जिनेवा। भारत ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो का इस्तेमाल नैतिक दायित्वों के आधार पर नहीं, बल्कि राजनीतिक विचारों के आधार पर किया जाता है और वीटो इस्तेमाल करने का अधिकार केवल पांच स्थायी सदस्यों को दिया जाना देशों की संप्रभु समानता की अवधारणा के विपरीत है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थानीय मिशन में सलाहकार प्रतीक माथुर ने 193 सदस्यीय महासभा द्वारा ‘वीटो पहल’ को पारित किए जाने के एक साल बाद बुधवार को ‘वीटो के इस्तेमाल’ पर आयोजित महासभा की बैठक में कहा कि पिछले 75 साल से अधिक समय में सभी पांच स्थायी सदस्यों ने अपने-अपने राजनीतिक हित साधने के लिए वीटो का इस्तेमाल किया है। कुल 15 देशों वाली सुरक्षा परिषद के केवल पांच स्थायी सदस्य चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका हैं और उन्हीं के पास वीटो इस्तेमाल करने का अधिकार है। शेष 10 सदस्य दो साल के लिए अस्थायी रूप से चुने जाते हैं और उनके पास वीटो का अधिकार नहीं है।
माथुर ने कहा कि वीटो का इस्तेमाल नैतिक दायित्वों से नहीं, बल्कि राजनीतिक विचारों से प्रेरित होता है। जब तक यह अस्तित्व में है, वीटो का अधिकार रखने वाले सदस्य देश ऐसा करते रहेंगे, भले ही कितना भी नैतिक दबाव क्यों न हो। जब ‘वीटो पहल’ संबंधी प्रस्ताव पारित किया गया था, उस समय भारत ने प्रस्ताव को पेश करने में समावेशिता की कमी पर खेद व्यक्त किया था। माथुर ने दोहराया कि वीटो संबंधी प्रस्ताव दुर्भाग्य से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधारों संबंधी सीमित दृष्टिकोण को दर्शाता है और यह समस्या के मूल कारण की अनदेखी करते हुए एक ही पहलू को उजागर करता है।
उन्होंने कहा कि वीटो इस्तेमाल करने का विशेषाधिकार केवल पांच सदस्यों को दिया गया है। यह देशों की संप्रभु समानता की अवधारणा के विपरीत है और द्वितीय विश्व युद्ध की केवल इस मानसिकता को बनाए रखता है कि ‘लूटा गया सामान केवल विजेता का होता है’। माथुर ने यूएनएससी सुधारों पर अंतर-सरकारी वार्ताओं में अफ्रीका के रुख को उद्धृत करते हुए कहा कि सैद्धांतिक रूप से वीटो को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
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