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सिविल इंजीनियर ने बेसुध बेटा-बेटी का इलेक्ट्रिक-कटर से काटा गला, खुद ज़हर पीकर दे दी जान, पत्नी और बेटी बचीं बेटे की मौत

कोरोना ने दी बेरोजगारी, डिप्रेशन में रवि ने उठाया जघन्य कदम, सुसाइड नोट में परिजन से मांगी माफी, लिखा–कोई और रास्ता नहीं बचा

भोपाल, 29 अगस्त। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के मिसरोद में एक सिविल इंजीनियर ने जो किया उससे सारा शहर स्तब्ध रह गया। उसने शनिवार को पत्नी के साथ जहर पिया और बेटा-बेटी को नींद की गोलियां खिलाईं। दोनों जब गहरी नींद में सो गए तब उनका गला इलेक्ट्रिक कटर से काट डाला। बेटे का गला काटने के बाद इंजीनियर जब बेटी का गला रेत रहा था तभी विद्युत आपूर्ति बंद हो गई, बेटी की गर्दन में प्रारंभिक घाव ही लग पाए। बाद में नींद की गोली के ओवरडोज से रवि की मौत हो गई, लेकिन पत्नी को उल्टियां हुईं और वह बच गई। होश आने पर उसने पड़ोसियों की मदद से बेटी को अस्पताल पहुंचाया। रवि के परिजनों को ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि वह पैसों की तंगी को लेकर इतना भयानक कदम उठा सकता है।   

शनिवार को पैसों की तंगी की वजह से बच्चों का इलेक्ट्रिक कटर से गला काटने वाले सिविल इंजीनियर रवि ठाकरे और उनके बेटे चिराग के शवों का रविवार को AIIMS में परीक्षण हुआ। पुलिस ने बैतूल से आए रवि के बड़े भाई विजय ठाकरे को दोनों के शव सौंप दिए।

रवि की पत्नी रंजना ने पुलिस को बताया कि उन दोनों ने ज़हर पिया और बेटा चिराग व बेटी गुंजन को नींद की गोलियां खिला दीं। गोलियों के असर से जब भाई-बहन बेहोश हो गए तब रवि ने इलेक्ट्रिक कटर से पहले बेटे का गला काट डाला। बेटी गुंजन ठाकरे का गला काटने के दौरान घर की विद्युत आपूर्ति बंद हो गई और कटर बंद हो गया। पहले से बेसुध बच्ची की गर्दन पर जब कटर चला तो उसे होश आया, लेकिन कटर के घाव के दर्द से तड़पते-तड़पते बेसुध हो गई। ज़हर के असर से रवि भी बेसुध हो गया। पत्नी रंजना भी बेसुध हो गई थी, लेकिन बाद में उसे उल्टियां हुईं, जिससे जहर का असर कम हो गया और वह बच गई। उसे  घटना के तीन घंटे बाद सुबह सात बजे सुध आई तब पड़ोस में रहने वाले अजय अरोरा से मदद मांगी। अजय ने तुरंत ही पुलिस को घटना की जानकारी दी और रंजना व गुंजन को अस्पताल पहुंचाया गया।

हीने भर पहले रिश्तेदार को बताई थी समस्या
महीनेभर पहले रवि महाराष्ट्र अपने भाई की बेटी की शादी में गए थे। यहां उन्होंने अपनी आर्थिक समस्या रिश्तेदारों को बताई थी। रिश्तेदारों ने उन्हें समझाया भी था कि शांति बनाए रखो, आगे सब ठीक हो जाएग, लेकिन एक माह बाद ही रवि ने यह आत्मघाती कदम उठा लिया। उसने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा है, जिसमें लिखा है–वास्ते पुलिस अधिकारी महोदय,
मैं रवि ठाकरे, रंजना ठाकरे, अपने पुत्र चिराग ठाकरे और बेटी गुंजन ठाकरे के साथ मानसिक कष्टों के साथ विगत कई वर्षों से जीवन निर्वाह कर रहे थे, परंतु अब हम आर्थिक कारणों के साथ जिंदगी चलाने में असमर्थ हैं। हमारी आत्महत्या में किसी का कोई हाथ नहीं है। हम यह पूर्ण होश में लिखकर दे रहे हैं। हमारे पास कोई भी नौकरी नहीं है। कोई प्रॉपर्टी भी नहीं है और न कोई जीवन का उद्देश्य रह गया है। बच्चों का कोई अन्य सुविधा दे पा रहे अन्य बच्चों की तरह। हमारे पास भविष्य में केवल अंधेरा ही अंधेरा है। मेरी पत्नी और मैं मानसिक रूप से दिमाग से केवल खाली हो चुके हैं। काम में मन नहीं लगता। बच्चों की फीस नहीं भर पा रहे हैं। हम इसलिए आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। मेरे बूढ़े सास-ससुर ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। वे 70-80 वर्ष के हैं, जो महाराष्ट्र में वर्धा जिले आर्वी तहसील के रहने वाले हैं। हमारा एक मकान सिग्नेचर 366 में G-303 है, जिसका पजेशन भी नहीं लिया है। वह स्टेट बैंक के पास गिरवी है। विगत कई वर्षों से 2012 से किस्तें जमा कर रहे हैं, पर अब किस्तें जमा कर पाने में असमर्थ हैं। 17 लाख रुपए लोन लिया था, जिसमें से अभी भी हमारे ऊपर करीब नकद 3 लाख और 8 सालों की किस्तें जमा कर चुके, पर मकान नहीं मिला। करीब 10 लाख लोन बाकी है।

