एक अध्ययन में इस बात पर फोकस किया गया है कि हैबिटेबल जोन की बजाय हमें ठंडे एक्सोप्लैनेट्स पर जीवन ढूंढने के लिए काम करना चाहिए। ठंडे ग्रहों की बर्फीली सतह के नीचे महासागर मौजूद हो सकते हैं। इसमें बताया गया है कि ग्रह के नीचे मौजूद महासागर इसके इंटरनल हीटिंग मैकेनिज्म का इस्तेमाल कर रहे होंगे। हमारे सौरमंडल में मौजूद यूरोपा और इंक्लेडस नाम के चंद्रमाओं पर भी ऐसा ही होता है। डॉ. लिने क्विक ने बताया कि हमारे विश्लेषण के मुताबिक इन 17 बर्फीली दुनियाओं में बर्फ से ढकी सतहें मौजूद हो सकती हैं। मगर इन ढकी सतहों के नीचे मौजूद महासागरों में पानी को जमने से बचाने के लिए इनके सूर्य से रेडियोएक्टिव तत्व और ज्वार बल की मदद मिल रही होगी। इन दोनों चीजों की मदद से इतनी हीटिंग मिल रही होगी, जो पानी को आसानी से जमने नहीं देती है।
इसी हीटिंग के चलते कई बार महासागरों का पानी सतह को चीरकर बाहर भी आ रहा है। हालांकि, इस स्टडी में ये नहीं बताया गया है कि ग्रहों की बनावट किस तरह से हुई है। मगर पानी की मौजूदगी कहीं न कहीं इस बात संकेत भी देती है कि इन ग्रहों पर जीवन हो सकता है। ये भी बताया गया कि जीवन अभी बैक्टीरिया और माइक्रोब्स की अवस्था में हो। हालांकि, नासा की स्टडी में ग्रहों पर जीवन की मौजूदगी के बारे में ज्यादा कुछ विस्तार से नहीं कहा गया है। ऐसे में किसी ठोस नतीजे पर पहुंचना जल्दबादी होगी।
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