नई दिल्ली। गुरुवार को यह राज्यसभा में पेश हुए ये विधेयक कानून की शक्ल जा रहे हैं अब अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे 125 साल से अधिक पुराने तीन कानून खत्म हो जाएंगे। इनमें भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (आईईए) शामिल हैं। भारत के कानूनों को बदलने के लिए पेश तीन अहम विधेयक बुधवार को लोकसभा से पारित हो गए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में चर्चा का जवाब दिया। अब ये विधेयक राज्यसभा में पेश किए जाएंगे। यहां से पास होने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून की शक्ल में आ जाएंगे। मौजूदा कानून से नया कानून कितना अलग होगा? आम आदमी पर क्या असर पड़ेगा? न्यायिक प्रक्रिया में क्या बदलाव आएगा?
इन कानूनों पर क्या आपत्ति है? आइए समझते हैं…
भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) भारतीय न्याय (दूसरी) संहिता, 2023 (बीएनएस)
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) भारतीय नागरिक सुरक्षा (दूसरी) संहिता, 2023 (बीएनएसएस)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (आईईए) भारतीय साक्ष्य (दूसरा) अधिनियम 2023 (बीएसए)
सीआरपीसी जगह लेने वाले नए कानून में धाराएं बढ़ेंगी
सीआरपीसी में पहले 484 धाराएं थीं। भारतीय नागरिक सुरक्षा (दूसरी) संहिता, 2023 (बीएनएसएस) कानून बनने के बाद दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की जगह लेगा। नए कानून में 531 धाराएं होंगी। इस कानून की 177 धाराओं में बदलाव किए गए हैं। 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं। 39 नई उप-धाराएं जोड़ी गई हैं। 44 नए प्रावधान जोड़े गए हैं। 14 धाराएं हटा दी गई हैं।
पहली बार आतंकवाद की व्याख्या
इसमें कहा गया है कि जो कोई भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा या प्रभुता को संकट में डालने या संकट में डालने की संभावना के आशय से या भारत में या विदेश में जनता अथवा जनता के किसी वर्ग में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने की संभावना के आशय से बमों, डाइनामाइट, विस्फोटक पदार्थों, आपयकर गैसों, न्यूक्लियर का उपयोग करके ऐसा कार्य करता है, जिससे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु होती है, संपत्ति की हानि होती है, या करेंसी के निर्माण या उसकी तस्करी या परिचालन हो तो वह आतंकवादी कृत्य है। इसके दोषी को मृत्युदंड या आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान होगा। आजीवन कारावास की सजा पाए दोषी को पेरोल भी नहीं मिलेगी।
IPC में भी बड़े बदलाव
भारतीय दंड संहिता (IPC) को अब भारतीय न्याय (दूसरी) संहिता, 2023 (बीएनएस) के नाम से जाना जाएगा।
सरकार का बड़ा सैद्धांतिक फैसला; अब सरकार या शासन की जगह नागरिक पर फोकस।
आईपीसी में अब 511 धाराओं के स्थान पर अब 358 धाराएं होंगी।
न्याय संहिता की 175 धाराओं में बदलाव, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं; 22 धाराएं निरस्त।
अब अपराध से जुड़े तमाम दस्तावेजों को डिजिटलाइज करने का प्रावधान।
FIR, केस डायरी, चार्जशीट और जजमेंट का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा।
नए कानूनों का मकसद दंडित करना नहीं; कानून और अदालतों की चौखट से इंसाफ दिलाना।
भारतीय नागरिकों को संविधान से जितने अधिकार मिले हैं, सरकार उनकी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध।
18 राज्य, 6 केंद्र शासित प्रदेश, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाईकोर्ट से मिले सुझावों के आधार पर कानूनों में बदलाव।
कानूनों में बदलाव के लिए पांच न्यायिक अकादमी, 22 विधि विश्वविद्यालयों से भी बातचीत की गई।
सरकार के पास 142 सांसद, और 270 विधायकों के साथ-साथ जनता के भी सुझाव। नए कानूनों में जनप्रतिनिधियों की राय को भी जगह।
चार साल तक कानूनों में बदलावों पर मंथन हुआ। गृह मंत्री शाह ने खुद 158 बैठकों में भाग लिया।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में क्या नया ?
