मुरैना, 07 मार्च। वह दिन अब बीत गए हैं जब चंबल अंचल में बेटियां कोख में ही मार दी जाती थीं। अंचल की बेटियां अब पढ़ाई-लिखाई से लेकर केल तक में चंबल व देश का मान बढ़ा रही हैं। चंबल की बेटी ईशा सिंह संभाग स्तर पर अपनी दमदारी को लोहा मनवाने के बाद विगत वर्ष इस्तांबुल में आयोजित एशियाई पॉवरलिफ्टिंग में रजत पदक जीता। अब ईशा आगामी दिसंबर में न्यूजीलैंड में होने वाली विश्व पॉवरलिफ्टिंग में अपनी शक्ति दिखाने की तैयारी कर रही हैं।
एक समय था जब चंबल में बेटियों का जन्म अभिशाप माना जाता था। उसे कोख में अथवा जन्म लेते ही मार दिया जाता था। विगत दशक में हुए प्रयासों के परिणामस्वरूप अंचल के लिंगानुपात में तो सुधार आया ही, लड़कियों के प्रित समाज की सोच भी बदल गई। हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के अवसर मिले तो बेटियों अकादमिक प्रतिस्पर्धाओं में शीर्ष स्थानों तक पहुंचीं। अब ईशा ने चंबल का दम देश-विदेश में दिखा कर खेल क्षेत्र में भी अंचल की बेटियों लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया है। विमान परिचारिका ईशा अवकाश पर घर आई तो बढ़ गया भार, भारोत्तोलन से भार घटा और बढ़ गई चैंपियन बनने की चाह….
मुरैना की ईशा सिंह सिसौदिया बचपन से पढ़ाई में तो आगे रहीं, किंतु खेलों में उसकी अधिक रुचि नहीं थी। भाषा के रूप में अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ और सुंदर देहयष्टि के कारण ईशा का चयन 2015 में विमान परिचारिका के तौर पर हो गया। दो वर्ष विमानों में उड़ते हुए देश-विदेश की सैर करने के बाद 2017 में ईशा परिवार के साथ अवकाश व्यतीत करने मुरैना आईं। दो वर्ष की व्यस्तता के बाद घर आई बेटी पर परिजन का लाड़ बरसा और ईशा का भार बढ़ गया। भार कम करने के लिए भारोत्तोलन शुरू किया। कड़े प्रशिक्षण और परिश्रम के बाद भार तो कम हुआ ही ईशा को लगने लगा कि उसके हाथों में शक्ति भर गई है। इसी अंतराल में मुरैना में चंबल संभाग में पावरलिफ्टिंग प्रतिस्पर्धा आयोजित हुआ। प्रशिक्षक नें ईशा से भी प्रतिस्पर्धा में एक भाग लेने का निर्देश दिया। ईशा ने 69 किलोग्राम भार समूह में भाग लिया और स्वर्ण-पदक जीत लिया। इससे ईशा का उत्साह बढ़ा और चैंपियन बनने की चाह भी बढ़ गई। उसने विमान पर्चारिका की सेवा से त्याग-पत्र दे दिया और पॉवरलिफ्टिंग को पूरी तरह समर्पित हो गई।
मुरैना में नहीं था लड़कियों के लिए जिम, लड़कों के साथ व्यायाम करने पर मिलते थे ताने
ईशा जब प्रैक्टिस के लिए अपने घर से दूर जिम में अभ्यास के लिए जाती थी तो कानाफूसी कर रहे रिश्तेदार-पड़ौसी ताने देते थे। सबकी चिंता छोड़ ईशा आगे बढ़ती गई। परिजन के प्रोत्साहन व सहयोग के साथ ईशा ने विगत 24 दिसंबर को टर्की में खेली गई एशियाई पॉवरलिफ्टिंग प्रतियोगिता में देश के लिए रजत पदक जीतकर ताने देने वालों के शब्दों प्रशंसा की मिठास घोल दी।
चंबल संभाग स्तर के आयोजन में मिले स्वर्ण-पदक ने ईशा को करिअर का नया मार्ग की दिखा दिया। अंततः ईशा ने विमान परिचारिका की आकर्षक सेवा छोड़ दी। इसके बाद ईशा ने भारोत्तोलन (पॉवर-लिफ्टिंग) को पूरी रह अपना लिया। ईशा ने एक के बाद एक राज्य्, देश, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी दम दिखाई और पदक हासिल किए
अब राष्ट्रमंडलीय खेलों की तैयारी में जुटी ईशा
ईशा का आगामी लक्ष्य न्यूजीलैंड में दो दिसंबर से आयोजित राष्ट्रमंडलीय प्रतिस्पर्धा है। इसके लिए वह इंदौर में रह कर तैयारी कर रही है। इससे पूर्व वह केरल में आगामी नौ अप्रैल से केरल में आयोजित राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में दमखम आजमाएगी।
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