अस्पतालों में न डॉक्टर ही नहीं आ रहे हैं और न ही शिकायतों को कोई तवज्जो दी जा रही है। ऐसे ही एक सेंटर में भर्ती एख मरीज हिमंचली मिश्रा ने अपनी हालत का वीडियो वायरल कर दिया। हिंमांचली ने बताया कि यूं तो खाना शहर के मशहूर मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम की देखरेख में संचालित होटल तानसेन से आ रहा है। मैन्यू भी डाइट-प्लान के तहत है, लेकिन भोजन बनाने में इस्तेमाल सामग्री बेहद घटिया है। खराब गेंहूं की चबाने में दुश्वार चपातियां, मांड उतार कर बेचे जाने वाले घटिया बेस्वाद चावल औऱ तुउर के नाम पर ख़तरनाक खरतपतावार मटरा (खेसारी) की दाल दी जा रही है। इससे इम्युनिटी बढ़ने की बजाय मरीजों के हाज़मे ख़राब हो रहे हैं।  

आयुर्वेदिक चिकित्सा महाविद्यालय के आइसोलेशन सेंटर में भर्ती हिंमांचली ने व्यव्स्था के विरुद्ध बगावत कर जब अपने हालात का वीडियो वायरल किया तब प्रशासन के संज्ञान यह मामला आया, अब अधिकारियों से जांच कराने की बात कही जा रही है साथ ही होटल प्रबंधन को भी तलब करने को कहा है।

मिलावट के लिए सबसे मुफीद है खेसारी (मटरा) दाल

खेसारी दाल की मिलावट सबसे अधिक पसंद की जाने वाली अरहर की दाल में होती है। क्योंकि खेसारी का रंग, रूप, स्वाद अरहर दाल के सबसे करीब होता है। यह अरहर व चने की दाल से करीब दो गुनी सस्ती पड़ती है। खेसारी 30 से 35 रुपए प्रति किलो आसानी से मिल जाती है। जबकि अरहर की दाल 65 से 80 रुपए, चना दाल 65-70 रुपए, मटर दाल 50-60 रुपए प्रति किलो रहती है। यह दाल थोड़ी चौकोर व चपटी दिखती है। अरहर के दाल की तुलना में यह एक तरफ से चपटी व दूसरी तरफ से उठी हुई होती है। इसका रंग हल्का पीला होता है। जबकि मटर या अरहर की दाल गोलाकार दिखती है।

स्लो प्वाइजन है खेसारी दाल खेसारी दाल को डाक्टर धीमा जहर मानते हैं। खेसारी या लतरी (स्थानीय भाषा में मटरा) दाल का वैज्ञानिक नाम ‘लेथाइरस सेटाइवस’ है। इस दाल को रोजना खाने पर व्यक्ति न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर का शिकार हो सकता है। इस बीमारी में व्यक्ति के पैरों में अपंगता आ जाती है। क्योंकि इस दाल में बीटा N-ऑक्जिल डाइ-एमिनो प्रोपियोनिक (OADAP) एसिड पाया जाता है, जो तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। लम्बे समय तक खाने पर यह नर्व को कमजोर कर देती है। युवाओं तक को अधोरंग लकवा हो सकता है। कान की नसों पर भी इसका बंबे समय तक सेवन बुरा असर डालता है, आंखें भी कमजोर हो जाती हैं।

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