कराची : मौलाना फजल-उर-रहमान पाकिस्तान की जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम पार्टी के प्रमुख हैं। दरअसल, 1988 में बेनजीर भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने पर मौलाना ने सियासी मंच से कहा था कि एक औरत की हुकुमरानी उन्हें कबूल नहीं है। 8 फरवरी को पाकिस्तान में आम चुनाव होने वाले हैं। मौलाना चुनाव के अहम किरदारों में से एक हैं। 2002 में मौलाना चंद वोटों से पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने से चूक गए थे। इस बार के चुनाव में भी इनकी सियासत की चर्चा खूब है। इमरान खान के सियासत में आने का सबसे ज्यादा नुकसान सहने वालों में फजल उर रहमान भी हैं। खैबर पख्तूनख्वा मौलाना की जेयूआई(एफ) का गढ़ है। इमरान की पार्टी ने खैबर में चुनाव जीता। इस पर मौलाना ने एक बार तो चिढ़ कर कह दिया था कि खान की पार्टी को वोट देना हराम है। 2019 में मौलाना ने पाकिस्तान में तख्तापलट के लिए मुहिम छेड़ दी थी। वो करीब 1 लाख समर्थकों के साथ आजादी मार्च निकालने लगे। दावा किया था कि सेना की एक ब्रिगेड तख्तापलट करने के लिए मौलाना का इस्तेमाल कर रही है। मौलाना अलग-अलग धड़ों को साधने में माहिर हैं, सेना ने मौलाना की इसी खूबी का इस्तेमाल कर इमरान की सरकार गिरवाई और पीपीपी और पीएमएल(एन) का गठबंधन कराया। इसलिए गठबंधन का चीफ खुद मौलाना को बनाया गया था। मौलाना की भी इस गठजोड़ में राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी। मौलाना खैबर से इमरान को खदेड़ना चाहते थे और फिर से पाकिस्तान की राजनीति में चमकना चाहते थे। इमरान के जेल में होने से उनको खैबर में वोटों की चिंता नहीं है। वो इस चुनाव में भी किंग मेकर की भूमिका में आकर चौंका सकते हैं।