ग्वालियर, 04 फरवरी। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ में हुई सुनवाई के दौरान जेल में बंद मुरैना के दूध कारोबारी पर लगी रासुका को निरस्त कर दिया गया है। दूध कारोबारी ने रासुका लगाने की कार्रवाई को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति शील नागू और आनंद पाठक की युगल पीठ ने लिखा कि जेल में बंद व्यक्ति पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की कार्रवाई करना निजी स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार के हनन करने के सामान है। इस संबंध में युगलपीठ ने मुरैना के जिलाधीश को हिदायत दी है कि 10 हजार रुपए का जुर्माना 30 दिन के अंदर अदा करें। युगलपीठ के निर्देसानुसार यह राशि याचिकाकर्ता को प्रदान की जाएगी।
मुरैना के दूध कारोबारी अवधेश शर्मा पर रासुका की कार्रवाई को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ ने नियम विरुद्ध मानते हुए निरस्त कर दिया है। याचिका की सुनवाई करते न्यायमूर्ति शील नागू और आनंद पाठक की युगल पीठ ने लिखा है–ऐसा प्रतीत होता है कि रासुका लगाते समय बुद्धि का प्रयोग नहीं किया गया।
रासुका लगाने की प्रक्रिया में लापरवाही का भुगतना पड़ा खामियाजा
दूध कारोबारी अवधेश शर्मा को पुलिस ने 01 दिसंबर 2020 को हिरासत में ले लिया था। 02 दिसंबर को कलेक्टर मुरैना ने उन पर रासुका लगाई, उच्च न्यायलय ने इसे गलत माना। दरअसल रासुका के अनुच्छेद-8 के अनुसार रासुका लगाने वाले प्राधिकारी को किसी के विरुद्ध की गई कार्रवाई का आधार बताना होता है। मुरैना जिला प्रशासन ने इस प्रक्रिया की अनदेखी की। इसके साथ ही . रासुका की कार्रवाई की पुष्टि के लिए जिले से राज्य को और वहां से केंद्र को प्रस्ताव भेजा जाता है। केंद्र से स्वीकृति मिलने के बाद ही रासुका की कार्रवाई को वैध माना जाता है। यहां भी प्रशासन ने इस प्रक्रिया की अनदेखी की।
इन तर्कों से युगलपीठ ने लगाया कलेक्टर पर जुर्माना
याचिका में तर्क दिया गया कि आरोपित की गिरफ्तारी के बाद उस पर रासुका की कार्रवाई की गई थी। आरोपित को इसकी जानकारी पांच दिनों के अंदर दी जानी चाहिए थी, लेकिन उसे पांच दिन बाद इसकी जानकारी दी गई। जिलाधीश ने आरोपित पर लगाई गई रासुका के आदेश में गिरफ्तारी का जिक्र नहीं किया। इसके अलावा केंद्र सरकार से अप्रूवल नहीं लिया गया। इस तरह कलेक्टर ने रासुका लगाने में नियमों का पालन नहीं किया। मौके से जो मिलावटी पदार्थ बरामद किए थे, इसकी प्रशासन ने लैब में जांच कराई। ये रसायन घटिया पाए गए, मानव जीवन के लिए घातक नहीं। याचिकाकर्ता व शासन का पक्ष सुनने के बाद पाया कि यह कार्रवाई जेल में बंद कारोबारी के मौलिक अधिकारों का हनन है।
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