ग्वालियर। किसी व्यक्ति को ज्ञात हो कि तीन दिन बाद उसकी मृत्यु तय है। ऐसी स्थिति में क्या कोई आत्मकथा लिखने की इच्छा जता सकने की मनोस्थिति में रह सकता है। किंतु, तक्षक के हाथों सात दिन बाद मृत्यु तय होने के बाद राजा परीक्षित ने श्रीमद्भागवत सप्ताह श्रवण की परंपरा डाली। उन्हीं के वंश मे युगों बाद जन्में क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने भी ऐसा ही विलक्षण साहस प्रदर्शित किया। अमर शहीद बिस्मिल ने फांसी की सजा तय होने के दिन ही लेखन सामग् मांगी और पांसी से पूर्व ही मात्र तीन दिन में कालकोठरी में बैठ 200 पृष्ठों की आत्मकथा की रचना कर दी। फांसी के दिन मिलने आई मां तो गुपचुप बाहर भेज दी आत्मकथा….
काकोरी कांड के नायकों को 19 दिसंबर के दिन अंग्रेजी सरकार ने फांसी दी थी। khabarkhabaronki.com पर हम प्रस्तुत करेंगे देश को स्वतंत्र कराने के मार्ग पर चलते हुए फांसी पर हंसते-गाते झूल गए काकोरी ट्रेन डकैती की के नायक रामप्रसाद बिस्मिल की वीर गाथा….
हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के संस्थापक और शहीद चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह व अशफाक उल्लाह खां के गुरू शहीद राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 में हुआ था। बिस्मिल मूलत: मुरैना के गांव रुअर-बरवाई के निवासी थे। क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल को काकोरी ट्रेन डकैती के मामले में उनके साथियों अशफाक़ उल्लाह खान, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी के साथ अंग्रेज सरकार ने मुकदमे के बाद फांसी की सजा सुनाई थी।
बिस्मिल ने फांसी के तीन दिन पूर्व प्रारंभ किया आत्मकथा लेखन
तय हुआ था कि बिस्मिल व साथियों को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी जाएगी। किंतु, अंग्रेज प्रशासन ने उनके साथी राजेंद्र लाहिड़ी को तय समय से पहले 17 दिसंबर को ही उत्तरप्रदेश की गोंडा जेल में अचानक फांसी दे दी। समाचार गोरखपुर जेल में बंद बिस्मिल तक पहुंची, तो उन्होंने आत्मकथा लिखने का फैसला कर लिया। क्रांतिकारियों से सहानुभूति रखने वाले कुछ अधिकारियों ने गुप्त रूप से लेखन सामग्री मुहैया करा दी। बिस्मिल ने दो दिन में 18 दिसंबर को अपनी 200 पृष्ठों की बायोग्राफी पूरी कर ली। फांसी के ठीक पहले 19 दिसंबर को उनकी मां अंतिम मुलाकात के लिए जेल पहुंचीं। उनके साथ HRA के सदस्य शिवचरण वर्मा भी बेटा बनकर जेल पहुंच गए। मुलाकात से वापसी के साथ ही खाने के डिब्बे में रख कर शिवचरण वर्मा बिस्मिल की आत्मकथा की पाण्डुलिपि अपने साथ ले गए। बिस्मल ने यह पुस्तक इस शेर के साथ पूरी की–मरते बिस्मिल,अशफाक़, रौशन, लाहिड़ी अत्याचार से। होंगे पैदा सैकड़ों उनके रुधिर की धार से।।
फांसी पर चढ़ने से पूर्व गाया रंग दे बंसंती चोला, नारा लगाया– I want downfall of British Empire
किताब पूरी करने और उसे बाहर भेज देने के बाद निश्चिंत भाव से 19 दिसंबर 1927 को वैदिक मंत्रों के जाप और ‘ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो’ के नारों के साथ बिस्मिल ने हंसते हुए खुद ही फांसी का फंदा अपने गले में डाल लिया था। ज्ञातव्य है कि ‘बिस्मिल’ के लिखे गीत रंग दे बसंती चोला….को क्रांतिकारी जेल में गाकर अपना हौसला बढ़ाते थे।
प्रकाशित होते ही हो गई जप्त बिस्मिल की आत्मकथा
क्रांतिकारी शिवचरण वर्मा के बड़े भाई भगवतीचरण वर्मा के प्रयासों से बिस्मिल की आत्मकथा का प्रकाशन हुआ, किंतु कुछ प्रतियां ही बंट सकी थीं कि अंग्रेज सरकार ने सभी उपलब्ध प्रतियों को जप्त कर लिया। दूसरी बार क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने बिस्मिल की आत्मकथा प्रकाशित कराई, लेकिन इसे भी ब्रिटिश सरकार ने जप्त कर रोक लगा दी। इसके बाद इसका प्रकाशन 1988 में बनारसी दास चतुर्वेदी ने कराया।
आत्मकथा में उजागर किए थे ब्रिटिश सरकार के असल मंसूबे
शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की करीब 200 पन्नों की आत्मकथा में अपने साथियों को संबोधित करते हुए उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के असल मंसूबों की उदाहरण दे कर पोल खोली थी। उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी थी कि अंग्रेज धर्म के नाम पर देश के टुकड़े करने की साजिश रच रहे हैं। इसी वजह से पुस्तक का प्रसार अंग्रेजों ने बैन कर दिया, और इसे प्रसारित होने से भी रोका। यहां तक कि आजादी के भी 41 साल बाद तक यह पुस्तक देश में प्रकाशित नहीं हो सकी। बिस्मिल की किताब में साफ किया गया है कि धर्म के नाम पर किस तरह ब्रिटिश हुक्मरानों ने उन्हें व उनके साथियों को सजा माफी के लालच में बरगलाने की कोशिश की थी।
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