बिंदु एवं वैष्णवी
मुझे एलएन मालवीया कंसल्टेंसी से 3 माह से वेतन नहीं मिला है। जो कुछ बचा है, जो मिलने वाला है। वह हम कोरे चैक साइन कर रहे हैं। वह उनको किसी भी प्रकार दे देना, ताकि दोनों लड़कियों की शादी हो सके। बैंक कोई अड़चन खड़ी ना करे।
मृत्यु पूर्व बयान में ये हम गुजारिश करते हैं कि हो सके तो किस्तों पर जो मकान खरीदा है, उसका पजेशन एंश्योर्ड है। किस्तें माफ कर गुड्‌डू मामा के नाम कर देना, ताकि लड़कियों की शादी की जा सके। अन्य रास्ता नहीं होने पर यह भयानक कदम उठाया है। मृत आत्मा पर इतनी दया करना। गुड्‌डू/योगेश गावंडे
बॉबी/ कमलाकर गावंडे

इस डिप्रेशन में हम दोनों के होने के कारणमैं आंखों से कमजोर हो गया, दिमाग कमजोर हो गया, बिना पूछे कोई काम नहीं कर सकता हूं। मेरी मानसिक ताकत, मेरी पत्नी की मानसिक हालत खराब, रोजगार संकट से त्रस्त होकर मैं स्वयं व हम सब मृत्यू का वरण करने के लिए बाध्य हो गए हैं।


मेरे पास जो भी बचा है, वक कमलाकर राव, भाउराव गावंडे या उनके पुत्र योगेश गावंडे के नाम, पैसा, सामान गाड़ी, वस्तु सुपुर्द कर रहा हूं। कृपया उन्हें सौंप दिया जाए। मकान मालिक से भी माफी मांगते हैं। क्या लिखूं, क्या न लिखूं समझ नहीं आ रहा है। क्या करूं… समझ नहीं सकता। गलतियां होंगी, लेकिन मृत्यु पूर्व बयान को सही समझकर उलझनों को सुलझा देना। माफी सहित

तीन पृष्ठों की सुसाइड नोट, बताई जीवित न रहने की मजबूरी

तीन पृष्ठों के सुसाइड नोट में कुछ संबंधियों के नंबर और नाम लिखे हैं। फिर लिखा है कि आप सब मिलकर संभाल लेना। हमारे सामने भूख, भविष्य, बीमारी, फीस, घर का खर्च, नौकरी और अन्य भुगतान जैसे मकान का किराया, पुस्तकें, कॉपियों का खर्च मुंह बाए खड़ा है। जिसका सामने करने की शक्ति अब….. मेरे (रवि ठाकरे) के सामने खड़ी हैं। मैं इन खर्चों का सामना नहीं कर पा रहा हूं। मेरे ऊपर किसी का कोई कर्ज नहीं है। सबसे बड़ी समस्या नौकरी है। मेरे पास न BPL कार्ड है, पत्नी ने घरेलू बिजनेस चालू किया था, जो कोरोना में बंद हो चुका है। मेरे बच्चे कॉर्मल स्कूल में पढ़ते हैं। उनके कम प्रतिशत, पूरी मेहनत से पढ़ाई की, लेकिन प्रतिशत कम आने पर भविष्य नहीं बना पाया। उनका भी भविष्य खराब कर दिया है। मैं डिप्लोमा इंजीनियर होने के बाद भी सभी को देखते हुए प्राइवेट नौकरी के कारण थोडी सी पगार में इज्जत से जी रहा था, पर मैं मजबूर हो गया हूं।

बहुत मजबूर…. बहुत मजबूर
मेरी व्यथा को कोई समझ नहीं सकता। मैं सभी से सारे रिश्तेदारों से माफी मांगता हूं।

रंजना 8 महीने से थी डिप्रेशन में

रवि गोविंदापुरा में एक निजी फर्म में सिविल इंजीनियर का काम करते थे। लॉकडाउन में नौकरी छूट गई थी। रंजना भी ब्यूटी पार्लर चलाती थीं, लेकिन उनका भी काम बंद हो गया था। इस कारण आठ महीने से वह डिप्रेशन में थीं। चिराग और गुंजन पढ़ाई कर रहे थे। पड़ोसियों का कहना है कि रंजना की मानसिक स्थिति खराब हो गई थी। यहां तक कि वे छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करने लगती थीं। पत्थर भी फेंकने लगी थीं। उसका इलाज भी चल रहा था। हालत खराब होने के कारण उन्हें मायके वाले घर ले गए थे, लेकिन वह छह महीने पहले फिर से आ गईं थीं।

चिराग ने परिवार से बना रखी थी दूरी
घटना की जानकारी लगने के बाद बैतूल से भोपाल पहुंचे रवि के रिश्तेदारों ने बताया कि रवि मूलत: सारणी, बैतूल के रहने वाले थे। वह तीन भाइयों में दूसरे नंबर के थे। उनके पिता एयरफोर्स में थे। रवि के भाई विजय ने बताया कि तीनों भाई अलग-अलग शहर में रहते हैं। रवि से उनका कोई विवाद नहीं था, लेकिन दूसरे शहर में रहने की वजह से मिलना-जुलना नहीं हो पाता था। रवि ने परिवार, रिश्तेदारों से काफी दूर बना रखी थी। वह कभी फोन भी नहीं करते थे। विजय ने बताया कि रवि के इस कदम से पूरे रिश्तेदार हैरान हैं।

gudakesh.tomar@gmail.com

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