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25 साल में अंटार्कटिका में 3 ट्रिलियन टन से ज्यादा बर्फ पिघली, लेकिन सारा पानी जा कहां रहा है

लंदन। वैज्ञानिकों के अनुसार अंटार्कटिका महासागर में बनी बर्फ की परत 2030 के दशक में पिघलकर पूरी तरह खत्‍म हो जाएगी। उनका कहना है कि हर साल सितंबर में अंटार्कटिका में बर्फ की परत की मोटाई सबसे कम होती है। शोधकर्ताओं ने आशंका जताई है कि अगले दशक में ही ऐसा सितंबर आएगा, जब आर्कटिक में बर्फ पूरी तरह से खत्‍म हो जाएगी। शोधकर्ताओं ने अनुमान जताया था कि 2040 के दशक में अंटार्कटिका महासागर पर बनी बर्फ की परत पिघलकर पूरी तरह से खत्‍म हो जाएगी। अब वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि तेजी से घट रही ये बर्फ की परत पिछले अनुमानों से 10 साल पहले ही यानी 2030 के दशक में ही पूरी तरह खत्म हो जाएगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये सब कार्बन उत्सर्जन को घटाने की कोशिशों के बाद भी ऐसा होगा1 वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट्स से लगातार 40 साल तक जुटाए गए डाटा के विश्लेषण से उत्तरी ध्रुव के आसपास के इलाके में समुद्र पर जमी बर्फ की परत में आ रही गिरावट का अध्ययन किया है। अध्ययन में पता चला है कि अब हालात ऐसे हो गए हैं, जब कार्बन उत्सर्जन में जबरदस्‍त कमी करने के बाद भी 2030 से 2050 के बीच किसी सितंबर महीने में अंटार्कटिका में बर्फ गायब हो जाएगी।

उल्लेखनीय है कि सितंबर में अंटार्कटिका में बर्फ की परत की मोटाई सबसे कम होती है। यह रिपोर्ट दक्षिण कोरिया की पोहांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के मिन सेऊंग के नेतृत्व में प्रकाशित हुई है। शोधकर्ताओं ने 1979 से 2019 के बीच आर्कटिक में बर्फ की मोटाई के हर महीने के आंकड़ों का अध्ययन किया है। इसके बाद आंकड़ों की तुलना कंप्यूटर सिम्युलेशन से करके भविष्य का अनुमान लगाया गया है। संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण पर काम करने वाली समिति आईपीसीसी ने हाल में जारी रिपोर्ट में 2021-23 के लिए नतीजे बताए गए थे। रिपोर्ट में कहा गया था कि इस सदी के मध्य से पहले अंटार्कटिका में किसी सितंबर में बर्फ खत्म नहीं होगीहालांकि, इसमें कहा गया था कि बर्फ का खत्म होना ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की मात्रा पर निर्भर होगा। अब पोहांग यूनिवर्सिटी के अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अब ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कितना भी कम कर लिया जाए, लेकिन पिछले अनुमान से दस साल पहले ही आर्कटिक में बर्फ खत्‍म हो जाएगी। शोध में कहा गया है कि मानव समाज के पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका बड़ा असर देखने को मिलेगा। साथ ही कहा गया है कि इंसान को गर्मी खत्म होते-होते आर्कटिक में बर्फ के पूरी तरह खत्म होने के लिए तैयार रहना चाहिए।

जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में कुछ समय पहले प्रकाशित अध्‍ययन रिपोर्ट के अनुसार लास्‍ट आइस एरिया के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र की बर्फ की प्रकृति में आ रहे बदलाव में अंतर है। हर साल दोनों क्षेत्रों की बर्फ की मोटाई बढ़ने और घटने में अंतर आ गया है। वहीं, बर्फ के प्रवाह में भी अंतर आ रहा है. आर्कटिक की बर्फ पिघलने का असर पूरी दुनिया में देखने को मिलेगा1 आर्कटिक समुद्र पर करीब 1.20 लाख साल पहले आखिरी बार बर्फ खत्म हुई थी। ध्रुवीय इलाके में तेजी से बढ़ते तापमान के कारण ये स्थिति फिर पैदा हो सकती है। इसी से ब्रिटेन में बाढ़ के हालात बनते हैं। अमेरिका में बेमौसम तूफान भी इसी वजह से आते हैं। आर्कटिक से बर्फ खत्म हुई तो दुनियाभर में तापमान बढ़ जाएगा और मौसम में कई बदलाव होंगे। ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति भी बदतर हो जाएगी। आर्कटिक क्षेत्र में आर्कटिक महासागर, कनाडा का कुछ हिस्सा, ग्रीनलैंड, रूस का कुछ हिस्सा, अमेरिका का अलास्का, आइलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड हैं। बर्फ इसी रफ्तार से पिघलती रही तो पोलर बेयर, व्हेल, पेंग्विन और सील जैसे जीव-जंतु यहां से पूरी तरह खत्म हो जाएंगे।

Gaurav

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