लखनऊ, 19 जनवरी। मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव बुधवार को भाजपा में शामिल हो गईं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुलायम सिंह यादव के कुनबे में दरार अखिलेश यादव के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। अपर्णा के भाजपा में जाने का राजनीतिक प्रभाव समाजवादी पार्टी पर बहुत अधिक भले न माना जा रहा हो पर कुनबे की दरार को खाई में बदलने प्रारंभ अवश्य हो गया है। इसके साथ ही अखिलेश की छवि को भी धक्का लगा है। माना जा रहा है कि अगर लंबे समय से मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत में प्रतिनिधित्व मांग रही अपर्णा को अखिलेश ने अलग-थलग नहीं किया होता तो कुनबे में दरार नहीं आती।
उत्तरप्रदेश में विधानसभा टिकट कटना पक्का होते ही भाजपा सरकार के ऐसे मंत्रियों और विधायकों को तोड़कर अखिलेश ने जो बढ़त ली थी, भाजपा रणनीतिकारों ने मुलायम सिंह के कुनबे में दरार डाल कर उस बढ़त पर भी बढ़त लेली है। मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा के भाजपा में शामिल होने के बाद पारिवारिक रस्साकसी देहलीज के पार आ गई है। विगत विधानसभा चुनाव से पूर्व भी कुनबे की कलह का प्रभाव चुनाव परिणाम में प्रकट हो गया था। छोटी बहू अपर्णा के भगवा-ध्वज थाम लेने को संकेत माना जाए तो 2022 विधानसभा चुनाव के परिणाम भी विगत 2017 के परिणाम से मेल का सकते हैं।
अलिखित समझौते का अखिलेश ने उठाया था अनर्गल लाभ, विवश हुई अपर्णा
मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना यादव की परिवार में एंट्री के साथ ही परिवार में बगावत शुरू हो गई थी। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह के विरुद्ध बगावत सी कर दी थी। अखिलेश पिता से बेहद नाराज रहने लगे थे, उनकी हर बात अनसुनी कर रहे थे। करीब 16 वर्ष पूर्व पिता और पुत्र के बीच की खाई का पुल पारिवारिक मित्र अमर सिंह बने थे। उन्होंने दूसरी पत्नी साधना यादव को मुलायम परिवार में प्रवेश दिलाया, साथ ही अखिलेश यादव को भी पिता से तल्खी दूर करने के लिए मना लिया। परिवार को एक साथ बनाए रखने के लिए एक अलिखित समझौता भी हुआ। समझौते के अनुसार पिता की राजनीतिक विरासत के इकलौता वारिस अखिलेश यादव को माना गया। साधना के बेटे प्रतीक यादव ने अपने व्यापारिक रुझान को आगे बढ़ाते रहने और कभी राजनीति का रुख नहीं करने का वचन दिया था। मुलायम सिंह यादव की तात्कालिक संपत्ति भी दोनों भाइयों में बराबर बांट दी गई थी। अलिखित समजौते में यह भी सम्मिलित था कि साधना यादव के परिवार का व्यय समाजवादी पार्टी उठाएगी।
प्रतीक यादव तो राजनीति से दूर होकर व्यापार में रम गए, किंतु पत्नी के राजनीतिक भविष्य को प्रतीक ने उनकी इच्छा पर छोड़ दिया था। पत्रकार की बेटी अपर्णा की राजनीतिक में रुचि प्रारंभ से ही रही। वह परिवार की बड़ी बहू डिंपल की तरह पार्टी में आधिकार चाहती थीं। अपर्णा की इसी जिद की वजह से मुलायम सिंह यादव ने 2017 में अपर्णा को पार्टी का टिकट दिलवाया था, किन्तु अपर्णा हार गईं। उन्होंने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि वो चुनाव जीतें। राजनीतिक जानकार अपर्णा के इस दावे को सही मानते हैं।
अखिलेश का हठी निर्णय बन गया अपर्णा के भाजपा में जाने का कारण , चाचा शिवपाल भी चल सकते हैं अपरणा की राह पर
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार अखिलेश यादव ने इस बार निर्णय लिया था कि परिवार के किसी भी सदस्य को टिकट नहीं दिया जाएगा। स्पष्ट था कि डिंपल को तो लोकसभा के समय प्रतिनिधित्व मिलना तया था, किंतु अपर्णा के लिए यह निर्णय पार्टी की रणनीति से अधिक अखिलेश की शतरंज का दांव माना जा रहा था। परेशान अपर्णा अखिलेश के इस हठ निर्णय से विवश हो भाजपा के संपर्क में आईं। अपर्णा ने 2014 परिणाम के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ प्रारंभ कर दी थी। अपर्णा ने 2017 में योगी सरकार बनने के बाद भी कई बार CM योगी से मुलाकात की। कई बार उनके ऐसे वक्तव्य आए जो अखिलेश को मिर्च लगाने के लिए पर्याप्त थे। राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा जुटाने वालों को अखिलेश ने चंदाजीवी कहा था, इसके बाद ही अपर्णा ने राम मंदिर के लिए 11 लाख रुपए का दान दिया था। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार इस बार अखिलेश ने तय कर लिया था कि अपर्णा को न टिकट देंगे और किसी दूसरी पार्टी में जाने से रोकेंगे भी नहीं। अंततः अपर्णा भाजपा में सम्मिलित हो गईं। ज्ञातव्य है कि चाचा शिवपाल यादव को अखिलेश ने जब अलग-थलग किया था तो अपर्णा उनके साथ खड़ी रही थीं। अब माना जा रहा है कि देर-सबेर अपर्णा के माध्यम से शिवपाल यादव भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं।
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