ग्वालियर, 23 मार्च। जिस बम से भगत सिंह ने ब्रिटश असेंबली में धमाका कर आजादी की पुकार को अनसुना कर रहे अंग्रेजों के कान बहरे कर दिए थे, उसे ग्वालियर के ही एक मकान में तैयार किया गया था। इस बम के लिए सामग्री ग्वालियर के ही विक्टोरिया कॉलेज की लेबोरेटरी से चुराए गए थे। संसद में फेंकने से पहले बम का परीक्षण भी ग्वालियर की एक पुलिस चौकी में विस्फोट से किया गया था। ज्ञातव्य है कि HSRA के क्रांतिकारियों के लिए बम ग्वालियर के एक भुतहा मकान को फैक्ट्री बनाकर तैयार किए जाते थे। क्रांतिकारियों का खुफिया केंद्र था ग्वालियर…..
23 मार्च के दिन ही अमर शहीद सरदार भगत ने हंसते-गाते फांसी के फंदे पर झूल गए थे। उनकी शहादत को श्रद्दांजलि देने khabarkhabaronki.com पर प्रस्तुत है असेंबली बम कांड से जुड़े महत्वपूर्ण अनछुए तथ्य…..
– पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की 1927 में काकोरी कांड के आरोप में शहादत के बाद क्रांतिकारियों की कानपुर में एक गुप्त बैठक हुई।
– बैठक में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी (HRA) का नाम बदल कर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) दिया गया।
– चंद्रशेखर आजाद को इसका चीफ कमांडर बनाया गया। घोषित रूप से मुख्यालय आगरा में रखा गया।
– सिंधिया रियासत में अंग्रेजों की नज़र से महफूज़ रहने की वजह से क्रांति कार्यों के लिए आजाद और उनके साथियों की सक्रियता गुप्त रूप से ग्वालियर में ही ज्यादा बना रहती थी।
– HSRA के लिए गोलाबारूद का इंतजाम भी ग्वालियर से ही किया जाता था, क्योंकि सिंधिया रियासत में हथियारों की ख़रीद-फ़रोख्त पर अंग्रेजी सरकार की कोई दखलंदाजी नहीं थी।
जनकगंज के भुतहा मकान में थी बम फैक्ट्री,
– बम फैक्ट्री और HSRA की गतिविधियों को अंग्रेजों की नजरों से बचाए रखने के लिए दल के भगवानदास माहौर, सदाशिव मलकापुरकर और गजानन पोतदार को शहर के विक्टोरिया कॉलेज (अब महारानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय) में दाखिल कराया गया। दोनों पहले हॉस्टल में रहे, लेकिन क्रांति की गतिविधियों को गुप्त रखने के उद्देश्य से इन्हें अलग-अलग किराए के मकानों में शिफ्ट कर दिया गया।
– भगवानदास माहौर का ठिकाना मौजूदा नाका चंद्रवदनी इलाके में पुलिस चौकी के ठीक सामने एक वीरान पाटौर में बनाया गया।
-गजानन पोतदार तत्कालीन जनकगंज थाने के पास और मलकापुरकर भी पास ही भेलसे वालों के बाड़े में रहने लगे।
– पोतदार जिस मकान में रहने लगे थे, उसे भुतहा माना जाता था और लोग वहां आते-जाते नहीं थे। यही मकान क्रांतिकारियों की बम बनाने की लेबोरेटरी और फैक्ट्री बन गया।
विक्टोरिया कॉलेज की लैब से चुराई सामग्री, मिठाई दूध के डिब्बों में आई बाहर
– क्रांति की गतिविधियों के लिए जब बम बनाने का फैसला कर लिया गया तो खुफिया तौर पर आगरा में बंगाल के क्रांतिकारी जतीन दा को बुलाया गया था।
– प्रशिक्षण के बाद साइंस के विद्यार्थी पोतदार और मलकापुरकर मिल कर विक्टोरिया कॉलेज की साइंस लैब से जरूरी केमिकल चुराते थे। इस सामग्री को मिठाई के डिब्बों और दूध के बर्तनों में छिपा कर पोतदार के मकान पर पहुंचाया जाने लगा।
आजाद ने पुलिस चौकी पर फेंक किया था बम का परीक्षण
– गजानन पोतदार ने अपने संस्मरणों में उल्लेख किया है कि उसके किराए के मकान के पास ही उस वक्त जनकगंज पुलिस चौकी हुआ करती थी। आजाद ने बम चौकी पर ही फेंका, धमाके से अफरातफरी मच गई, आसपास के बाजार बंद हो गए। पुलिस तक इस विस्फोट की खबर पहुंची।
– जब तक पुलिस सक्रिय हो पाती, आजाद पास के ही लक्ष्मीनारायण मंदिर के तहखाने से हो कर बाहर निकल गए और पठानकोट एक्सप्रेस में बैठ कर झांसी पहुंच गए।
भुतहा मकान में बने बम से ब्रिटिश असेंबली में हुआ धमाका
– पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पास किए जाने के लिए 8 अप्रैल 1929 को संसद की बैठक तय थी। सरदार भगत सिंह व साथियों को इसी दौरान बम विस्फोट करना था।
– ग्वालियर में इसके लिए विशेष बम बनाया गया, इसमें से जीवन के लिए घातक सामग्री नहीं मिलाई गई, महज धमाके लिए ये बम तैयार किया गया था।
– भगत सिंह चाहते थे कि इस योजना में ग्वालियर के किसी साथी को साथ लिया जाए, लेकिन आजाद ने इससे संगठन के लिए हथियार जुटाए जाने के अभियान पर असर पड़ने की वजह से इन्हें दिल्ली तो बुलाया गया, बम कांड में शामिल नहीं किया।
– पूरी रैकी के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने संसद में बम फेंक कर क्रांति के पर्चे बांटे और गिरफ्तारी दे दी। पर्चों का प्रथम वाक्य था- बहरों को सुनाने के लिये विस्फोट के बहुत ऊँचे शब्द की आवश्यकता होती है। सरदार भगत सिंह व उनके साथियों को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।
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