हड्डी जमा देने वाली सर्दी में जमे रहे जांबाज तो रास्ते पर आई चीनी सेना–पीछे हटने लगी, राजनाथ ने सुझाए शांति के तीन बिंदु

नई दिल्ली, 11 फरवरी। भारतीय सेना के जांबाजों की दृढ़ता के आगे आखिर साल भर बाद चीनी सेना ने हैकड़ी भूल वापसी का रास्ता पकड़ लिया है। लोकसभा में  रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन के साथ सीमा पर चल रहे तनाव के संबंध में जानकारी दी कि भारत और चीन के बीच LAC पर अपने-अपने मान्य बेस पर लौटने की सहमति बन गई है। चीनी सेनाओं ने तो वापसी प्रारंभ भी कर दी है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया कि पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारे पर दोनों सेनाएं प्राथमिक पोस्ट पर तैनात सैनिकों को पीछे करेंगी। चीन उत्तरी तट पर फिंगर-8 के पूर्व में जाएगा, जबकि भारतीय सेना फिंगर 3 के पास स्थित मेजर धन सिंह थापा पोस्ट (परमानेंट बेस) पर रहेगी। उन्होंने कहा कि पैंगोंग झील से सेनाओं के पूरी तरह से हटने के बाद, दोनों सेनाओं के बीच एक बार फिर बातचीत होगी। लोकसभा में रक्षा मंत्री ने सेना के बहादुर जवानों की भी तारीफ करते हुए कहा कि भारतीय सेनाओं ने सभी चुनौतियों का डट कर सामना किया तथा अपने शौर्य एवं बहादुरी का परिचय दिया। 

सीमा विवाद सुलझाने राजनाथ के तीन बिंदु

रक्षा मंत्री ने कहा कि विभिन्न स्तरों पर चीन के साथ हुई वार्ता के दौरान भारत ने चीन को बताया कि वह तीन सिद्धांतों के आधार पर इस समस्या का समाधान चाहता है। उन्होंने कहा, ‘पहला, दोनों पक्षों द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को माना जाए और उसका सम्मान किया जाए। दूसरा, किसी भी पक्ष द्वारा यथास्थिति को बदलने का एकतरफा प्रयास नहीं किया जाए। तीसरा, सभी समझौतों का दोनों पक्षों द्वारा पूर्ण रूप से पालन किया जाए।’

राजनाथ सिंहः जल्द होगा पूरी तरह डिसइंगेजमेंट

रक्षा मंत्री ने कहा, ‘मैं इस सदन को आश्वस्त करना चाहता हूं कि इस बातचीत में हमने कुछ भी खोया नहीं है। सदन को यह जानकारी भी देना चाहता हूं कि अभी भी एलएसी पर डिप्लॉयमेंट तथा पेट्रोलिंग के बारे में कुछ बकाया मुद्दे बचे हैं। इन पर हमारा ध्यान आगे की बातचीत में रहेगा। दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि द्विपक्षीय समझौता तथा प्रोटोकॉल के तहत पूर्ण डिसइंगेजमेंट जल्द से जल्द कर लिया जाए। चीन भी देश की संप्रभुता की रक्षा के हमारे संकल्प से अवगत है। यह अपेक्षा है कि चीन द्वारा हमारे साथ मिलकर बचे हुए मुद्दों को हल करने का

कैसे वापसी के लिए मजबूर हुई चीनी सेना

  1. ड्रैगन की चुनौती से निपटने के लिए भारत ने रणनीतिक और राजनीतिक दोनों मोर्चों पर दृढ़ता से काम किया। अप्रैल 2020 में पूर्वी लद्दाख के पास चीन ने चुनौती देना शुरू किया और पूर्व की स्थिति को मान्य नहीं करने की हठधर्मी दिखाई। जवाब में भारत ने भी LAC पर अपनी सेना की मौजूदगी को बढ़ा दिया था। चीन ने जब करीब दस हजार जवानों की तैनाती की तो भारत ने भी इतने ही जवानों को LAC पर लगा दिया. इतना ही नहीं मई के महीने में भारत की ओर से चीन सीमा पर टैंकों की तैनाती भी कर दी गई। वक्त बीतने के साथ-साथ भारत की सतर्कता बढ़ती गई और सितंबर-अक्टूबर तक सैनिकों की संख्या 60 हजार तक पहुंच गई।  तनाव के बीच भारत की ओर से टाइप-15 लाइट-टैंक्स, इंफैंट्री, फाइटिंग व्हिकल्स, AH4 हॉवित्जर तोपें, HJ-12 एंटी टैंक्स गाइडेड मिसाइल्स, NAR-751 लाइट मशीनगन, W-85 हैवी मशीनगन की तैनाती कर दी गई। ज्ञातव्य है कि भारत और चीन के बीच तनाव जून महीने में अधिक हो गया था, क्योंकि जून में गलवान घाटी में भारत-चीन के जवान आमने-सामने आ गए थे। दशकों बाद LAC पर हुई हिंसा में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे, जबकि चीन को भी करीब 50 सैनिक गंवाने पड़े थे, हालांकि चीन ने अपने जवानों की मौत पर चुप्पी साध ली थी।

    जमीन पर तैनाती के अलावा आसमान में भी भारतीय सेना ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई. लद्दाख के आसमान में तेजस, राफेल, मिग, अपाचे, चिनूक समेत कई सेनाओं के विमानों और एयरफोर्स के जवानों ने मोर्चा संभाला और चीन को स्पष्ट संदेश दिया।
  2. सीमा पर भारत की सैन्य मजबूती के साथ ही दिल्ली में भारत सरकार का रुख सख्त औऱ सक्रिय बना रहा। सरकार ने सेना को खुली छूट दे दी। इसके अलावा जब सैन्य लेवल पर बात नहीं बनी, तब चीन मामले के विशेषज्ञ कहे जाने वाले एनएसए अजीत डोभाल ने मोर्चा संभाला. साथ ही विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री स्तर पर भी सरकार ने अपनी ओर से वार्ता की।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मसले पर सर्वदलीय बैठक की, साथ ही चीन को सख्त संदेश दिया। चीन के साथ विवाद अपने उच्च स्तर पर था, तब पीएम मोदी ने अचानक लद्दाख का दौरा किया और जवानों से मुलाकात कर उनका हौसला बढ़ाया। पीएम मोदी ने संदेश दिया कि विस्तारवाद का जमाना अब खत्म हो गया है।
    सैन्य-कूटनीति से इतर भारत ने चीन के प्रति रवैये में सख्ती बरती, कई चीनी एप प्रतिबंधित कर दिए गए। कई बड़े प्रोजेक्ट से चीनी कंपनियों को हाथ धोना पड़ा और चीनी निवेश के विषय पर भी देश में विपरीत माहौल बना।
  3. भारत-चीन विवाद के बीच कई बार तमाम चर्चाओं के बाद भी चीन पीछे नहीं हटने को तैयार नहीं हुआ, तब भारतीय सेनाओं ने अलग-अलग पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया, आक्रामक बढ़त हासिल कर ली। इन पहाड़ियों पर कब्जे से भारत को रणनीतिक फायदा हुआ और चीन को झुकना पड़ा। भारतीय सेना ने मागर हिल, गुरुंग हिल, रेजांग ला, राचाना ला, मोखपारी और फिंगर-4 रिज लाइन की कई पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। भारत सेनाओं की इसी सामरिक बढ़त ने चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
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