समय के साथ अपराध के तरीके भी बदले हैं। सरकार, पुलिस और जांच एजेंसियां खुद इसे स्वीकार कर जरूरी बदलावों की पैरोकारी करती रही हैं। ऐसे में सरकार ने अपराध को साबित करने में जुटाए जाने वाले साक्ष्यों को अधिक प्रमाणिक बनाने की पहल की है। ऑनलाइन क्राइम और डिजिटल सबूतों पर भी बड़े फैसले लिए गए हैं।
एविडेंस एक्ट, 1872 में 167 धाराएं थीं। अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 धाराएं होंगी।
23 धाराओं में बदलाव , एक नई धारा जोड़ी गई है; 5 धाराओं को निरस्त करने का फैसला।
अब दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार; अब इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल,नेटवर्क जैसे हालात में सर्वर पर जमा डेटा या लॉग्स को भी सबूत माना जाएगा।
कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप, मोबाइल पर भेजे जाने वाले संक्षिप्त लिखित संदेश (SMS), वेबसाइट भी अब कानूनी रूप से वैध माने जाएंगे।
स्मार्टफोन और लोकेशन मुहैया कराने वाले डिवाइस में लोकेशनल को भी सबूत माना जाएगा।
नए कानूनों के तहत आरोपी के पास से बरामद डिवाइस पर उपलब्ध मेल को भी सबूत माना जाएगा।
निर्दोष नागरिकों को फंसाने की प्रवृत्ति पर नकेल कसने के लिए तलाशी और जब्ती की प्रक्रिया के दौरान वीडियो रिकॉर्ड करना अनिवार्य बनाया गया।
घटनास्थल पर जांच और जब्ती के दौरान बिना वीडियो रिकॉर्डिंग के कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी।
दोष सिद्धि के लिए फॉरेंसिक साइंस का प्रयोग बढ़ेगा
7 साल या इससे अधिक सजा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम का दौरा अनिवार्य।
इसका मकसद पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य का रिकॉर्ड सुरक्षित रखना। इससे कोर्ट में दोषियों के बरी होने की संभावना घटेगी।
यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान और इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य शर्त।
पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस बताना होगा।
7 साल या उससे अधिक जेल की सजा होने पर सरकार केस वापस नहीं ले सकेगी।
नए कानूनों में केस वापस लेने के लिए पीड़ित का पक्ष सुना जाना अनिवार्य शर्त; इससे नागरिक अधिकारों की रक्षा में मदद मिलेगी।
हर 15 दिनों में फरियादी के पास शिकायत से जुड़ी अपडेट भेजने की जवाबदेही भी तय की गई।
अदालतों का बोझ घटेगा; अदालतों से 30 दिनों के भीतर फैसले आएंगे
कानूनों में बदलाव से जिला और सत्र अदालतों का दबाव कम होगा। दावा है कि नए कानूनों में बदलाव के बाद सत्र अदालतों के 40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे। तीन साल तक की सजा वाले अपराधों पर समरी ट्रायल होगा। इससे अदालतों पर बोझ घटेगा। भारतीय नागरिक सुरक्षा (दूसरी) संहिता, 2023 (बीएनएसएस) जो पहले Cr.PC थी। इसकी धारा 262 के तहत ऐसे मामलों का जल्द निपटारा होगा।
नए कानूनों में आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय।
केवल विशेष परिस्थितियों में 90 और दिन मिलेंगे।
इस बदलाव के बाद अब 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त होगी।
जांच के फौरन बाद अदालतों में ट्रायल शुरू होगा।
अदालतों से आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देना अनिवार्य होगा।
बहस या सुनवाई पूरी होने के 30 दिनों के अंदर अदालतों का फैसला जारी होना भी अनिवार्य।
फैसले की प्रति सात दिनों के भीतर ऑनलाइन उपलब्ध कराने का नियम भी नए कानून में होगा।
अब भारत से भागने पर भी नहीं मिलेगा चैन, अदालतों से जरूर मिलेगी सजा
राज्य स्तरीय सिविल सेवक या संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) पास करने के बाद सचिव स्तर के अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए भी बड़े बदलाव किए गए हैं। अब सिविल सर्वेंट या पुलिस अधिकारी के खिलाफ ट्रायल की अनुमति देने का अधिक समय नहीं मिलेगा। सरकार को चार महीने यानी 120 दिनों में अनुमति देने पर अंतिम फैसला लेना होगा। समय सीमा बीतने के बाद भी अनुमति न मिलने की सूरत में अदालतों में ट्रायल शुरू कर हो जाएगा।
अब घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्की प्रशासन कराएगा।
अंतरराज्यीय गिरोह और संगठित अपराधों के खिलाफ और कठोर सजा का प्रावधान।
गैंग रेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान।
शादी, नौकरी, प्रमोशन और झूठे वादे जैसे फरेब या गलत पहचान के आधार पर यौन संबंध बनाना पहली बार अपराध के दायरे में लाया गया।
सेशन्स कोर्ट ने अगर किसी आरोपी को भगोड़ा घोषित किया है तो गैरमौजूदगी में भी पूरा होगा ट्रायल।
अनुपस्थिति में ट्रायल पूरी करने के बाद अदालत सजा भी सुनाएगी, भले ही आरोपी दुनिया में कहीं भी छिपा हो।
अब बच्चों और महिलाओं पर गंदी नजर डालने पर खैर नहीं
18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के साथ अपराध के मामले में मृत्यु दंड का भी प्रावधान जोड़ा गया है। मॉब लिंचिग के लिए 7 साल, आजीवन कारावास और मृत्यु दंड के तीनों प्रावधान किए गए।
बच्चों के साथ अपराध के दोषी को 7 साल से बढ़ाकर 10 वर्ष की सजा का प्रावधान।
कई अपराधों में जुर्माने की राशि बढ़ाई गई है।
अब मृत्यु दंड को आजीवन कारावास में ही बदला जा सकेगा।
आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषी की सजा कम करने की अपील पर भी कठोरता। कम से कम 7 साल की सजा काटनी ही होगी।
सात साल के कारावास की सजा को कम से कम 3 साल तक की सजा में ही बदला जा सकेगा।
राजद्रोह को पूरी तरह से समाप्त किया जा रहा है। इसकी जगह देशद्रोह से जुड़ा नया कानून लागू होगा। कानूनों में कुल 313 बदलाव किए गए हैं।
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