महाराज छत्रपति शिवाजी जयंती: रतनगढ़ माता मंदिर में बनी थी महाराज शिवाजी को मुगलों की कैद से आजाद कराने की योजना

ग्वालियर, 19 फरवरी। रतनगढ़ माता मंदिर में छत्रपति शिवाजी को औरंगजेब की कैद से आजाद कराने के लिए उनके गुरू समर्थ रामदास जी ने साधना की थी। महाराज शिवाजी मुगलों की कैद से आजाद हुए तो आभार जताने उन्होंने इस मंदिर में कैला देवी की मूर्ति भी स्थापित कराई थी।

छत्रपति शिवाजी महाराज देश के उन वीर सपूतों में से एक हैं, जो ‘मराठा गौरव’ भी हैं और भारतीय गणराज्य के महानायक भी। उन्होंने 1674 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी। छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को हुआ था। उनकी 391वीं जयंती पर khabarkhabaronki.com प्रस्तुत कर रहा है अंचल के दतिया जिले में स्थापित प्राचीन रतनगढ़ मंदिर से जुड़ा शिवाजी महाराज का अनूठा संस्मरण….

आगरा में औरंगजेब ने कैद रखा था शिवाजी और उनके पुत्र को

हिंदू स्वाभिमान की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे छत्रपति शिवाजी व उनके पुत्र को एक बार औरंगजेब ने धोखा देकर कैद कर लिया था। उन्हें आगरा के किले में कैद रखा गया था। रतनगढ़ के किले और मंदिर में मिले अभिलेखों के मुताबिक इसी दौरान समर्थ गुरू रामदास यहां आए थे। उन्होने करीब 6 माह तक एकांत में साधनाएं की थीं। शिवाजी व उनके पुत्र को उन्होंने यहीं से रणनीति बना कर आजाद करा लिया गया था।

फलों की टोकरी में बैठ कर निकले कैद से

समर्थ गुरु रामदास की योजना के मुताबिक, औरंगजेब को भेंट के तौर पर फलों की टोकरियां भिजवाई जाती थीं। गुरूजी ने भी ये सिलसिला अपने एक भक्त के जरिए शुरू कराया। मुगल सेना का विश्वास जीतने के बाद उस भक्त ने एक दिन दो बड़ी और कवर्ड टोकरियां भेजीं, खाली होने के बाद इन टोकरियों में शिवाजी और उनके पुत्र को बिठा कर बाहर लाया गया। दोनों को सीधे रतनगढ़ के जंगलों में गुरु रामदास के पास ले जाया गया। कुछ दिनों यहीं खुफिया तौर पर रहते हुए जब औरंगजेब की उन्हें तलाशने की गतिविधियां धीमी पड़ गईं, वो तीनों अपनी राज्य में वापस चले गए।

महाराज शिवाजी ने कराई रतनगढ़ में मूर्ति स्थापना

रतनगढ़ मंदिर के पुजारी बताते हैं कि गुरू रामदास की साधना का फल ही था, जिससे शिवाजी आजाद हो सके थे। शिवाजी की रिहाई के कुछ दिन बाद समर्थ गुरू रामदास मंदिर से चले गए थे। आगरा से मुक्त होकर शिवाजी अपने गुरू के साथ यहाँ आये थे। बाद में शिवाजी ने अपने गुरु के आदेश से सत्रहवीं शताब्दी में कैला देवी की प्रतिमा इस मंदिर में स्थापित कराई थी।

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