भूकंप विज्ञानियों ने जानकारी जुटाई कि भूकंपीय तरंगों को लाल ग्रह की सतह पर मौजूद दूसरी तरंगों के साथ मंगल की कोर से गुजरने में कितना वक्त लगता है। फिर मिले डाटा का लाल ग्रह की दूसरी भूकंपीय घटना और पृथ्वी के डाटा से तुलनात्मक अध्ययन किया। इससे वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह पर मौजूद पदार्थ के घनत्व और दबाव की क्षमता का पता चला। इसी से पता चला कि मंगल का केंद्र पिघला हुआ है। इसके उलट धरता के केंद्र की बाहरी परत ठोस, सख्त और अंदर से पिघली हुई है। नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक, सल्फर और ऑक्सीजन मिलने का मतलब है कि मंगल का केंद्र धरती के केंद्र से कम घना है। इससे ये भी साफ होता है कि मंगल और धरती के बनने के हालात अलग थे।
नासा की इस परियोजना के मुख्य वैज्ञानिक ब्रूस बैनर्ट के मुताबिक, मंगल ग्रह पर भेजी गई 358 किग्रा वजनी इंटीरियर एक्सप्लोरेशन यूजिंग सेस्मिक इंवेस्टिगेशंस मशीन ने अभियान शुरू होने से पहले कहा था कि ये मशीन साढ़े चार अरब साल पहले पृथ्वी और चंद्रमा जैसे पथरीले ग्रहों के बनने की प्रक्रिया का पता लगाएगी। इनसाइट सौर ऊर्जा बैटरी से चलने वाली मशीन थी। इसे 26 महीने लगातार काम करने के लिए बनाया गया था। अमेरिका, यूरोप और जर्मनी समेत 10 से ज्यादा देशों के वैज्ञानिक इस अभियान में शामिल थे। इस मिशन पर 7,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए। अब इस मशीन से मिले डाटा ने मंगल ग्रह पर जीवन तलाश रहे वैज्ञानिकों के शोध को बड़ा झटका दे दिया है।
शोधकर्ता एस निकोलस के मुताबिक, किसी भी ग्रह के केंद्र से ही उसके बनने और फिर विस्तार की जानकारी मिलती है। इस प्रक्रिया से पता चलता है कि ग्रह पर जीवन की उम्मीद है या नहीं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, हमारे ग्रह पृथ्वी के केंद्र में एक चुंबकीय क्षेत्र है। ये चुबकीय क्षेत्र ही हमें सूर्य पर आने वाले सौर तूफानों के असर से बचाते है। इसके उलट मंगल ग्रह के केंद्र में चुबकीय क्षेत्र नहीं होने के कारण वहां जीवन संभव नहीं है।
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