नई दिल्ली । समान नागरिक संहिता के परिपालन का आगाज करने जा रहा उत्तराखंड देश के अन्य राज्यों का प्रेरणास्रोत बनने जा रहा है।इस कानून के प्रारुप पर चर्चा करने को आतुर देवभूमि की विधान सभा के कृतत्व की सार्थकता इसकी लक्ष्मण रेखा तय करेगी। हालांकि कानून की राय में राज्य को ऐसा अधिकार संविधान में नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर धामी स्पष्ट कर चुके हैं कि उत्तराखंड में प्रस्तावित यूसीसी का उद्देश्य किसी वर्ग को निशाना बनाना नहीं है।
उत्तराखंड सरकार ने 27 मई, 2022 को समान नागरिक संहिता की संभावनाएं तलाश कर इसे तैयार करने के लिए और नागरिकों के सभी निजी मामलों से जुड़े कानूनों की जांच के लिए विशेषज्ञों की कमेटी बनाई थी।इस विधेयक को देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड या कॉमन सिविल कोड की बहुचर्चित कल्पना को साकार करने की नींव के पत्थर माना जा रहा है।लेकिन इस पर विधान सभा में चर्चा से पहले ही राजनीतिक और धार्मिक हंगामा होने के आसार लग रहे हैं। यानी 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले कानून का ये बड़ा सियासी मुद्दा बन सकता है।
इन नए कानून के तहत तलाक सिर्फ कानूनी प्रक्रिया से ही होगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट और संसद से इस्लाम या किसी अन्य मजहब में प्रचलित तीन तलाक पहले ही अमान्य और दंडनीय अपराध हो गया है। नए कानून की जद में तलाक़ ए हसन और तलाक़ ए अहसन भी आएंगे। यानी तलाक के ये मनमाने और एकतरफा तरीके भी गैरकानूनी माने जाएंगे।
बिना विवाह किए एक साथ रहने यानी लिव इन रिलेशनशिप में बढ़ते अपराधों पर लगाम लगाने का भी प्रावधान नए दौर के नए कानून में है।लिव इन की जानकारी सरकार को तय प्रक्रिया और तय प्रारूप के तहत देनी होगी।यानी इनके भी रजिस्ट्रेशन का प्रावधान होगा।रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के तहत ही लिव इन रिलेशन की जानकारी युवक-युवती के अभिभावकों के पास भी जाएगी। जानकारी न देने पर सज़ा का प्रावधान भी किया गया है।नए मसौदे में बहुविवाह, हलाला और इद्दत पर रोक लगाने का प्रावधान है। इसके अलावा युवतियों के विवाह की न्यूनतम आयु में भी बदलाव कर लड़कों के बराबर यानी 21 साल करने पर विचार किया जायेगा ताकि वे विवाह से पहले स्नातक हो सकें।
सबके लिए शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने का प्रावधान होगा।विवाह के रजिस्ट्रेशन के बिना परिवार या दंपति को मिलने वाली किसी भी सरकारी सुविधा यानी ज्वाइंट अकाउंट, साझा संपत्ति आदि का लाभ नही मिलेगा।ग्राम स्तर पर भी विवाह के रजिस्ट्रेशन की सुविधा और सेवा मौजूद होगी।नए कानून के मसौदे में विवाह की तरह ही विवाह विच्छेद यानी तलाक के भी एक समान आधार होंगे।पति-पत्नी दोनो को तलाक के समान आधार उपलब्ध होंगे। तलाक का जो ग्राउंड यानी आधार नीति पति के लिए लागू होगा उसी आधार पर पत्नी भी तलाक लेने के लिए नीति का पालन करेगी
अभी अलग अलग मजहबों के अनुयायियों के लिए धार्मिक पर्सनल लॉ हैं।उनके तहत पति और पत्नी के पास तलाक के अलग अलग ग्राउंड हैं।प्रस्तावित कॉमन सिविल कोड के प्रारूप में मजहबी कानून गौण और नया एकसमान कानून प्रभावी करने का प्रस्ताव होगा।समान नागरिक कानून में बहुपति या बहुपत्नी यानी पॉलीगैमी को कानूनी रूप से अवैध मानते हुए इस पर रोक लगाई जाएगी।यानी अब बिना समुचित आधार और कानून की मंजूरी के वैध पति पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह नहीं कर सकेंगे।
नए समान नागरिक कानून के प्रारूप में पैतृक और पारिवारिक उत्तराधिकार के तहत महिलाओं को भी पुरुषों के समान पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलेगा।पर्सनल लॉ के मुताबिक, अब तक बेटे के मुकाबले बेटी का हिस्सा कम होता था लेकिन नए कानून में इसे निरस्त कर बराबरी में लाने की बात कही गई है। नए दौर में आए दिन आने वाली एक और बड़ी समस्या का निदान इस प्रस्तावित कानून में है।किसी नौकरीशुदा बेटे की मौत पर उसकी पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण की भी जिम्मेदारी पत्नी पर होने का भी प्रावधान है।लेकिन अगर नौकरी करने वाले पति की मौत के बाद पत्नी अगर पुर्नविवाह कर लेती है तो पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में माता पिता के हिस्से का भी अनुपात निश्चित किया गया है।
नए मसौदे में पत्नी के माता पिता की भी चिंता की गई है।दंपति में से अगर किसी की पत्नी की मौत हो जाए और पत्नी के माता पिता का कोई सहारा न हो तो उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी भी पति को उठानी पड़ेगी।दामाद अगर ऐसा करने से इंकार करे तो उसके सास ससुर इस कानून का सहारा लेकर अपना कानूनी अधिकार प्राप्त कर सकते हैं। नए प्रस्तावित कानून में बच्चा या उत्तराधिकारी गोद लेने का अधिकार सबको होगा। धार्मिक मान्यता से ऊपर उठकर कोई भी पुरुष या महिला बच्चा या बच्ची गोद ले सकेंगे।यानी ये अधिकार भी धर्म पंथ और लिंग से ऊपर होगा। इस तरह मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार मिलेगा। प्राकृतिक आपदा या पारिवारिक विवाद में संतान के अनाथ होने की स्थिति में गार्जियनशिप की प्रक्रिया भी आसान की जाएगी।बच्चे की राय और उसके भविष्य को ज्यादा तरजीह दी जाएगी। पति-पत्नी के बीच झगड़े और बच्चों के भविष्य के मद्देनजर उनके बच्चों की कस्टडी सभी पहलुओं पर विचार करते हुए उनके दादा-दादी या नाना-नानी को भी दी जा सकती है। देश में तैयार किए गए इस प्रस्तावित कॉमन सिविल कोड पर उत्तराखंड विधान सभा शीतकालीन सत्र के दौरान इस पर चर्चा कर सकती है।