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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारात्मक बदलाव लाना जरूरी है : गुतारेस

युनाइटेड नेशन में अब सुधार की गुंजाइश है।  इसे 1945 के ढर्रे पर नहीं चलाया जा सकता। वर्तमान समय में युनाइटेड नेशन केवल बातचीत का फोरम बन गया है। इस बात को पीएम नरेंद्र मोदी ने भी जी7 समिट के दौरान ताकत के साथ उठाया। कुछ इसी तरह की बात युनाइटेड नेशन के महासचिव एंतोनिया गुतारेस ने भी कही है। खुद महासचिव ने माना कि यूएनएससी यानी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारात्मक बदलाव लाना जरूरी है। 1945 की शक्तियों के हिसाब से अब इसे नहीं चलाया जा सकता।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने रविवार को कहा कि युनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंलिल वर्ष 1945 के हिसाब से शक्तियों के वितरण को प्रतिबिम्बित करती है और समकालीन समय की वास्तविकताओं के अनुसार शक्तियों के फिर से वितरण की जरूरत अब बढ़ गई है। गुतारेस ने हिरोशिमा में जी7 बैठक में पत्रकारों से कहा, ‘यह सुरक्षा परिषद में सुधार करने का समय है। यह अनिवार्य रूप से आज की दुनिया की वास्तविकताओं के अनुरूप सत्ता के पुनर्वितरण का प्रश्न है।’ यूएन में 15 देशों वाली सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता को संयुक्त राष्ट्र प्रमुख की हिरोशिमा में इस ताजातरीन टिप्पणी से बल मिला है। सुरक्षा परिषद में तत्काल सुधार की मांग करने वालों में भारत सबसे आगे रहा है।

माना जाता है कि सुरक्षा परिषद आज के समय की चुनौतियों से निपटने में असफल रही है। हिरोशिमा में जी7 सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सवाल उठाया कि जब इन चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र का गठन किया गया था तो विभिन्न मंचों को शांति और स्थिरता से जुड़े मुद्दों पर विचार-विमर्श क्यों करना पड़ा। पिछले महीने, संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने भी कहा था कि भारत संयुक्त राष्ट्र चार्टर का एक संस्थापक हस्ताक्षरकर्ता है।

इस चार्टर पर 26 जून, 1945 को सैन फ्रांसिस्को में हस्ताक्षर किए गए थे। कंबोज ने कहा था, ’77 साल बाद, जब हम यह देखते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका को वैश्विक निर्णय लेने से बाहर रखा जाता हैं, तो हमें सुधारों की जरूरत महसूस होती है।’ पीएम मोदी ने इससे पहले भी कई मौकों पर यूएन की वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर सवाल उठाए हैं। यूएन के अधिवेशन में और कई अलग अलग फोरम पर भारत ने दृढ़ता के साथ यूएन की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए हैं। साथ ही वर्तमान समय में यूएन में आवश्यक बदलाव की बात भी भारत ने ताकत के साथ रखी है।

Gaurav

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