ग्वालियर, 04 अक्टूबर। मुगल सम्राट जहांगीर को विवश हॉकर गुरु हरगोविंद साहब को ग्वालियर किले के कारावास के मुक्त करने का आदेश देना पड़ा था। उस घटना को आज 400 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस मंगल और प्रेरणदाय स्मृति के उपलक्ष्य में चार से छह अक्टूबर तक महोत्सव का आयोजन किया गया है। इसमें सामिल होने देश-विदेश से एक लाख से ज्यादा सिख श्रद्धालु आए हैं।
इस अवसर पर ख़बर ख़बरों की पर प्रस्तुत है सिखों के छठवें और सबसे कम उम्र में गुरु हरगोबिंद सिंह से जुड़े इस अमर प्रसंग की कहानी। किस तरह से वह खुद आजाद हुए, साथ ही 52 राजाओं को भी जहांगीर की कैद से आजाद कराया…..
मुगलों ने धार्मिक स्वभाव वाले पिता को फांसी पर चढ़ाया तो बना ली सेना
पंचमेश सिख गुरु बाबा अरजुन देव के पुत्र हरगोबिंद सिंह वह पहले गुरु थे, जिन्होंने सिखों को सैनिक बनाया था। गुरु हरगोबिंद सिंह का जन्म अमृतसर में वड़ाली गांव में माता गंगा और पिता अर्जुन देव के यहां 18-19 जून 1595 को हुआ था। बाबा अर्जुन देव की शहादत के बाद हरगोविंद सिंह को 11 साल की उम्र में 1606 में गुरु की उपाधि दी गई थी। इसलिए उनको बच्चा गुरु भी कहा जाता है। गुरु नानक देव की शिक्षाओं का अनुसरण कर रहे गुरु अर्जुन देव की शहादत हुई तो हरगोबिंद सिंह जी ने धर्म में वीरता को भी शामिल कर सिखों को सैनिक के रूप में संगठित कर एक अनुशासित सेना खड़ी कर ली। सिख सेना ने मुगलों के अन्याय से लोहा लेना शुरू कर दिया। अपने साथ सदैव मीरी और पीरी नाम की दो तलवारें धारण करने वाले गुरू हरगोविंद सिंह को एक बार मुगल बादशाह जहांगीर ने धोखे से हिरासत में ले ग्वालियर किले के कारावास में कैद कर दिया।
गुरु को कैद कर अस्वस्थ हुआ जहांगीर, स्वप्न में फ़कीर ने दिया रिहाई का आदेश
आज से 400 साल पहले 1621 में मुग़ल बादशाह जांहगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर किले पर बंदी बनाकर रखा था। गौरतलब है कि मुगल शासन काल में ग्वालियर किले का उपयोग बंदीगृह के रूप में होता था। इसे कैदखाना इसलिए बनाया गया था क्योंकि यह किला दुर्गम था यहां से कभी कोई बंदी भाग नहीं सका था। गुरू जी के साथ यहां देश भर से मुग़लों के बागी 52 राजपूत राजाओं को भी बंदी रखा गया था। करीब 2 साल 3 महीने तक गुरु हरगोबिंद सिंह यहां रहे। इसी दौरान बादशाह जहांगीर अस्वस्थ रहने लगा। उसे स्वप्न में एक फ़कीर रोज आकर गुरु हरगोविंद को रिहा करने का आदेश देता था। घबराए हुए जहांगीर ने तुरंत गुरु जी को रिहा करने का निर्णय लिया।
गुरू हरगोविंद सिंह ने रखी रिहाई की शर्त, 52 राजाओं को भी साथ छोड़ो
गुरू जी ने रिहाई का आदेश मानने से मना कर दिया। उन्होंने शर्त रख दी कि उनके साथ 52 राजपूत राजाओं को भी रिहा किया जाए। घबराया हुआ जहांगीर गुरू जी को रिहा करना आवश्यक मान रहा था, लेकिन यह भी मानता था कि मुग़ल साम्राज्य के बागी 52 राजाओं को छोड़ना ख़तरनाक हो सकता था। इस पर मुगल प्रशासन ने योजना बनाई, और ऐलान किया कि बंदी राजाओं में जो गुरु हरगोबिंद के दामन को थामकर बाहर आ सकेगा, उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। मुगलों की चालाकी के जवाब में गुरु हरगोबिंद साहब ने भी उपाय ढूंढ़ लिया। रिहा होने के अवसर पर पहनने के लिए एक नई पोशाक सिलवाई। इस अंगरखे में 52 कलियों बनाई गईं। गुरु की रिहाई के समय सभी 52 राजाओं ने एक-एक कली थाम ली। इस तरह गुरू के साथ सभी राजा भी रिहा हो गए। बंदियों को आजाद कराने की वजह से गुरु हरगोबिंद सिंह साहब को दाता बंदी छोड़ के नाम से भी जाना गया।
100 किलो सोने से बने हैं गुरुद्वारे के गुंबद, दुनिया भर से आशीष लेने आते हैं श्रद्धालु
इस मंगल घटना की स्मृति में गुरुदेव के दाता बंदी छोड़ नाम पर 1968-70 के दौरान गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ का निर्माण किया गया था। इसमें करीब 100 किलो सोने का उपयोग किया गया है। गुरुद्वारा की छत पर 25 फीट पर एक सोने का गुंबद है और चार 14-14 फीट के गुंबद हैं। गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ दुनिया भर के सिखों और हिंदुओं के लिए पावन तीर्थ है। धार्मिक अवसरों पर दुनिया भर से यहां लाखों तीर्थ यात्री आशीष लेने आते हैं।
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