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मृत्यु दंड की सजा मामले में MP High Court सख्त टिप्पणी न्यायाधीशों को खून का प्यासा नहीं होना चाहिए

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि न्यायाधीशों को खून का प्यासा नहीं होना चाहिए। अपराध की प्रकृति के कारण किसी को दोषी नहीं माना जाना चाहिए। जब तक आरोप पूरी तरफ साबित नहीं हो जाए। आरोप साबित हुए बिना किसी को फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता है। हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल तथा जस्टिस एके पालीवाल ने जिला न्यायालय द्वारा विभिन्न धाराओं के तहत दी गई मृत्युदंड सहित अन्य सजा को खारिज करने के आदेश जारी किए हैं। बुरहानपुर जिला न्यायालय ने मृत्युदंड की पुष्टि के लिए प्रकरण को हाईकोर्ट भेजा था। इसके अलावा मृत्युदंड की सजा के खिलाफ विजय उर्फ पिन्टया (35) ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।

अभियोजन के अनुसार आरोपी ने बुरहानपुर जिले के ग्राम मोहदा में 15 अगस्त 2018 को घर के सामने खेल रही बच्ची का अपहरण किया था। अपहरण करने के बाद आरोपी उसे खेत में बने बाड़े में ले गया और उसके साथ दुराचार किया। इस दौरान उसने बच्ची की गला दबाकर हत्या कर दी। बच्ची का शव तीन दिन बाद 18 अगस्त को चिदिंया नाले के किनारे निर्वस्त्र अवस्था में मिला था। बच्ची की फ्रॉक कुछ दूरी पर मिली थी। पुलिस ने पतासाजी के दौरान पाया कि आरोपी ने दो शादी की थी और दोनों पत्नी उसे छोड़कर चली गई थीं। इसके अलावा आरोपी गांव की नाबालिग लड़की के साथ छेड़छाड़ करता था और भैंस के साथ भी आप्राकृतिक कृत्य कर चुका था।

पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर न्यायालय में प्रकरण प्रस्तुत किया था। न्यायालय ने सुनवाई के बाद आरोपी को 8 मार्च 2019 को दो धाराओं के तहत मृत्युदंड की सजा से दंडित किया था। न्यायालय ने अन्य धाराओं के तहत उसे कारावास व अर्थदंड की सजा से दंडित किया था। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि पीएम तथा डीएनए रिपोर्ट के आधार पर अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि पीड़िता के साथ कोई यौन उत्पीड़न हुआ है। इसके अलावा आरोपी के कपाल व गालों में निशान पाए गए थे। बच्ची को दफनाने के पहले उसके नाखून के नमूने नहीं लिए गए। एसडीएफ की अनुमति लेकर बाद में शव को निकलवाने के बाद नाखून के नमूने लिए गए।

डीएनए रिपोर्ट के अनुसार बच्ची के नाखून में कोई प्रोफाइल नहीं मिली। लापरवाही के कारण सबूत नष्ट हो गए थे। इसके अलावा फ्रॉक की फोटो तक नहीं ली गई। गवाहों ने फ्रॉक के रंग व प्रिंट के संबंध में अलग-अलग साक्ष्य दिए हैं। हाईकोर्ट ने अभियोजन के इस तर्क को दरकिनार कर दिया कि जनता के दवाब व आक्रोश के कारण जांच में तकनीकि त्रुटियां हुई हैं। हाईकोर्ट की युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अभियोजन पूरे मामले में परिस्थिति जनक साक्ष्य की कड़ी पूरी तरह से जोड़ नहीं पाया है। युगलपीठ ने उक्त आदेश के साथ जिला न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया।

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