मध्यप्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियों पर ‘ख़बर ख़बरों की’ के प्रधान संवादाता (दिल्ली) S.Kumar की विश्लेषणात्मक टिप्पणी
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान इन दिनों सियासी गलियारों में गूंज रहे हैं। अपने विधानसभा क्षेत्र बुधनी में शिवराज ने 2 जनवरी, 2023 को कहा- मुख्यमंत्री के पद तो आ-जा सकते हैं, लेकिन मामा और भाई का पद कभी कोई नहीं छीन सकता। शिवराज ने कहा‑कहीं न कहीं कोई बड़ा उद्देश्य होगा यार….कई बार राजतिलक होते-होते वनवास भी हो जाता है, लेकिन जरूर किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है।
शिवराज की मनःस्थित का विश्लेषण करने से पूर्व उनके 30 जून 2020 को दिये एक बयान का उल्लेख आवश्यक है। उन्होंने कहा था‑जब भी मंथन होता है तो अमृत बंट जाता है, लेकिन विष शिव पी जाते हैं। तब के मंथन में निकले ‘ज्योति’ स्वरूप विष को वह ‘सत्ता-नवनीत’ के सहारे पचा गए थे, किंतु अब ससम्मान सत्ताच्युत होने के बाद भी ‘अमृतपायी के नित प्रसारित होते वैभव के प्रकाश में ‘विषपायी’ हलाहल के ताप से विचलित हो उठे हैं, यह उनके लगातार कथनानुकथन से स्पष्ट हो गया है। इससे यह भी सिद्ध हो गया है कि मात्र नाम रखने से कोई ‘शिव’ नहीं हो जाता। गरल को सुधा की तरह पान कर अमर हो जाने की सामर्थ्य हमारे ‘मामा’ में कदाचित थी ही नहीं, उनके पास एक ‘होलिका-आवरण’ था जो विषमता की अग्नि-परीक्षा में जल कर भस्म हो रहा है।
लगातार भावुक संवाद-संप्रेषणों से मामा शिवराज क्या यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि वह वर्तमान परिस्थितियों से समझौता नहीं करने वाले? अथवा केंद्रीय नेतृत्व और पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए कोई और गुप्त संदेश संप्रेषित करना चाह रहे हैं?
शिवराज ने चुनाव परिणाम के पश्चात दिल्ली जाने के प्रश्न पर कहा था कि अपने लिए मांगने से बेहतर मैं मरना पसंद करूंगा। उससे कुछ माह पूर्व कहा था‑मुझे बिल्कुल अहम नहीं है कि मैं ही योग्य हूं। पार्टी दरी बिछाने का काम देगी तो राष्ट्रहित में यह भी करूंगा। पार्टी कहेगी कि जैत में रहो तो वहीं रहूंगा। राजनीति में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं होनी चाहिये। जब शिवराज को भविष्य में साइडलाइन किए जाने की प्रतीति होने लगी तो कहा था‑जब मैं चला जाऊंगा तब याद आऊंगा तुम्हें। चुनाव लड़ूं की नहीं लड़ूं। मैं कितना भाग्यशाली हूं कि एक साथ इतने मंदिरों में भगवान की सेवा करने का मौका मिला।
उन्हें टिकट नहीं दिए जाने की आशंका थी, किंतु पार्टी ने टिकट दिया। पार्टी ने उनके साथ ही केंद्र में सक्रिय नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजय वर्गीय और फग्गन सिंह कुलस्ते को भी मैदान में उतार दिया तो शिवराज को मुख्यमंत्री पद छिनता दिखने लगा और उनका बयान आया‑मुझे दिल से बताना, मैं कैसी सरकार चला रहा हूं, अच्छी सरकार चला रहा हूं कि बुरी सरकार? तो ये सरकार आगे चलना चाहिए कि नहीं? मामा को मुख्यमंत्री बनना चाहिये कि नहीं? साथ ही यह ‘विवश पुछल्ला’ भी लगाया‑मोदी जी को प्रधानमंत्री बनना चाहिये कि नहीं?
चुनाव परिणाम के बाद जब इंद्रासन छिनने के आसार निर्मित हो गए तब शिवराज ने कहा‑मामा और भैया का जो पद है, वो दुनिया का सबसे बड़ा पद है, इससे बड़ा पद कोई नहीं है। इंद्रा का सिंहासन भी इसके आगे बेकार है।
एक और बयान में उन्होंने कहा था‑वह दिल्ली नहीं जा रहे हैं, छिंदवाड़ा जा रहे हैं, और जुट गए थे मोदी जी के गले में ‘29 सीटों की माला’ पहनाने की तथाकथित जुगत में!
शिवराज ने 12 दिसंबर को कहा‑एक बात मैं बड़ी विनम्रता से कहना चाहता हूं कि अपने लिए कुछ भी मांगने से बेहतर मैं मरना समझूंगा। वह मेरा काम नहीं है, इसलिए मैं दिल्ली नहीं जाऊंगा। इसी संवादाता सम्मेलन में उन्होंने संतुलन के प्रयास में यह भी कहा था कि पार्टी ने उन्हें 18 साल तक मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया था उसके लिए मैं आभारी हूं।
शिवराज के कथनानुकथन की श्रृंखला के विश्लेषण से उनके उन प्रयासों की झलकियां देखी जा सकती है जो सत्ता छिनने की की बेला के पल-पल समीप आने की प्रतिक्रिया में तल्ख़ियों में तब्दील होती चली गई। ‘शिव’ यह भूल गए कि प्रारब्ध ने उन्हें अचानक मध्यप्रदेश के इंद्रासन पर आसीन कराया था। कर्म फल का प्रताप साढ़े अठारह वर्ष तक उन्होंने सपरिवार बख़ूबी भोगा। ‘अर्धांग सहधर्मी’ के कर्मों से उनके पुण्य क्षीण हुए और डॉ.मोहन यादव के प्रारब्ध ने उन्हें उसी तरह मुख्यमंत्री बना दिया जिस तरह कभी शिवराज बने थे।
अब शिवराज का कर्त्तव्य है कि वह कुछ अवधि तक निष्काम होकर अपने साढ़े अठारह वर्ष के कार्यकाल में कृत कर्मों का निष्ठापूर्ण आत्मविश्लेषण करें। ‘द्वापर’ के मोहन के गीतोपदेश का मनन करें और सच्चे अर्थों में निष्काम कर्मयोगी बन कर पार्टी और देश की सेवा करें। स्थितप्रज्ञता से लिये गए निर्णय और क्रियाकलाप से प्राप्त होने वाला ‘नवनीत’ ही उन्हें उनके मन में पनपे कलुष-विष के वमन से रोक उनके सच्चे ‘विषपायी’ होने का प्रमाण बन सकेगा।
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