बिलावल के साथ एससीओ सम्मेलन में पाकिस्तान के परममित्र चीन के भी विदेश मंत्री मौजूद होंगे। लेकिन पाकिस्तान के विचारक भारत दौरे को एक अपमान के तौर पर देख रहे हैं। पाकिस्तान की विदेश नीति की सबसे बड़ी समस्या है कि भारत पर कभी कोई समझौता नहीं होता है। विदेश नीति में सबसे बड़ा फोकस चीन, अमेरिका और रूस पर ही रहता है। पाकिस्तान को इस समय अफगानिस्तान से भी काफी चुनौतियां मिल रही हैं। साथ ही वह मिडिल ईस्ट की बदली राजनीतिक स्थितियों से भी निपटने के लिए संघर्ष कर रहा है। एशिया सोसायटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के सीनियर फेला सी राजामोहन के अनुसार पाकिस्तान की सेना के लिए भी एजेंडा तय करना मुश्किल हो रहा है। जबकि वह लंबे समय से भारत की रणनीति समेत देश की बाकी प्रमुख नीतियों की मध्यस्थ रही है।
हाल ही में पूर्व सेना प्रमुख जनरल (रिटायर्ड) कमर जावेद बाजवा को लेकर सामने आई खबरों से भी इस बात की पुष्टि हो जाती है। देश के कई सीनियर जर्नलिस्ट्स जैसे हामिद मीर ने बाजवा पर कश्मीर मसले पर भारत के साथ बड़ा समझौता करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि बाजवा का दावा था कि पाकिस्तानी सेना भारत से लड़ने की स्थिति में नहीं है। सेना प्रमुख के रूप में उनके छह साल के कार्यकाल के दौरान मीडिया या राजनीतिक वर्ग के कुछ लोगों ने बाजवा की आलोचना करने की हिम्मत की।
जानकारों के अनुसार घरेलू स्तर पर काम करने के अलावा पाकिस्तान को विदेश नीति की सहमति के पुनर्निर्माण के लिए बहुत समय की जरूरत है। भारत को भी अपनी प्राथमिकताओं को बदलना होगा। भारत सरकार के लिए एक प्राथमिकता रावलपिंडी में सेना के लिए जरूरी और मूल्यवान पर्दे के पीछे की रणनीति को बरकरार रखने की जरूरत है।
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