ख़बर ख़बरों की

No Life on Mars : मंगल पर जीवन की तलाश को बड़ा झटका! नासा ने बताया क्‍यों लाल ग्रह पर जिंदा नहीं रह सकते इंसान?

वाशिंगटन। अब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मंगल ग्रह पर जीवन की अरसे से चल रही तलाश को बड़ा झटका दे दिया है। दरअसल, नासा ने मंगल ग्रह पर तीन साल पहले इनसाइट लैंडर को भेजा था। नासा ने इससे मिले डाटा के आधार पर कहा है कि मंगल ग्रह पर ना तो इंसान रह सकता है और ना ही वहां जा सकता है। नासा के मुताबिक, मंगल ग्रह के केंद्र में भूकंपीय तरंगे मौजूद हैं। नासा को इनसाइट लैंडर से मिले डाटा के विश्‍लेषण से ये भी पता चला कि मंगल ग्रह के केंद्र पिघला हुआ लोहा और लोहे से बनने वाली कई धातुएं मौजूद हैं। इन धातुओं में सबसे ज्‍यादा सल्‍फर और ऑक्‍सीजन पाया गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, डाटा से पता चला कि करीब साढ़े चार अरब साल पहले मंगल ग्रह का निर्माण कैसे हुआ? इसी डाटा से वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि मंगल और धरती में क्‍या अलग है? वहीं, दोनों के बीच समानताओं के बाद भी धरती पर जीवन होने और लाल ग्रह पर इंसानों के जीवित नहीं रह पाने के कारण भी स्‍पष्‍ट हो गए।अमेरिका की मैरीलैंड यूनिवर्सिटी में असिस्‍टेंट प्रोफेसर और शोधकर्ता वेदर्न लेकिक की टीम ने लाल ग्रह पर दो भूकंपीय घटनाओं पर नजर रखी। इनमें पहली घटना, मंगल ग्रह पर आने वाले भूकंप और दूसरी अंतरिक्ष से किसी चीज को भेजने पर हुई टक्‍कर से मंगल ग्रह के केंद्र में पैदा होने वाली भूकंपीय तरंगे शामिल थीं।

भूकंप विज्ञानियों ने जानकारी जुटाई कि भूकंपीय तरंगों को लाल ग्रह की सतह पर मौजूद दूसरी तरंगों के साथ मंगल की कोर से गुजरने में कितना वक्‍त लगता है। फिर मिले डाटा का लाल ग्रह की दूसरी भूकंपीय घटना और पृथ्‍वी के डाटा से तुलनात्‍मक अध्‍ययन किया। इससे वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह पर मौजूद पदार्थ के घनत्‍व और दबाव की क्षमता का पता चला। इसी से पता चला कि मंगल का केंद्र पिघला हुआ है। इसके उलट धरता के केंद्र की बाहरी परत ठोस, सख्‍त और अंदर से पिघली हुई है। नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक, सल्फर और ऑक्सीजन मिलने का मतलब है कि मंगल का केंद्र धरती के केंद्र से कम घना है। इससे ये भी साफ होता है कि मंगल और धरती के बनने के हालात अलग थे।

नासा की इस परियोजना के मुख्‍य वैज्ञानिक ब्रूस बैनर्ट के मुताबिक, मंगल ग्रह पर भेजी गई 358 किग्रा वजनी इंटीरियर एक्‍सप्‍लोरेशन यूजिंग सेस्मिक इंवेस्टिगेशंस मशीन ने अभियान शुरू होने से पहले कहा था कि ये मशीन साढ़े चार अरब साल पहले पृथ्‍वी और चंद्रमा जैसे पथरीले ग्रहों के बनने की प्रक्रिया का पता लगाएगी। इनसाइट सौर ऊर्जा बैटरी से चलने वाली मशीन थी। इसे 26 महीने लगातार काम करने के लिए बनाया गया था। अमेरिका, यूरोप और जर्मनी समेत 10 से ज्‍यादा देशों के वैज्ञानिक इस अभियान में शामिल थे। इस मिशन पर 7,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए। अब इस मशीन से मिले डाटा ने मंगल ग्रह पर जीवन तलाश रहे वैज्ञानिकों के शोध को बड़ा झटका दे दिया है।

शोधकर्ता एस निकोलस के मुताबिक, किसी भी ग्रह के केंद्र से ही उसके बनने और फिर विस्तार की जानकारी मिलती है। इस प्रक्रिया से पता चलता है कि ग्रह पर जीवन की उम्‍मीद है या नहीं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, हमारे ग्रह पृथ्‍वी के केंद्र में एक चुंबकीय क्षेत्र है। ये चुबकीय क्षेत्र ही हमें सूर्य पर आने वाले सौर तूफानों के असर से बचाते है। इसके उलट मंगल ग्रह के केंद्र में चुबकीय क्षेत्र नहीं होने के कारण वहां जीवन संभव नहीं है।

Gaurav

Recent Posts

India’s Deposit Growth Leads Credit Growth After 30 Months of Reversal

Ira Singh Khabar Khabaron Ki,09 Nov'24 For the first time in two and a half…

2 weeks ago

Indian Market Sees Record $10 Billion Outflow in October

Ira Singh Khabar Khabaron Ki,27 Oct'24 October has marked a record- breaking month for foreign…

4 weeks ago

India’s Growth Steady at 7%, Outpacing Global Peers, IMF

Ira Singh Khabar Khabaron Ki,23'Oct'24 The International Monetary Fund (IMF) has reaffirmed its positive outlook…

4 weeks ago

GST Reduction Likely to Make Health & Life Insurance Cheaper

Ira Singh Khabar Khabaron Ki,23 Oct'24 A reduction in Goods and Services Tax (GST) could…

4 weeks ago

साबुन के नाम पर फैक्ट्री में बन रहा नशीला ड्रग, किराये पर देने वाला गिरफ्तार

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के समीप औद्योगिक क्षेत्र के बंद फैक्ट्री में एमडी ड्रग्स…

2 months ago