दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गोरखपुर स्थित प्रसिद्ध गीता प्रेस (Gita Press) को वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा की आलोचना करने को लेकर सोमवार को कांग्रेस को आड़े हाथों लिया और आरोप लगाया कि विपक्षी पार्टी गीता प्रेस से इसलिए नफरत करती है क्योंकि वह सनातन का संदेश फैला रहा है। गांधी शांति पुरस्कार एक वार्षिक पुरस्कार है, जिसकी शुरुआत सरकार ने 1995 में महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर गांधी द्वारा प्रतिपादित आदर्शों को सम्मान देते हुए की थी।
गीता प्रेस को यह पुरस्कार ‘अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जायेगा। हालांकि, कांग्रेस ने गीता प्रेस को पुरस्कार दिए जाने की आलोचना की और इसे ‘उपहास बताया।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘‘2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर में गीता प्रेस को प्रदान किया जा रहा है, जो इस वर्ष अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। रमेश की इस टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कांग्रेस को ‘हिन्दू विरोधी करार दिया और लोगों से सवाल किया कि गीता प्रेस पर उसके हमले से क्या कोई हैरान है? उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘‘गीता प्रेस को अगर ‘एक्सवाईजेड प्रेस कहा जाता तो वे इसकी सराहना करते…लेकिन चूंकि यह गीता है, इसलिए कांग्रेस को समस्या है। पूनावाला ने कहा, ‘‘कांग्रेस मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष मानती है, लेकिन उसके लिए गीता प्रेस सांप्रदायिक है। जाकिर नाइक शांति का मसीहा है लेकिन गीता प्रेस सांप्रदायिक है। कर्नाटक में गोहत्या चाहती है कांग्रेस।
पूनावाला ने कांग्रेस नेता और पूर्व राज्यपाल शिवराज पाटिल के उस विवादित बयान का भी उल्लेख किया जिसमें उन्होंने दावा किया था कि लव जिहाद की बात सिर्फ इस्लाम में ही नहीं है, बल्कि ये भगवद् गीता और ईसाई धर्म में भी हैं। हालांकि, कांग्रेस ने उस समय कहा था कि इस तरह के बयान अस्वीकार्य हैं। भाजपा प्रवक्ता ने कहा, ‘‘कांग्रेस ने कभी गीता की तुलना जिहाद से की थी (शिवराज पाटिल का बयान याद रखें)। कांग्रेस ने प्रभु श्री राम के अस्तित्व को नकारा और राम मंदिर का विरोध किया। कांग्रेस गीता प्रेस से इसलिए नफरत करती है क्योंकि वह सनातन के संदेश को कोने-कोने में फैला रहा है। रमेश ने गीता प्रेस को यह पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के बाद एक ट्वीट में कहा था, ‘‘अक्षय मुकुल ने 2015 में इस संस्थान की एक बहुत अच्छी जीवनी लिखी है।
इसमें उन्होंने इस संस्थान के महात्मा के साथ उतार-चढ़ाव वाले संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया है। कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर तथा गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है। गीता प्रेस की शुरुआत वर्ष 1923 में हुई थी और यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है, जिसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इनमें श्रीमद्भगवद्गीता की 16।21 करोड़ प्रतियां शामिल हैं।
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