ग्वालियर, 10 मार्च। माधवराव सिंधिया भले ही राजघराने से थे, लेकिन उनका आम लोगों से बहुत अच्छा संपर्क था। माधवराव अक्सर आम लोगों से सीधा संवाद रखते थे, यही वजह है कि ग्वालियर और उसके आस-पास आज भी सिंघिया परिवार का जो भी सदस्य चुनाव में खडा होता है, वो अक्सर जीतता ही है। चाहे कांग्रेस हो या भाजपा उस इलाक़े में राजनीति की दशा और दिशा महल से ही तय होती है।
आज ग्वालियर के सिंधिया राजवंश तत्कालीन मुखिया और राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया की 76वीं जयंती है। इस अवसर पर khbarkhabaronik.com पर प्रस्तुत हैं माधवराव सिंधिया के बारे में कुछ ऐसे तथ्य जो कुछ अनसुने से हैं। ये तथ्य उन लोगों ने बताए हैं, जो माधवराव सिंधिया के करीबियों में शुमार रहे हैं….
कछुआ पकड़ लाए, राजमाता की समझाइश पर वापस छोड़ा
माधवराव सिंधिया बचपन में एक बांध से कछुआ पकड कर महल में ले आए थे। राजमाता ने उनसे कहा कि यदि कोई तुम्हे अपनी मां से दूर कर दे तो तुम्हे कैसा लगेगा, तुमने इस कछुए को उसकी मां से दूर कर दिया। मां की संझाइश पर माधवराव इतने दुखी हुए कि तत्काल 150 किलोमीटर जाकर उस बांध में उसी जगह पर कछुए को लेजाकर छोड़ा। उन्होंने खाना तभी खाया जब कछुए को उसे मूल आवस में पहुंचा दिया।
अलग हुए, तब भी मां के खाना खाने की जानकारी लेकर ही बैठते थे खाने पर
एक दौर में सिंधिया परिवार में विवाद हुआ। राजमाता विजया राजे सिंधिया अपनी बेटियों के साथ अलग रानी महल में रहने लगीं और उनका संवाद भी माधव राव से नहीं रहा था, माधवराव सिंधिया इस घटनाक्रम से बेहद दुखी भी रहने लगे थे। माधवराव सिंधिया रात को खाना खाने बैठने से पहले अपने कर्मचारियों से पूछते थे कि राजमाता ने खाना खा लिया।
लोगों की शिकायत दूर करने सड़क पर पैदल निकले तो लग गया जाम
एक बार ग्वालियर में एक समारोह के उद्घाटन पर माधवराव गए तो लोगों ने शिकायत की कि आपने लोगों से मिलना जुलना ही छोड़ दिया। उस वक़्त वह शांत रहे, लेकिन आयोजन खत्म हुआ तो वे सड़क पर पैदल निकल पड़े। सड़क के किनारे बनी हर दुकान से कुछ न कुछ खरीद कर खाया और साथ चल रहे लोगों को खिलाया। आलम ये हुआ कि सड़क पर लंबा जाम लग गया। उन्होने करीब दो घंटे तक वे पैदल चलते रहे और लोगों मुलाकात कर शिकायत को दूर किया।
हवाला मामले में नाम जोड़ा गया तो दिया इस्तीफा, घोड़े पर बैठ किया प्रचार, निर्दलीय जीते
जब हवाला मामले में माधवराव सिंधिया का नाम ज़बरिया जोड़ा गया तो खुद को बेदाग साबित करने उन्होने इस्तीपा दे दिया। इसके बाद उप चुनाव हुआ, माधवराव निर्दलीय मैदान में उतरे। इस बार वह काफ़िले के घोड़े पर चुनाव प्रचार के लिए निकले। लोगों को उन्हें इसतरह देखा ख़ुशी हुई साथ ही आश्चर्य भी। परिणामस्वरूप वह निर्दलीय ही मतों के बड़े अंतर से चुनाव जीत गए।
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