चीन और अमेरिका बनाना चाहता था अपना स्थायी नौसैनिक अड्डा, मंसूबों पर फिरा पानी
कोलंबो। श्रीलंका के पूर्वी बंदरगाह त्रिंकोमाली में एनर्जी हब बनाने की कबायद के चलते भारत का युद्धपोत पहुंच गया है। इसके पहुंचने पर श्रीलंका ने जोरदार स्वागत किया है। भारतीय नौसेना ने आईएनएस खंजर के त्रिंकोमाली पहुंचने की तस्वीरें भी जारी की है। हालांकि इससे चीन और अमेरिका दोनों के मंसूबों पर पानी फिर गया है। चीन के हाथों कंगाल होने के बाद अब श्रीलंका को भारत से बड़ी उम्मीदें हैं। इन्हीं उम्मीदों को लेकर श्रीलंकाई राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे इस महीने भारत यात्रा पर पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक लंबी बैठक भी की थी। इस बैठक में आपसी संबंधों को मजबूत करने के अलावा श्रीलंका के पूर्वी बंदरगाह त्रिंकोमाली में एक एनर्जी हब बनाने पर भी चर्चा हुई थी। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि श्रीलंका ने भारत की दशकों पुरानी इस मांग को स्वीकार कर लिया है। बता दें कि त्रिंकोमाली वही बंदरगाह है, जिसे एक समय अमेरिकी सैन्य अड्डे के तौर पर देखा जाने लगा था। यहां की रेत में कई दुर्लभ खनिज पदार्थ भी छिपे हुए हैं।
भारतीय नौसेना के मिसाइल कार्वेट आईएनएस खंजर के त्रिंकोमाली पहुंचने पर श्रीलंकाई नौसेना ने गर्मजोशी से स्वागत किया। इस दौरान दोनों देशों की नौसेना के बीच व्यावसायिक बातचीत, खेल कार्यक्रम और जहाज पर यात्रा निर्धारित है। भारतीय नौसेना ने आईएनएस खंजर के त्रिंकोमाली पहुंचने की तस्वीरें भी जारी की है। इसमें भारतीय युद्धपोत के कप्तान श्रीलंकाई नौसेना के अधिकारी से हाथ मिलाते हुए नजर आ रहे हैं। श्रीलंका की भौगोलिक उपस्थिति हिंद महासागर में रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि चीन और अमेरिका दोनों ही श्रीलंका में अपना स्थायी नौसैनिक अड्डा बनाने की कोशिश में जुटे हैं। भारत 1970 के दशक से ही श्रीलंका से त्रिंकोमाली बंदरगाह के इस्तेमाल की इजाजत मांग रहा है। तब से लेकर अब तक भारत के कई नेताओं ने श्रीलंका के साथ त्रिंकोमाली को लेकर चर्चा भी की है।
गौरतलब है कि एक समय त्रिंकोमाली को अमेरिकी सैन्य अड्डे के तौर पर देखा जाने लगा था। उस वक्त श्रीलंका के राष्ट्रपति विक्रमसिंघे के चाचा जे आर जयवर्धने थे। इस कारण जयवर्धने के भारत के साथ रिश्ते बेहद खराब भी हो गए थे। लेकिन, गनीमत रही है कि त्रिंकोमाली कभी अमेरिका का स्थायी सैन्य अड्डा नहीं बन पाया। वहीं चीन ने कर्ज देकर श्रीलंका को एक तरह से अपना सैटेलाइट स्टेट बना दिया है। राजपक्षे बंधुओं के कार्यकाल में श्रीलंका में चीन के प्रभाव को साफ तौर पर देखा गया। यही कारण था कि श्रीलंका खुद की आर्थिक और विदेश नीति खुद तय नहीं कर पाया और डिफॉल्ट हो गया। श्रीलंका के हालात इतने खराब हो गए थे कि स्थानीय लोगों ने सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया और प्रधानमंत्री के बाद राष्ट्रपति को भी देश छोड़कर भागना पड़ा।
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