ग्वालियर,15 अप्रेल। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने पिता-पुत्र की हत्या के आरोप में विगत 11 वर्ष से आजीवन कारावास की सजा काट रहे पप्पू यादव को रिहा करने के आदेश दिए हैं। उच्च न्यायालय ने इस प्रकरण की विवेचना अधिकारियों, चिकित्सकीय परीक्षण करने वाले विशेषज्ञ और सरकारी वकील की भूमिका पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि प्रकरण की विवेचना बहुत लापरवाहीपूर्ण थी, जिसका लाभ आरोपितों को मिला है। इसलिए उच्च न्यायालय ने इन सभी के विरुद्ध कार्रवाई के लिए राज्य शासन को निर्देश भेजे गए हैं। लेनदारी के तगादे पर हुआ था विवाद, पीट-पीट कर की गई थी पिता-पुत्र की हत्या पौत्र को कर दिया था मरणासन्न….
उल्लेखनीय है कि भिंड के देहात थाना क्षेत्र के दीनपुरा गांव में राम कुमार शर्मा आटे की चक्की चलाते थे। उसी गांव में राम प्रकाश यादव होटल चलाता था। रामप्रकाश के ऊपर राम कुमार का लगभग डेढ़ हजार रुपए की लेनदारी थी। दोनों पक्षों में इस संबंध में तनातनी चल रही थी। अपराध 19 जुलाई 1998 को तब कारित हुआ जब रामकुमार शर्मा लेनदारी मांगने रामप्रकाश के होटल पहुंचे। होटल पर मुकेश ओझा, पप्पू यादव, मानसिंह और राजू बैठे हुए थे। इन लोगों ने भी रामकुमार को धमकाया तो दोनों पक्षों में विवाद हो गया। रामकुमार गुस्से में घर वापस आगए। उनके पीछे ही रामप्रकाश व उसके साथी भी राम कुमार के घर पहुंच गए। आरोपियों ने रामकुमार से बंदूक छीन ली। इसके बाद राम कुमार और उसकी बेटे सुरेश की लाठी-डंडों, कुल्हाड़ी और बंदूक के बट से पीट-पीट कर हत्या कर दी। रामकुमार के पोते संतोष पर भी वजन तौलने के बांट से वार कर मुंह कुचल दिया गया था।
विवेचना में घोर लापरवाही, उच्च न्यायालय ने कहा सब के विरुद्ध हो कार्रवाई
भिंड देहात थाने में हत्या और हत्या के प्रयास के रूप में प्रकरण पंजीबद्ध किया गया। विवेचना तत्कालीन सीआईडी इंस्पेक्टर केएल पवार को सौंपी गई थी। इस मामले में कुछ सरकारी गवाह भी थे जिन्हें विवेचना के दौरान सूची से हटा दिया गया था। राम कुमार की बंदूक लाइसेंसी थी अथवा अवैध इस संबंध में भी अन्वेषकों ने न्यायलय में कोई दस्तावेज में प्रस्तुत नहीं किए गए थे। इतने गंभीर प्रकरण में अनुसंधान अधिकारी केएल पवार के बयान भी दर्ज नहीं हुए थे, न ही डॉ.जेपी गुप्ता डॉ.टीसी अग्रवाल और डॉ.पीडी पाठक की एमएलसी रिपोर्ट में घटना के बारे में स्पष्ट उल्लेख किया गया था। तत्कालीन अपर लोक-अभियोजन अधिकारी वीरेंद्र भदौरिया ने भी विवेचना अधिकारी और चिकित्सकीय परीक्षकों की लापरवाही की अनदेखी की थी।
विवाद में मृत रामकुमार के घायल पौत्र संतोष शर्मा के वक्तव्य पर ही पूरा प्रकरण आधारित था। परिणामस्वरूप अभियोजन के तथ्यों पर संदेह का लाभ निचली अदालत से आजीवन कारावास का दण्ड पाए पप्पू यादव को मिला। उसे 11 वर्ष बाद बरी करना पड़ा। प्रकरण में आरोपी मानसिंह पहले ही बरी हो चुका है, मुकेश ओझा की मृत्यु हो चुकी है जबकि राजू उर्फ छोटू घटना के बाद से ही फरार है।
विवेचना में घोर लापरवाही के कारण मृतकों के परिजन न्याय से वंचित रह गए हैं। इस पर असंतोष प्रकट करते हुई मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ की युगल पीठ ने मध्यप्रदेश शासन को संबंधित विवेचकों के विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
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