दुनिया

दस लाख से अधिक वन्यजीव प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर

नई दिल्ली । बदलते हालात में ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीन हाउस गैसों से बढ़ती चुनौतियों की वजह से पक्षियों का संरक्षण बेहद मुश्किल होता जा रहा है। तरह-तरह की बीमारियां बढ़ रही हैं। वन्यजीवों को विलुप्त होने या शिकार से बचाने के लिए भारत में 1873 में वन्यजीव संरक्षण कानून बनाए गए थे, लेकिन उनसे भी वन्यजीवों, खासकर पक्षियों को शिकार से बचाने में मदद नहीं मिल पाती थी। जब देश आजाद हुआ तो 1952 में वन्यजीव बोर्ड की स्थापना की गई। फिर उसका पुनर्गठन 1991 में किया गया। बोर्ड के गठन के बाद वन्यजीवों के संरक्षण की कोशिशें तेज हुईं, फिर भी जीव-जंतुओं की तस्करी और शिकार पर पूरी तरह रोक नहीं लग पाई। नतीजा ये रहा कि पिछली एक शताब्दी में तस्करी, शिकार और पारिस्थिकी-तंत्र के असंतुलन की वजह से अनेक दुर्लभ पक्षी भी धरती से हमेशा के लिए गायब हो गए। इसमें डोडो, कैरोलिना, तोता, यात्री कबूतर, हंसता हुआ उल्लू, लैब्राडोर बतख और दूसरे कई दुर्लभ पक्षी शामिल हैं। इस समय दस लाख से अधिक वन्यजीव प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। वर्तमान में पक्षियों की तकरीबन दस हजार जीवित प्रजातियां हैं, जिनमें से एक हजार चार सौ अस्सी विलुप्त होने को हैं और दो सौ तेईस गंभीर स्थिति में हैं। ‘स्टेट आफ इंडियाज बर्ड्स’ के मुताबिक कुछ ‘रैप्टर’ और बतखों की तादाद में सबसे ज्यादा कमी देखने को मिली है। इसी तरह भारतीय गौरैया और कठफोड़वा खत्म होने के कगार पर बताए जा रहे हैं। यों तो वन्य जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का खतरा लंबे समय से मंडराता रहा है, लेकिन पिछली एक शताब्दी में विज्ञान के विकास के साथ वन्यजीवों पर खतरा बहुत तेजी से बढ़ा है।

इसमें राष्ट्रीय स्तर के वन्य अभ्यारण्यों और उद्यानों के निर्धारित क्षेत्रफल को बढ़ाना और पक्षियों के संरक्षण के लिए बजट में और अधिक व्यय का प्रावधान, अवैध शिकार, सुरक्षा क्षेत्र को और बेहतर करना, दुर्लभ पक्षियों के संरक्षण पर और ध्यान देना, पर्यावरण को पक्षियों के अनुकूल बनाना, विकास की अंधी दौड़ में पक्षी उद्यानों के आसपास की रिहायशी बस्ती को हटाना या दूसरे स्थानों पर उद्यानों को स्थानांतरित करना, जल, भोजन और अन्य वातावरणीय समस्याओं को खत्म करके पक्षियों के वास के अनुकूल बनाना और शिकारियों को कठोर दंड देने के लिए मुफीद कानून बनाने से लेकर पक्षियों के प्रति लोगों में प्यार बढ़ाने जैसे कदम शामिल किए जाने चाहिए। पक्षियों को बचाने की चुनौती जानवरों से ज्यादा है।

दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण के लिए विश्व स्तर पर वन्यजीवों की दुर्लभ प्रजातियों का अंतरराष्ट्रीय व्यापार समवाय भी बनाया गया है, जिसका कार्य संकटापन्न प्रजातियों के अवैध अंतरराष्ट्रीय व्यापार को रोकना है। भारत भी इसका सदस्य है। भारत ने इस बाबत अनेक जीव-जंतुओं की तस्करी पर रोक लगाने के लिए बड़े स्तर पर कदम उठाए हैं, लेकिन वे नाकाफी रहे हैं, क्योंकि पक्षियों और दूसरे वन्यजीवों की घटती संख्या और लुप्त होती पक्षी प्रजातियों के संरक्षण को मुकम्मल नहीं किया जा सका है। ऐसे में सवाल उठता है कि पक्षियों की घटती संख्या को कैसे रोका जा सकता है? क्या संरक्षण वाली परियोजनाओं को और सुधारने की

Gaurav

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