रायपुर, 04 अप्रेल। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर में शनिवार को नक्सलियों ने 700 से अधिक जवानों को घेर कर हमला किया। बीजापुर एसपी ने रविवार को बताया कि नक्सलियों के साथ हुई मुठभेड़ में 24 जवान शहीद हो गए हैं और कई जवान अब भी लापता हैं। नक्सलियों ने दो दर्जन से अधिक जवानों के हथियार भी लूट लिए। लापता जवानों की तलाश के लिए रविवार सुबह से सुरक्षाबल का सर्च अभियान जारी है। सुरक्षा बलों ने लापता 20 जवानों के शव घटनास्थल से बरामद कर लिए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल घटना को लेकर दुख व्यक्त किया है। गृह मंत्री शाह ने CM बघेल से फोन पर बात कर घटना की जानकारी ली। बता दें कि CM बघेल असम में प्रचार करने गए हुए हैं, वे शाम तक छत्तीसगढ़ पहुंचेंगे। सही रणनीति बनी होती तो जवानों का बलिदान नहीं नक्सलियों को होता सफाया….
बीजापुर में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में 24 जवानों का बलिदान रणनीतिक असफलता की ओर संकेत कर रहा है। नक्सलियों ने 700 जवानों को घेरकर तीन घंटे गोलियां चलाईं, और रेस्क्यू टीम 24 घंटे बाद तक जवानों के शव लेने के लिए नहीं पहुंची। प्रशासन को 20 दिन पहले से ही इस इलाके में नक्सलियों की भारी संख्या में मौजूदगी की सूचना मिल गई थी, इसके बद भी इतना बड़ा हमला हुआ और जवान घेर कर मार दिए गए। मुठभेड़ जहां हुई है, वह नक्सलियों की फर्स्ट बटालियन का कार्यक्षेत्र है। UAV की तस्वीरों के जरिए 20 दिन पहले ही पता चल गया था कि यहां बड़ी संख्या में नक्सली मौजूद हैं। ऑपरेशन में भी CRPF, STF, DRG, कोबरा और बस्तरिया जैसे हाइली ट्रेंड सुरक्षा बलों को शामिल किया गया, इसके बाद भी चूक हो गई। आइए विश्लेषण करें कि चूक कहा- कहां हुई….
रणनीति असफलता
केंद्र के वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार व CRPF के पूर्व डीजीपी के.विजय कुमार के साथ मौजूदा आईजी ऑपरेशंस नलिन प्रभात UAV इनपुट मिलने के बाद से जगदलपुर, रायपुर व बीजापुर के क्षेत्रों में उपस्थित थे। इसके बाद भी इतनी बड़ी संख्या में जवानों का बलिदान अभियान की रणनीति पर प्रशनचिंह है। विशेषज्ञों के अनुसार नक्सली भी इस तरह एक ही इलाके में बड़े अधिकारियों की उपस्थिति से सावधान हो कर अपनी प्रत्युत्तर रणनीति बनालेते हैं। हमारे रणनीतिकारों ने उनकी रणनीति की भनक भी नहीं ले सके।
रणनीति में एकरूप स्थिरता नहीं गतिशील परिवर्तन आवश्यक
छत्तीसगढ़ के गोरिल्ला वॉरफेयर इलाकों में सुरक्षाबल लंबे समय तक एक ही ढर्रे पर चलकर सफल नहीं हो सकते। एक सी योजनाएं वर्षों तक बनी रहने से जवानों के जीवन पर खतरा बढ़ाता है, क्योंकि इससे नक्सलियों को जवानों की योजना समझ कर अपने लिए रणनीतिक विकल्प तलाशना आसान हो जाता है। नक्सलियों को अपने ऊपर होने वाले हमलों को भांपना आसान हो जाता है और जवानों का जीवन खतरे में पड़ जाता है।
गुप्तचरों की कमी, समर्पत नक्सलियों पर निर्भरता सटीक नहीं
स्थानीय स्तर पर नक्सली समूहों में सम्मिलित लोग सुरक्षा बलों के लिए जानकारी का सबसे बड़ा आधार होते हैं। लेकिन, विगत कई वर्षों से नक्सल विरोधा अभियानों के अधिकारी पदक और प्रशंसा की चाह में आत्मसमर्पण कराने में जुटे रहे। समर्पित नक्सली से बने मुखबिर और उनकी सूचनाएं सटीक नहीं हो सकतीं क्योंकि नक्सली लगातार योजना बदलते रहते हैं। सुरक्षा बलों की इन पर निर्भरता से अंदरूनी गुप्तरों का अभाव हो गया औऱ त्वरित व सचीक सूचनाएं मिलना कम हो गईं।
अलग-अलग सुरक्षा संगठनों में तालमेल व नियंत्रण की अभाव
नक्सल विरोधी अभियानो में अलग-अलग बलों की तैनाती तालमेल व नियंत्रण के लिए समस्याएं खड़ी करती है। नक्सली अभियानों में सभी अपनी विशिष्ट शैलियों में अपने-अपने प्रशिक्षण के आधार पर कार्रवाई करते हैं। परिणाम-स्वरूप एकरूपता नहीं रह पाती है।
दस दिन के अंदर यह दूसरा हमला
छत्तीसगढ़ में 10 दिन के अंदर यह दूसरा नक्सली हमला है। इससे पहले 23 मार्च को हुए हमले में भी पांच जवान शहीद हुए थे। यह हमला नक्सलियों ने नारायणपुर में आईईडी ब्लास्ट के जरिये किया था। तर्रेम थाने से सीआरपीएफ, डीआरजी, जिला पुलिस बल और कोबरा बटालियन के जवान संयुक्त रूप से सर्चिंग पर निकले थे। इसी दौरान दोपहर में सिलगेर के जंगल में घात लगाए नक्सलियों ने हमला कर दिया। इस पर जवानों की ओर से भी जवाबी कार्रवाई की गई।
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