हैदराबाद, 23 मार्च। देश के सुप्रसिद्ध समाजवादी नेता रघु ठाकुर ने कहा है कि देश की राजनीति व उसके चरित्र में सकारात्मक बदलाव लाने की अत्यंत आवश्यकता है। निर्धन की पीड़ा पर इसकी आधारशिला खड़ी करनी होगी। इसके साथ-साथ हर तरह की विषमता को समाप्त करने की दिशा में सफल अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। रघु ठाकुर ने बुधवार को हैदराबाद के वासवी क्लब सभागार में आयोजित डॉ.राममनोहर लोहिया की 112वीं जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए कहा कि हमें ऐसी नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है जो सामाजिक-आर्थिक विषमता दूर कर सकें।
हैदराबाद के वासवी क्लब सभागार में डॉ. राममनोहर लोहिया की 112वीं जयंती समारोह में समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर की पुस्तक “गांधी-अंबेडकर, कितने दूर कितने पास” के अंग्रेजी अनुवादित संस्करण का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम का आयोजन लोहिया विचार मंच हैदराबाद ने किया।
विश्व संसद की स्थापना और लोहिया की सप्त-क्रांतियों की अवधारणा बचा सकती है हथियारों की होड़ और युद्ध की विभीषिका से
तीन सत्रो के आयोजन के उद्घाटन सत्र में रघु ठाकुर की अध्यक्षता में साहित्यकार मुकेश वर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता मुकेश चंद्रा, ग्वालियर के शिक्षाविद् जयंत सिंह तोमर, समता ट्रस्ट के अध्यक्ष मदन जैन उपस्थित रहे। प्रारंभिक सत्र का संचालन लोहिया विचार मंच के अध्यक्ष टी.गोपाल सिंह ने किया। अध्यक्षीय उद्बोधन में रघु ठाकुर ने यूक्रेन संकट, भारत में विषमता, विश्व संसद की आवश्यकता और भाषा नीति पर बोलते हुए कहा कि दुनिया भर में देशों के बीच युद्ध और हथियारों की होड़ लगी हुई है। इससे पृथ्वी एक खतरनाक संकट की ओर धकेली जा रही है। इससे उबरने का एक ही मार्ग है, डॉ.लोहिया के सपनों की विश्व संसद की स्थापना। साथ डॉ.लोहिया ने जिन सप्त-क्रांतियों की बात कही है, उसे सार्थक करने के लिए आवश्यक है कि प्रत्यक प्रकार की विषमता दूर की जाए। कोरोना संक्रमण के काल में देश के निर्धनों की आय घटी है, जबकि धनिक कॉर्पोरेट समूहों की आय में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। देश में ऐसी नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है जिससे इस तरह की सामाजिक-आर्थिक विषमता दूर हो सके।
लोकतंत्र बचाना है तो डॉ.लोहिया का भारतीय समाजवाद अपनाना आवश्यक
सत्र की शुरूआत में ए.रघुकुमार ने कहा कि देश अधिनायकवाद की ओर बढ़ रहा है। हमें लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे। इसके लिए जरूरी है कि डॉ. राममनोहर लोहिया के विचार समेत भारतीय समाजवाद के मूल्यों को धीरे-धीरे लोगों के बीच ले जाएं और अपना स्थान बनाएं। गांधी और अंबेडकर के संबंधों के प्रकाश में जब हम स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक सुधारों की ओर देखते हैं तो इन दो के मध्य प्राथमिकताएं दृष्टिकोण के अनुरूप निर्णीत होती हैं। डॉ.लोहिया ने दोनों काम में बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी की है। लोहिया इस मामले में विलक्षण हैं कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भागीदारी की, साथ ही स्वतंत्रता के पश्चात समग्र राजनीति को सामाजिक सुधारों के ओर उन्मुख किया। हमें गांधी, अंबेडकर और लोहिया से प्रेरणा लेकर एक ऐसा वातावरण बनाना है, जिसमें शांति और परस्पर सद्भाव कायम हो।
भाषानीति पर केंद्रित दूसरे सत्र में ग्वालियर से आए शिक्षाविद् जयंत सिंह तोमर, भोपाल के साहित्यकार मुकेश वर्मा, अभिषेक रंजन व लोहिया विचारमंच के अध्यक्ष टी. गोपाल सिंह ने अपने विचार रखे। तीसरे सत्र में जाति व्यवस्था पर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्यामसुंदर यादव, प्रदेश अध्यक्ष लोसपा विंधेश्वरी पटेल, रामदास, बाबूराम ने अपने विचार व्यक्त किए। सत्र के आखिर में डा. लोहिया व गोवा मुक्ति आंदोलन पर आधारित डॉक्युमेंटरी का प्रदर्शन भी किया गया।
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