नई दिल्ली । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने चंद्रयान-3 की सफल लैडिंग कर दुनिया में अपना अलग स्थान बना लिया है। कई देशों की नजरे ISRO पर है। सभी को लगता है कि अंतरिक्ष पर भारत के साथ मिलकर काम करना चाहिए। यही वजह है कि जापान भी भारत के साथ मिलकर चंद्रयान-4 की तैयारी कर रहा है। यह मिशन चंद्रमा पर पानी की तलाश और मौजूद खनिजों की खोज करेगा। हालांकि पानी की संभावना का संकेत चंद्रयान 3 पहले ही दे चुका है।
खबर है कि भारतीय स्पेस एजेंसी ने चांद पर जाने के लिए जापान की जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी(जाक्सा) के साथ साझेदारी की है। दोनों मिलकर लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन मिशन (ल्यूपेक्स) पर काम कर रहे हैं, जिसे चंद्रयान-4 का नाम दिया गया है। जापानी स्पेस एजेंसी के मुताबिक,ल्यूपेक्स को साल 2025 में एच 3 रॉकेट की मदद से लॉन्च किया जा सकता है। रोवर को मिलाकर इसके पेलोड का कुल वजन 350 किलोग्राम से ज्यादा का होगा। साथ ही यह 3 महीनों से ज्यादा समय तक काम करेगा। खास बात है कि ल्यूपेक्स भी चांद के दक्षिणी ध्रुव के क्षेत्र में लैंड करेगा, जहां पहुंचने का कीर्तिमान भारत पहले ही स्थापित कर चुका है। इस मिशन में इसरो की ओर से सैंपल एनालिसिस पैकेज (आईसेप), ग्राउंड पैनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) और मिड-इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर जाएंगे। जबकि नासा न्यूरोन स्पेक्ट्रोमीटर (एनएस) और इसा एक्सोस्फेरिक मास स्पेक्ट्रोमीटर फॉर लुपेक्स (एमएमएस-एल) भेजेगा। बता दें कि इसके पहले जनवरी 2020 में ही जाक्सा ने इस मिशन की तैयारी शुरू कर दी थी। उस दौरान ही I इसरो के साथ मिलकर काम करने के लिए एक बड़ा मैनेजमेंट प्लान भी तैयार किया गया था।
जापानी स्पेस एजेंसी के मुताबिक, जाक्सा भारत के साथ मिलकर काम कर रहा है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि चांद पर पानी है या नहीं। अगस्त को ही चंद्रयान-3 के जरिए चांद पर पहुंचे इसरो के लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान ने चांद की सतह पर पानी होने के संकेत दिए थे। भारत की इस सफलता को काफी अहम माना जा रहा था। इसके अलावा भी प्रज्ञान ने तत्वों की खोज समेत धरती पर कई बड़ी जानकारियां भेजी थी। जाक्सा के अनुसार, ल्यूपेक्स का काम पानी और अन्य संसाधनों के लिए चांद की सतह पर खोज करना। साथ ही चांद की सतह पर घूमने में विशेषज्ञता हासिल करना है। यह प्रोजेक्ट अंतरराष्ट्री साझेदारी का है, जिसके तहत जाक्सा ने लूनर रोवर की जिम्मेदारी उठाई और इसरो लैंडर तैयार करेगा, जो रोवर को लेकर जाएगा। इसके साथ ही यूरोपियन स्पेस एजेंसी (इसा) और नासा यानी नेशनल एयरोनॉटिक्स स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन की तरफ से तैयार किए गए कुछ उपकरण भी रोवर पर लगाए जाएंगे।
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