ग्वालियर, 24 नवंबर। नगरनिगम की जलप्रदाय शाखा में हुए घोटाले में तत्कालीन निगम कमिश्नर विवेक सिंह की भूमिका को लेकर बहस पूरी हो चुकी है। जल्द ही इस मामले में सत्र न्यायालय अपना फैसला सुनाएगा। बुधवार को अंतिम बहस के दौरान विवेक सिंह ने सफाई देते हुए कहा कि उन्हें आईएएस अवार्ड होना था, इसलिए कुछ लोगों ने उनके विरुद्ध लोकायुक्त में झूठी शिकायत की थी। उनका इस घोटाले से कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने आशंका जताई कि इस झूठी शिकायत का कारण अंदरूनी राजनीति है। ज्ञातव्य है कि विवेक सिंह को लोकायुक्त में शिकायत के बाद 2017 में निलंबित कर होशंगाबाद अटेच कर दिया गया था। वर्तमान में वही वहीं अटेच हैं। तत्कालीन निगमायुक्त विवेक सिंह न्यायालय में बोले–अंदरूनी राजनीति का शिकार हुआ, IAS अवार्ड होने से रोकने की गई साजिश…..
ज्ञातव्य है कि 2004 में विवेक सिंह ग्वालियर नगर निगम कमिश्नर थे तब जलप्रदाय विभाग में फर्जी भुगतान के लिए 1805 फाइल्स तैयार की गई थी। इन फाइलों में छोटे-छोटे भुगतान किए जाने थे, किंतु काम के नाम पर नगर निगम को चूना लगाया गया था। मौके पर काम नहीं होने पर कुछ लोगों ने इसकी शिकायत लोकायुक्त पुलिस में की थी। लोकायुक्त पुलिस ने 69 फाइलों की जांच में पाया कि झूठे भुगतान के लिए इन फाइलों की कूट-रचना की गई थी। इस घोटाले में तत्कालीन निगमायुक्त विवेक सिंह तथा अन्य को आरोपी बनाया गया था आरोपियों ने लोकायुक्त की जांच को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने सत्र न्यायालय की सुनवाई जल्द खत्म करने के निर्देश दिए थे, और इसके बाद उच्च न्यायलय में अपील की अनुमति दी थीय़ इस मामले में 29 नवंबर को निर्णय आने की उम्मीद जताई गई है।
मामले पर एक नजर
वर्ष 2004 में जब विवेक सिंह नगर निगम आयुक्त हुआ करते थे तब नगर निगम के जलप्रदाय विभाग में 1805 फाइलें तैयार की गई थीं। इन फाइल में छोटे-छोटे भुगतान की तैयारी थी। भुगतान किए जा रहे थे, किंतु मौके पर काम नहीं होना पाया गया ता। कुछ फाइलों में भुगतान हो गया था।
शिकायत लोकायुक्त पुलिस के पास की गई तो 69 फाइलों की जांच की गई। जांच में पाया कि फर्जी तरीके से भुगतान किए जा रहे हैं। इसमें बड़ा भ्रष्टाचार किए जाने की बात सामने आई थी। इसमें तत्कालीन निगमायुक्त विवेक सिंह सहित सात निगमकर्मियों को आरोपी बनाया गया था। लोकायुक्त ने जांच के बाद विशेष न्यायालय में चालान पेश किया।
आरोपियों ने लोकायुक्त की जांच को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, किंतु उच्च न्यायालय ने याचिकाओं का निराकरण करते हुए निर्देश दिया कि दिया कि सत्र न्यायालय में जल्द सुनवाई पूरी की जाएं। वहां निर्णय के बाद उच्च न्यायालय में सुनवाई की जाएगी।
जिन पार्षदों के लेटर पेड पर प्रस्ताव तैयार किए थे, उन्होंने सुनवाई के दौरान प्रस्ताव भेजना अस्वीकार कर दिया था। जांच अधिकारी की गवाही पूरी होने के बाद बचाव पक्ष को सुना गया। आरोपियों की ओर से अपने बचाव में तर्क दिए गए। विगत मंगलवार 23 नवंबर को इस मामले में बहस पूरी हो गई।
विशेष लोक अभियोजक अरविंद श्रीवास्तव ने कहा कि यह मामला प्रमाणित है और स्वच्छ साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं। मंगलवार को अंतिम बहस के दौरान तत्कालीन नगर निगम आयुक्त विवेक सिंह ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उनको IAS अवार्ड होने वाला था, इसलिए इस मामले में फंसाया गया है, जबकि इस मामले से उनका कोई भी सीधा लेना देना नहीं है। माना जा रहा है कि 29 नवंबर को मामले की सुनवाई के बाद निर्णय जारी किया जाएगा।
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